गोपाल देवकर, बुरहानपुर. जिला मुख्यालय से करीब 20 से 25 किमी दूर असीरगढ़ का किला है। ये सतपुड़ा पहाड़ी के शिखर पर समुद्र तट से लगभग 701 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। किला आज भी अपने गौरवशाली अतीत की गाथाओं को समेटे हुए हैं। इस किले की गणना उन किलों में होती हैं जो दुरभेद और अजय माने जाते हैं। इतिहासकारों ने इसका उल्लेख बाब-ए-दक्खन और कलेद-ए-दक्खन के नाम से किया हैं। ये किला दक्षिण का दरवाजा है, जो इसे जीत लेता था उसके लिए दक्षिण का रास्ता साफ हो जाता था।
इस किले में एक शिव मंदिर भी स्थापित हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह किला महाभारत के वीरयोद्धा गुरू द्रोणाचार्य के बेटे अश्वत्थामा से संबंधित है। किंवदंती है कि आज भी यहां अश्वत्थामा आता हैं। वह शिवलिंग पर रोजाना एक ताजा गुलाब का फूल चढ़ाता हैं। इसी वजह से मंदिर के गर्भगृह में एंट्री करने वाले व्यक्ति को शिवलिंग पर ताजा गुलाब का फूल चढ़ा हुआ मिलता है।
सबसे पहले शिवलिंग पर किरणे: किले पर सूरज की पहली किरण इस शिवमंदिर पर ही दस्तक देती है। यहां किंवदंती है कि अश्वत्थामा असीरगढ़ के जंगलों में आज भी जीवित हैं। इसी वजह से मंदिर में गुलाब का फूल चढ़ा हुआ मिलता है। यह आसीरगढ़ का किला तीन भागों में स्थापित हैं। उपर का भाग आसीरगढ़, मध्यभाग कमरगढ़ और निचला भाग मलयगढ़ कहलाता है। इस किले में पहुंचने के दो रास्ते है, एक सीढ़ीदार जिसमें करीब 800 से 1000 सीढ़ियां है, इस किले के अंदर एक बावड़ी भी हैं, जिसमें यह किंवदंती है कि अश्वत्थामा इस बावड़ी में स्नान करने के बाद ही शिव की अराधना करता है।