आज हिंदी दिवस हैं। आपको बताते है कि जबलपुर की वो आवाज जिसने हिंदी के लिए पद्मभूषण लौटाया था। सेठ गोविंददास जबलपुर में जन्मे और वहीं से हिंदी के लिए लड़ाई लड़ी। अंग्रजों से लड़ने वाले हर मुहिम में वो गांधी के साथ थे। उनकी मांग थी जिस भाषा ने हमे एकसूत्र में पिरो दिया, उसे हम कमजोर कैस मान सकते हैं।
संसद में भिड़े थे नेहरू से
दरअसल, आजादी के बाद राजभाषा को लेकर कई तरह तर्क दिए जा रहे थे। तब सेठ गोविंददास ने भरी संसद (Parliament) में कहा था कि अंग्रेजी (english) की वर्णमाला हिंदी की आधी वर्णमाला भी नहीं है। हिंदी का उद्गम संस्कृत (sanskrit) से हुआ है, भारत में प्रचलित सभी भाषाओं (language) की जननी संस्कृत ही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की एक तिहाई लोग हिंदी भाषा बोलते है, लेकिन अपनी ही देश में राजभाषा के लिए याचिका देनी पड़ी रही है।
संशोधन के खिलाफ मत देने वाले इकलौते सांसद
संशोधन के खिलाफ मत देने वाले इकलौते सांसद1962 में कांग्रेस ने संसद में विधेयक पेश किया था। इसमें अंग्रेजी को राजकीय भाषा बनाने और राज्यों (states) को अपनी क्षेत्रीय भाषाओं (regional language) को भी दूसरी राजकीय भाषा बनाने का अधिकार दिया जाना था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से सहमति न बन पाने के बावजूद सेठ गोविंददास ने इसे अपना जनतांत्रिक अधिकार बताते हुए मत प्रकट करने की अनुमति मांगी। नेहरू को सेठ गोविंददास की जिद के आगे झुक कर उन्हें विरोध दर्ज कराने की अनुमति देनी पड़ी थी। संसद में संविधान के अनुच्छेद 343 में प्रस्तावित इस संशोधन के खिलाफ मत देने वाले वे इकलौते सांसद थे।