CM शिवराज की मंत्रियों पर पकड़ ढीली, सत्ता और संगठन के निर्देशों का नहीं हो रहा पालन; मुख्यमंत्री ने संभाला मॉनिटरिंग का जिम्मा

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The Sootr CG
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CM शिवराज की मंत्रियों पर पकड़ ढीली, सत्ता और संगठन के निर्देशों का नहीं हो रहा पालन; मुख्यमंत्री ने संभाला मॉनिटरिंग का जिम्मा

BHOPAL. शिवराज सरकार पर अब तक अफसरशाही के बेलगाम होने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन अब तो शिवराज की कैबिनेट में शामिल मंत्री भी उनका आदेश मानने से कतरा रहे हैं। हालात ये हैं कि जो निर्देश मंत्रियों को कई दिन पहले दे दिए गए। उसका पालन अब तक शुरू नहीं हो सका। ये निर्देश न सिर्फ सत्ता, बल्कि संगठन के हवाले से भी मंत्रियों तक पहुंचा दिए गए थे।



मंत्रियों पर सीएम ऑफिस से होगी निगरानी



आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला किसी मजबूत विपक्ष से हो या न हो। लेकिन अपनेआप से होने वाला है। यकीन मानिए ये मुकाबला किसी और से टकराने से ज्यादा कठिन और मशक्कत भरा होगा। क्योंकि बीजेपी के अपने लोग ही अब सत्ता और संगठन की नाफरमानी पर अमादा दिखाई दे रहे हैं, जिसमें मंत्री सबसे आगे हैं। इस बात से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब सत्ता की कमान संभाल रहे मंत्री ही सुस्त हैं तो उनके इलाकों में जिला और ब्लॉक लेवल के कार्यकर्ताओं का क्या हाल होगा। इसका साफ इशारा ये है कि पार्टी को जाति, क्षेत्र, अंचल और मुद्दों के आधार पर रणनीति बनाने से पहले अपने ही नेताओं की सुस्ती तोड़ने की योजना तैयार करनी पड़ेगी। अब हालात ये है कि खुद मुख्यमंत्री को बाकी काम छोड़ कर अपने मंत्रियों की मॉनिटरिंग का जिम्मा संभालना पड़ रहा है।



मंत्रियों को फिर सत्ता में वापसी का वास्ता देकर फील्ड में उतारा जा रहा 



चुनाव में जीत की नींव मजबूत करने के लिए शिवराज सरकार चाहती है कि इसके फायदे अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। वैसे इन बातों को सुनिश्चित करने का जिम्मा कार्यकर्ता संभालते हैं। जो लोगों को सरकार की योजनाओं के फायदे बताते हैं और हकीकत का जायजा भी लेते हैं। लेकिन इस बार कार्यकर्ता सुस्त-से हैं। ऐसे सुस्त कार्यकर्ताओं को जगाने के लिए सत्ता और संगठन ने मंत्रियों को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। सत्तानशी हो चुके मंत्रियों को फिर सत्ता में वापसी का वास्ता देकर फील्ड में उतरने के लिए कहा गया। मकसद ये जानना कि केंद्र और राज्य की योजनाएं लोगों तक कितनी पहुंची और उसकी हकीकत क्या है। सत्ता और संगठन इस मसले पर जितना गंभीर है, हैरानी की बात ये है कि मंत्री उतने ही सुस्त नजर आ रहे हैं। जिन्होंने अब तक गांव-गांव जाकर इस बाबत घूमना तो दूर इसके लिए कोई प्लान भी तैयार नहीं किया है।



मंत्री एसी कमरों से बाहर निकालने के लिए तैयार नहीं हुए तो सीएम शिवराज को खुद इसकी मॉनिटरिंग का काम संभालने की नौबत आ गई। खबर है कि मंत्रियों के प्रवास की कुंडली मुख्यमंत्री कार्यालय खुद ही तैयार कर रहा है।



