संस्कृत की अतिथि शिक्षक को भेज दिया डॉक्टरों की प्रैक्टिकल परीक्षा में परीक्षक बनाकर, मेडिकल यूनिवर्सिटी का एक और कारनामा

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Rajeev Upadhyay
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संस्कृत की अतिथि शिक्षक को भेज दिया डॉक्टरों की प्रैक्टिकल परीक्षा में परीक्षक बनाकर, मेडिकल यूनिवर्सिटी का एक और कारनामा

JABALPUR. कहते हैं कि यदि कोई एक गलती करे, तो उसे नजरअंदाज करना चाहिए, दो बार गलती हो तो थोड़ा बहुत समझा दिया जाना चाहिए। लेकिन कोई व्यक्ति हर रोज गलतियां करने का प्रण ले ले तो उसका भगवान भी कुछ नहीं कर सकते। कुछ ऐसा ही हाल जबलपुर स्थित मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय का है। एक के बाद एक कारनामे सामने आने के बाद यहां का वाइस चांसलर यह सोचकर बदला गया था कि यूनिवर्सिटी में कुछ सुधार होगा लेकिन हाकिम बदल जाने से भला कभी किसी ने अपनी रवायतें छोड़ी हैं। जी हां, मेडिकल यूनिवर्सिटी का एक और गजब का कारनामा सामने आया है, जहां इंदौर के शासकीय आयुर्वेद कॉलेज में चरक संहिता का प्रैक्टिकल लेने संस्कृत विषय की अतिथि शिक्षक को भेज दिया गया। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि इंदौर के भावी आयुर्वेद के डॉक्टरों से संस्कृत की शिक्षिक ने प्रैक्टिकल के वायवा में क्या पूछा होगा। चरक संहिता के श्लोक या फिर सुभाषितानि। मामला उजागर होने के बाद विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रबंधन तेरी गलती-मेरी गलती का खेल खेल रहे हैं। 



नियमों की उड़ाई धज्जियां



नियम के मुताबिक प्रैक्टिकल में संबंधित पेपर के विषय विशेषज्ञ को ही परीक्षक बनाया जा सकता है। इसके बाद भी जब मेडिकल यूनिवर्सिटी के एग्जाम कंट्रोलर ने 27 अगस्त को आदेश जारी किया तो उसमें इस बात का ध्यान ही नहीं रखा गया था। गफलत और बलाय टालने में मशहूर हो चुकी एमयू में और कॉलेज प्रबंधन एक दूसरे पर गलती थोप रहे हैं। कॉलेज प्रबंधन का कहना है कि बोर्ड ऑफ स्टडीज के द्वारा टीचरों का नाम तय किया जाता है इस पर कॉलेज की कोई गलती नहीं है। वहीं मेडिकल यूनीवर्सिटी का कहना है कि कॉलेज के द्वारा जो नाम दिए जाते हैं उसी आधार पर शिक्षकों की ड्यूटी लगाई जाती है। 



बोर्ड ऑफ स्टडीज हो चुकी भंग



बता दें कि विश्वविद्यालय में यह सब कार्य बोर्ड ऑफ स्टडीज की पैनल देखती है। लेकिन विश्वविद्यालय में धारा 51 लागू होने के बाद सभी समितियां भंग हो चुकी हैं। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि जब पैनल ही भंग हो चुकी थी तो इतनी गफलत भरा निर्णय आखिर लिया किसने? मामले में यह सवाल भी उठ रहे हैं कि आखिर एक गेस्ट टीचर को कैसे परीक्षक बनाया जा सकता है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि पैसों के लेन-देन के कारण इस तरह का कारनामा किया जा रहा है। वैसे ही मेडिकल की पढ़ाई के लिए जबलपुर बदनाम रहा है। ऐसे में मेडिकल यूनिवर्सिटी के ये कारनामे लगातार छवि धूमिल कर रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे में आने वाले भविष्य में मेडिकल छात्र नीट काउंसलिंग में जबलपुर की मेडिकल यूनिवर्सिटी का नाम च्वाइस में सबसे आखिर में रखने लगेंगे। 


जबलपुर में मेडिकल यूनिवर्सिटी की लीला अपरंपार another feat of the Medical University Sent a guest teacher of Sanskrit by making an examiner in the practical examination of doctors The Leela of Medical University in Jabalpur is unparalleled मेडिकल यूनिवर्सिटी का एक और कारनामा संस्कृत की अतिथि शिक्षक को भेज दिया डॉक्टरों की प्रैक्टिकल परीक्षा में परीक्षक बनाकर
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