भोपाल. वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी और उनकी पत्नी स्वाति तिवारी ने मरणोपरांत देहदान करने का संकल्प लिया है। इसकी जानकारी उन्होंने अपनी फेसबुक वॉल पर साझा की। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि “जब आधे से ज्यादा जीवन निकल चुका हो, तब नए संकल्प नहीं लेना चाहिए। यह पुराने संकल्पों को दोहराने और पूर्ण करने का समय है, ऐसा मेरा मानना है। ऐसा ही एक पुराना संकल्प मैंने और मेरी सहधर्मिणी स्वाति ने कुछ वर्षों पहले किया था। आज उस संकल्प को हम यहां सार्वजनिक कर रहे हैं। हम दोनों ने तय किया है कि अपनी मृत्यु उपरांत यह शरीर किसी मेडिकल कॉलेज को दान करेंगे। मरणोपरांत यह नश्वर शरीर मेडिकल की पढ़ाई करने वालों या अन्य किसी मरीज के काम आए, इस भावना के साथ ही देहदान करने का निश्चय किया है।
क्या है देहदान का मतलब
देहदान का मतलब मृत्यु के बाद लोग अपना शरीर मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर देते है। देहदान मृत्यु के पहले किया जाता है। मेडिकल रिसर्च में मृत शरीर की बहुत आवश्यकता होती है। लोगों को अच्छा इलाज देने के लिए मानव शरीर का पूरा ज्ञान होना बहुत जरूरी है, जो मृत शरीर पर परीक्षण कर ही किया जा सकता है।
देह दान के लिए कम संख्या आगे आते हैं लोग
देश में देहदान करने वालों की संख्या बहुत कम है। वहीं शोध करने वालों की संख्या बहुत ज्यादा। मानव शरीर की उपलब्धता कम होने के कारण मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों के डॉक्टर सर्जरी से पहले जानवरों के ऊपर परीक्षण करते हैं। दीपक तिवारी कहते हैं कि देहदान के लिए समाज में जागरूकता बहुत जरूरी है। इसके लिए व्यापक स्तर पर काम किया जाना चाहिए, ताकि लोग अंधविश्वास छोड़कर देहदान या अंगदान के लिए प्रेरित हो सकें।
देहदान और अंगदान में अंतर
देहदान और अंगदान में बहुत फर्क है। देहदान में व्यक्ति का पूरा शरीर दान किया जाता है। यानी देहदान सिर्फ मरने के बाद ही किया जाता है। वहीं, अंगदान में आप शरीर के उस हिस्से को दान कर सकते हैं, जिससे आपका जीवन प्रभावित न हो। साथ ही आपके शरीर का वह हिस्सा किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित न हो। कई जीवित व्यक्ति अपनी दो किडनी में से एक किडनी दान करते हैं, ताकि दूसरे की जान बचाई जा सके। वहीं जीवित व्यक्ति लीवर भी दान करते हैं।