मंत्रियों पर शिवराज का जोर नहीं चल रहा



एक पुरानी कहावत आपको याद ही होगी, कहा जाता है भय बिनु होइ न प्रीति। मंत्रियों पर निर्देश का असर नहीं हुआ तो अब उन्हें परफोर्मेंस रिपोर्ट का डर दिखाया जा रहा है। सभी मंत्रियों के प्रवास और उसके असर पर सीएम हाउस के अफसरान ही नजर रखने वाले हैं। ये भी वॉर्निंग दी जा चुकी है कि उनके दौरों के आधार पर परफोर्मेंस रिपोर्ट तैयार होगी। जिसकी समीक्षा खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान करेंगे। अब इस बात से कितना भय और काम से कितनी प्रीति हुई ये तो वक्त के साथ पता चलता जाएगा। लेकिन ये बात किसी से छिपी नहीं है कि मंत्रियों पर शिवराज  का उतना जोर नहीं चल रहा, जितना एक मुखिया होने के नाते दिखाई देना चाहिए।




  • पिछले दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो-दो मंत्रियों के समूह गठित किए थे। उन्हें दो से तीन जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इन जिम्मेदारियों के तहत मंत्रियों को गांव-गांव तक जाना है।


  • हर पंचायत के वार्ड में शिविर लगाकर लोगों की समस्याएं सुननी और सुलझानी है।

  • खासतौर से गरीब बस्तियों में मंत्रियों की उपस्थिति अनिवार्य होगी।

  • सरकार की योजनाओं का लाभ मिला या नहीं, इसकी जानकारी लेनी होगी। 

  • दोषियों पर फुर्ती से कार्रवाई भी करनी होगी



  • इन मंत्रियों को मिला, इन जिलों का प्रवास



    इस काम के लिए मुख्यमंत्री ने लगभग डेढ़ माह के लिए अपने मंत्रियों के समूह बनाकर उनके प्रभार वाले जिलों में परिवर्तन किया है। इनमें गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा और सुरेश धाकड़ को श्योपुर, सीधी, बैतूल; पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव और ओमप्रकाश सखलेचा को आगर-मालवा, खंडवा, सिंवारौली, झाबुआ; जलसंसाधन मंत्री तुलसी सिलावट और भारत सिंह कुशवाह को भिंड, शिवपुरी, शाजापुर, रायसेन; वन मंत्री विजय शाह और प्रद्युम्न सिंह तोमर को मंडला, अनूपपुर, उमरिया; वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा और इंदर सिंह परमार को ग्वालियर, बुरहानपुर, हरदा; खाद्य मंत्री बिसाहूलाल सिंह और रामखेलावन पटेल को धार, रतलाम, मंदसौर; खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया और उषा ठाकुर को विदिशा, कटनी, नीमच; नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह और मीना सिंह को अशोक नगर, मुरैना, सतना, शहडोल; मंत्री प्रेम सिंह पटेल और ओपीएस भदौरिया को निवाड़ी, पन्ना, नरसिंहपुर; कृषि मंत्री कमल पटेल और गोविंद सिंह राजपूत को देवास, दमोह, उज्जैन; मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव और राजवर्धन सिंह को जबलपुर, छिंदवाड़ा, राजगढ़, बालाघाट; चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग और बृजेंद्र प्रताप सिंह को सिवनी, छतरपुर, खरगोन; सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया और रामकिशोर कावरे को डिंडोरी, गुना, अलीराजपुर, रीवा; स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी और मोहन यादव को टीकमगढ़, होशंगाबाद, इंदौर, बड़वानी; मंत्री महेंद्रसिंह सिसोदिया और हरदीप सिंह डंग को भोपाल, सीहोर, दतिया, सागर का प्रवास दिया गया है। इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए सभी मंत्रियों को 31 अक्टूबर तक का समय दिया गया है।



