भोपाल. मध्यप्रदेश में मिशन-2023 की तैयारियां जोरों पर हैं लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की झोली पूरी खाली है। अब जनता को देने के लिए शिवराज सिंह चौहान के पिटारे में पुरानी योजनाओं के अलावा कुछ नहीं बचा है। इनका मेकअप करके नए चेहरे के साथ उन्हें जनता के सामने पेश करने की तैयारी है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि शिवराज सिंह चौहान और उनके मंत्रियों ने पचमढ़ी की शांत वादियों में घंटों मंथन किया। यहां तक कि एक ही दिन 11 घंटे की कैबिनेट बैठक कर चिंतन-मंथन करने का रिकॉर्ड भी कायम किया। लेकिन इस मंथन के बाद जो अमृत कलश निकला है। उससे पुरानी योजनाओं को ही नया जीवनदान मिला है। शिवराज के इस महामंथन से कुछ नया नवेला निकलने की उम्मीद लगाए जनता को यदि कुछ मिला है तो वो निराशा, ऐसा लगता है।
फ्लैगशिप योजनाएं
एक दौर वो भी था, जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बनाई योजनाएं प्रदेश ही नहीं देशभर में वाहवाही बटोर रही थीं। लाड़ली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना उन योजनाओं में शुमार थी, जिसे लागू करने के लिए दूसरे प्रदेश भी शिवराज सिंह चौहान का अनुसरण कर रहे थे। ये योजनाएं मध्यप्रदेश की फ्लैगशिप योजनाएं कहलाईं, जिनका झंडा उठाकर सीएम शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी एक के बाद एक चुनाव जीतती गईं।
योजनाएं ज्यादातर कागजों पर सिमटी
साल 2018 में हुए चुनाव में शिवराज की फ्लैगशिप योजनाओं का बुलंद झंडा नीचे झुकने लगा। कांग्रेस का दिया गया घोषणावीर का नारा उस पर हावी होता नजर आया। होता भी क्यों न इक्की-दुक्की योजनाओं को छोड़कर बाकी योजनाएं ज्यादातर कागजों पर सिमटी रहीं या फिर जनता को उतना इम्प्रेस नहीं कर सकीं जितनी की उम्मीद थी। घोषणा पर घोषणावीर का नारा भारी पड़ा और कांग्रेस की सरकार सत्ता पर काबिज हो गई। उस वक्त योजनाओं से ज्यादा शिवराज सिंह चौहान की किस्मत का तारा बुलंद था कि सियासी समीकरण फिर बदले और मामा की वापसी हुई। लेकिन 2018 की हार बुरा सपना बनकर शायद अब तक सालती है। अगले चुनाव में फिर जीत मिले, इसके लिए मामा ने अभी से भरसक कोशिशें शुरू कर दी हैं।
पचमढ़ी के प्राकृतिक वातावरण में चिंतन-मंथन
एंग्री यंग मैन बनकर वो देख चुके हैं। सुर्खियां बटोरने में तो खूब कामयाब हुए लेकिन योगी आदित्यनाथ जैसा करिश्मा अब भी नहीं जगा पा रहे हैं। इससे काम बनता नहीं दिख रहा। मध्यप्रदेश में सीएम का चेहरा बदल सकता है, ये अटकलें भी सुनने को मिल ही जाती हैं। एक तरफ योगी जैसा बनने का दबाव है। दूसरी तरफ मामा वाली इमेज है। शिवराज को इन दोनों के बीच की महीन पगडंडी पर चलकर जीत का रास्ता निकालना है। ये रास्ता उन्हें अपनी वही पुरानी योजनाओं के जरिए निकलता हुआ नजर आ रहा है। दो दिन पूरी सरकार प्रदेश को उसके हाल पर छोड़कर पचमढ़ी के प्राकृतिक वातावरण में चिंतन-मंथन करती रही। दिनभर सिर्फ और सिर्फ अगले चुनाव में जीत के उपाय खोजने की चर्चाएं होती रहीं और आखिर में पचमढ़ी के पहाड़ खोदकर पूरा कैबिनेट पुरानी योजनाओं का चूहा ही निकाल पाया। अब बड़ी चुनौती पुरानी घिसी और काफी हद तक पिटी योजनाओं को चूहे से शेर बनाने की चुनौती है। चिंतन बैठक में उस पर भी मंथन हुआ है। नए आकर्षक पैकेज में पुरानी योजनाओं को भरकर जनता को गिफ्ट करने की तैयारी पूरी है।
ज्यादातर योजनाएं इवेंट बनी
दो दिन में मध्यप्रदेश की पूरी कैबिनेट ने तकरीबन 22 घंटे बैठक की है। इस बैठक का दम भरकर शिवराज सरकार ने एक नया रिकॉर्ड बनाने का दम भी भरा है। वैसे भी चौथी पारी में सीएम शिवराज सिंह चौहान हर काम को एक इवेंट की तरह पेश कर रहे हैं। ये बैठक भी कुछ इसी तरह का इवेंट नजर आई, जो सुर्खियों में तो नजर आई लेकिन पचमढ़ी की वादियों में कुछ नया इनोवेटिव आइडिया पनप नहीं सका। पीएम नरेंद्र मोदी कहते हैं आत्मनिर्भर बनो। लेकिन अफसोस एमपी की पूरी कैबिनेट जीत का ऐसा रास्ता नहीं ढूंढ सकी कि हर मंत्री आत्मनिर्भर होकर चुनाव लड़ सके। करीब दस साल पुरानी योजनाओं पर ही फिर एमपी बीजेपी जीत के लिए निर्भर हो रही है। पुरानी योजनाओं की किताब वही है, बस कवर बदला है।
