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भोपाल. मध्यप्रदेश में आदिवासियों को लुभाने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (BJP) और उसकी सरकार दलित वोटों को साधने की कवायद शुरू करने जा रही है। वो इसकी शुरूआत 16 फरवरी को संत रविदास जयंती (Guru Ravidass Jayanti) से करने जा रही है। इसके लिए अनुसूचित जाति कल्याण विभाग ने बकायदा एक पत्र जारी कर प्रदेश में संत रविदास जयंती का समारोह पहली बार हर ग्राम पंचायत और जिला मुख्यालय पर मनाने का निर्देश जारी किया है। समारोह के आयोजन के लिए हर पंचायत को 2 हजार रुपए और जिला मुख्यालय को 2 लाख रुपए की राशि दी जाएगी। राज्य स्तर पर राजधानी में भी एक बड़े आयोजन की तैयारी की जा रही है।
मिशन 2023 के लिए दलित वोटर पर फोकस: सरकार के अनुसूचित जाति कल्याण विभाग ने पंचायत विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र जारी कर 16 फरवरी को संत रविदास जयंती के आयोजन के संबंध में दिशा निर्देश जारी किए हैं। ग्राम पंचायत और जिला स्तर पर स्तर पर होने वाले समारोह में जनप्रतिनिधियों को भी मौजूद रहने को कहा गया है। आयोजन की व्यवस्थाओं के लिए हर ग्राम पंचायत स्तर पर 2 हजार रु. और जिला स्तर पर 2 लाख रुपए की राशि जिला कलेक्टर को दी जाएगी। मप्र में 23 हजार ग्राम पंचायतें है और 2 हजार रुपए प्रति ग्राम पंचायत के हिसाब से ये राशि 4 करोड़ 60 लाख रुपए (Budget for ravidass jayanti) होती है। जिला स्तर पर समारोह के लिए 2 लाख रुपए दिए जा रहे हैं। 52 जिलों के हिसाब से 1 करोड़ 4 लाख रुपए खर्च किए जाएंगे। यानी कुल 5 करोड़ 54 लाख रुपए की राशि खर्च की जाएगी। सरकार के स्तर पर हो रहे इस आयोजन से साफ है कि बीजेपी और उसकी सरकार ने प्रदेश में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वोटों की सोशल इंजीनियरिंग तेज कर दी है। आदिवासी और ओबीसी वोटर्स (obc voters) के बाद अब उसका फोकस दलित वोटर (Dalit voter) पर है।
ये है दलित वोटर का राजनीतिक समीकरण: मप्र में करीब 80 लाख दलित वर्ग के वोटर्स है यानी प्रदेश की कुल जनसंख्या का 15.7 फीसदी। विधानसभा में 35 सीटें एससी वर्ग के लिए रिजर्व हैं। इस समय इनमें से 21 सीटें बीजेपी के पास है और 14 सीटों पर कांग्रेस काबिज है। ये प्रदेश में हुए विधानसभा उपचुनाव के बाद की स्थिति है। 2018 के मुख्य चुनाव में बीजेपी ने 19 सीटें जीतीं थी और कांग्रेस ने 16 सीटें। 2013 के मुकाबले 2018 के चुनाव में बीजेपी को सीधे 10 सीटों का नुकसान हुआ था क्योंकि 2013 में बीजेपी ने 35 में से 29 सीटें जीती थीं, 6 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं।
प्रदेश में दलित वर्ग के पौने दो लाख कर्मचारी: दलित वोटर्स में शामिल सरकारी कर्मचारियों की बात करें तो मप्र में करीब पौने दो लाख कर्मचारी इस वर्ग के हैं। इनका अजाक्स संगठन (AJJAKS Organization) है, जो प्रमोशन में आरक्षण (Reservation in promotion) की लंबे समय से मांग कर रहा है। लेकिन लंबे समय ये मुद्दा अभी ठंडे बस्ते में है। इस बार बीजेपी की चिंता बीएसपी और कांग्रेस ना होकर भीम आर्मी (Bhim army) जैसे संगठन हैं। पिछले कुछ समय से भीम आर्मी के चंद्रशेखर की एमपी में सक्रियता बढ़ी है और चंद्रशेखर ने जयस के साथ मिलकर कई आंदोलनों में हिस्सा लिया है। ऐसे में बीजेपी के लिए आदिवासियों के साथ- साथ दलित वोटर भी अहम हो चुका है।
BSP के मैदान में उतरने से कांग्रेस को नुकसान: मप्र में वैसे तो दो दलीय राजनीतिक व्यवस्था है लेकिन जब भी दलित समुदाय और उसके राजनीतिक संगठन की बात होती है तो अब तक बहुजन समाज पार्टी का ही नाम सामने आता है। बीएसपी मध्यप्रदेश में 1990 से चुनाव लड़ रही है। पिछले 7 चुनाव का ट्रेंड देखें तो बीएसपी का वोट प्रतिशत लगभग 7 फीसदी के आसपास स्थिर रहा है। 2018 के चुनाव में बीएसपी को 5 फीसदी वोट प्रतिशत मिला था। मप्र में करीब 80 सीटें है जहां दलित वोटर्स एक बड़ा फैक्टर होते हैं। बीएसपी का हर चुनाव में ग्वालियर, चंबल, रीवा और सागर संभाग पर फोकस रहता है। लेकिन बीएसपी के चुनाव मैदान में उतरने का फायदा बीजेपी को मिलता है और कांग्रेस को नुकसान होता है। ऐसा राजनीतिक पंडित मानते हैं क्योंकि दलित और आदिवासी लंबे समय से कांग्रेस के वोटबैंक का हिस्सा रहे हैं।
कांग्रेस ने बताया बीजेपी का उत्सवी पाखंड: कांग्रेस नेता भूपेंद्र गुप्ता ने कहा कि संत रविदास इतने महान संत थे कि उनका जन्मदिवस तो वैसे भी सभी को मनाना चाहिए। कांग्रेस और कांग्रेस की सरकार संत रविदास की जयंती हमेशा मनाती है। लेकिन बीजेपी के कैलेंडर में यह अभी शामिल हुआ है। यह इनका नियमित कैलेंडर नहीं है। दरअसल यह बीजेपी का उत्सवी पाखंड है जो वो अपने राजनीतिक लाभ की दृष्टि से समय-समय पर करती है और फिर भूल जाती है। ये उसका चुनावी कैलेंडर है। बीजेपी को पहले यह जवाब देना चाहिए कि सिंहस्थ में वाल्मिकी समाज के लिए अलग स्नान की व्यवस्था क्यों की? साधु-संतों की जाति पूछी गई थी। बीजेपी और उसके नेताओं को समझना चाहिए कि एक तरफ वो समाज के एक वर्ग के लोगों को बेइज्जत करेंगे, कुचलेंगे, दबाएंगे और आप ये सोचेंगे कि एक जयंती मनाकर उनके पाप धुल जाएंगे तो ये उनकी नासमझी है।