    शिवराज और नरोत्तम में हो चुका टकराव



    इस हिदायत के बाद खुद सीएम ने जन अभियान शिविरों में जाना शुरू कर दिया है। लेकिन अब तक मंत्रियों की ऐसी कोई तस्वीर नजर नहीं आई है। पहले अफसरशाही के बेलगाम होने का आरोप और अब शिवराज की अपने मंत्रिमंडल पर पकड़ न होने जैसी बातें होने लगी हैं। इससे पहले भी ऐसे कई वाक्ये हुए जब सीएम के मंत्रियों  से टकराव खुलकर सतह पर आ गया। इसमें से सबसे पहले सीएम के मंत्रिमंडल के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ही हैं। मामला बीते साल जून माह की एक कैबिनेट बैठक का है। इस बैठक में शिवराज और नरोत्तम के बीच टकराव साफ दिखाई दिया। टकराव नर्मदा घाटी विकास योजना को बजट में ज्यादा छूट देने पर हुआ। इस टकराव का अंजाम ये हुआ कि मंत्रिमंडल दो खेमों में बंटा दिखा। कुछ मंत्री शिवराज तो कुछ नरोत्तम का समर्थन करते रहे। आखिर में नरोत्तम मिश्रा बैठक से उठ कर सीधे बीजेपी ऑफिस पहुंचे। उनके जाते ही  कैबिनेट में सारे प्रस्ताव पास भी कर दिए गए। 



    दूसरा मामला इसी साल अप्रैल में दिखाई दिया। वो भी केंद्रीय मंत्री अमित शाह के दौरे के समय जंबूरी मैदान में हुए कार्यक्रम के दौरान। हुआ यूं कि शाह से पहले शिवराज भाषण देने उठे। शिवराज डायस पर पहुंचते उससे पहले ही मंत्री  अरविंद भदौरिया उठ कर ताली बजाने लगे। जिन्हें कुर्ता खींच कर नरोत्तम ने बैठने का इशारा किया। नरोत्तम मिश्रा के अलावा शिवराज के अपने सबसे करीबी मंत्री भूपेंद्र सिंह से भी खटपट की खबरें आती रही हैं। 



    सीएम की हो चुकी भूपेंद्र सिंह से खटपट 



    फरवरी माह में इंदौर में गोबर धन संयंत्र का शुभारंभ पीएम नरेंद्र मोदी ने वर्चुअली किया। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये रही कि कार्यक्रम के कार्ड पर विभागीय मंत्री भूपेंद्र सिंह के नाम का जिक्र तक नहीं था। हालांकि बाद में भूपेंद्र सिंह की तबियत खराब होने का बहाना बनाया गया। लेकिन गलती पर किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई। मंत्रियों के ऐसा रवैया से बार-बार कांग्रेस को शिवराज के खिलाफ बयानबाजी करने का मौका मिल जाता है।



    गोपाल भार्गव से सीएम की तनातनी



    कैबिनेट के सबसे तजुर्बेकार मंत्री  गोपाल भार्गव से सीएम की तनातनी तो जगजाहिर है। उनके अलावा सिंधिया समर्थक मंत्री भी अक्सर उनकी लाइन से अलग जाकर काम कर डालते हैं। और, सीएम कुछ नहीं कह पाते। ऐसे ही वाक्ये इस बात को और पुख्ता कर देते हैं कि मंत्री शिवराज के बस से बाहर होते जा रहे हैं।



    यही हाल रहा तो कैसी रिपोर्ट और उस रिपोर्ट की कैसी समीक्षा होगी। बीजेपी में जारी मैराथन बैठकों का सबसे पहला एजेंडा तो अपने ही भीतर पसर रही  सुस्ती और नाफरमानी को मिटाने के लिए होनी चाहिए। क्योंकि सेना जब तक सेनापति के पीछे तन कर तैयार नहीं होगी। मैदान-ए-जंग में जीत उतनी ही दूर होगी। कहीं हाल ऐसा न हो कि बीजेपी बस बगले झांकते हुए यही सवाल पूछती रह जाए कि-



    बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है।



    हर शाख पे उल्लू बैठें हैं अंजाम ऐ गुलिस्तां क्या होगा।।


    न्यूज स्ट्राइक हरीश दीवेकर News Strike मध्यप्रदेश के मंत्रियों का जिला प्रवास शिवराज सिंह चौहान करेंगे मंत्रियों की मॉनिटरिंग District visit of ministers of Madhya Pradesh Harish Diwekar Shivraj Singh Chouhan will monitor the ministers
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