पुरानी योजनाओं को आकर्षक बनाने की तैयारी जारी
एक बहुत पुरानी कहावत है rome was not built in a day. हिंदी में समझें तो हथेली पर दही नहीं जमता। फिलहाल अंग्रेजी कहावत को आगे बढ़ाते हैं। शिवराज सरकार का हर नुमाइंदा इस बात से वाकिफ है कि रोम जैसा शहर एक दिन में नहीं बन सकता। वैसे ही बड़े काम एक दिन में नहीं हो सकते। शायद इसलिए चिंतन और मंथन के लिए दो दिन तय किए गए। ये बात अलग है कि दो दिन में भी कोई बड़ा काम होता दिखाई नहीं दे रहा है। पुरानी योजनाओं को आकर्षक बनाने की तैयारी जारी है। जिसके लिए कुछ सुझाव आए हैं। ये सुझाव आकर्षक हैं या नहीं इसका अंदाजा तो 2023 के चुनावी नतीजे तय करेंगे। फिलहाल मंथन में गए मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने ये मान लिया है कि वो पुरानी योजनाओं को आकर्षक बनाने के विचारों के साथ लौटे हैं।
कन्या विवाह योजना
सीएम को मामा के तौर पर स्थापित करने वाली इस योजना को फिर नए तरीके से पेश करने का फैसला हो चुका है। कमलनाथ सरकार ने भी इस योजना को तवज्जो दी थी। योजना की राशि 28 हजार से बढ़ाकर 51 हजार रुपए कर दी गई थी। अब शिवराज सरकार ने इसमें 4 हजार रुपए और बढ़ाकर 55 हजार रुपए करने का फैसला कर लिया है।
तीर्थ दर्शन योजना
ये योजना नए सिरे से लॉन्च करने की तैयारी है। जिसे तीर्थ दर्शन योजना 2.0 कह सकते हैं। इसके तहत 18 अप्रैल से फिर मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना शुरू होगी। पहली ट्रेन काशी विश्वनाथ के लिए रवाना होगी। योजना को हिट करने के लिए मुख्यमंत्री समेत पूरा कैबिनेट इस रेल पर सवार होगा। हो सकता है नई हाईलाइट की फिराक में मुख्यमंत्री और मंत्री खुद अपने हाथ से बुजुर्गों की सेवा करते भी नजर आएं। ट्रेन के अलावा हवाई जहाज से भी तीर्थ दर्शन कराने की योजना पर विचार जारी है।
लाड़ली लक्ष्मी योजना
प्रदेश में फिलहाल 43 लाख बेटियों को इस योजना का लाभ मिल रहा है। इसमें कुछ और इजाफा किया गया है। 2 मई से ये योजना भी नए जामे के साथ पेश होगी। इसमें सरकार उच्च शिक्षा की फीस का प्रबंध भी करेगी। हर साल 2 मई को लाड़ली लक्ष्मी दिवस भी मनाया जाएगा। महिला मंत्रियों को इस योजना को जलसे में तब्दील करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया, मीना सिंह मांडवी और उषा ठाकुर हर साल 2 से 11 मई तक लाड़ली लक्ष्मी उत्सव मनाने की तैयारी करेंगी।
ग्रामीण इलाकों में चलेंगी बसें
सरकार गांवों के इलाके में बस चलाने के लिए 2013 से प्रयास कर रही है। इसके लिए ग्रामीण परिवहन नीति में दो बार बदलाव भी किया गया, लेकिन सफल नहीं हो पाई। अब एक बार फिर से इसे नया अमलीजामा पहनाकर मैदान में उतारा जा रहा है।
छात्र और उनके माता पिता को खुश करने की कोशिश
बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली एजुकेशन देने के लिए सीएम राइज स्कूल शुरू करने की योजना है। इन स्कूलों के जरिए शिक्षा के स्तर में सुधार की कोशिश है। सरकारी स्कूलों में सरकार बस फैसिलिटी भी देने की कोशिश कर रही है। आठवीं कक्षा तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाने की भी पूरी तैयारी है।
चुनाव से पहले सीएम के मन में चल रही हलचल साफ नजर आती है। कुर्सी पर टिके रहना है तो दिखना है, ये वो समझ चुके हैं। इसलिए योगी बनने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। चुनाव में वापसी कर रहे हैं तो जनता के बीच रणनीति बिकना भी जरूरी है। इसका भी उन्हें बखूबी इल्म है। मुश्किल है तो बस ये कि दिखने और बिकने की कश्मकश में उलझे शिवराज सिंह चौहान के पास फिलहाल कोई नया इनोवेटिव आइडिया नहीं है। 2018 में फ्लॉप हो चुकी योजनाएं नए कलेवर में 2023 में कोई करिश्मा कर जाएं, ये भी कम ही मुमकिन नजर आता है।