शिवराज के गृह जिले की फैक्टरी का केमिकल कहर बरपा रहा, एक युवक की किडनी फेल

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शिवराज के गृह जिले की फैक्टरी का केमिकल कहर बरपा रहा, एक युवक की किडनी फेल

राहुल शर्मा, भोपाल। सीहोर के पास पिपलिया मीरा गांव में जयश्री गायत्री फूड फैक्टरी से निकल रहे केमिकल मिले पानी से ग्रामीणों की सेहत पर असर पड़ रहा है। गांव के लोग गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं। हालत यह है कि गांव के एक 20 साल के युवक की दोनों किडनियां फेल हो गई हैं। ग्रामीण इसकी शिकायत 5 साल से अफसरों से कर रहे थे, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी। इसके बाद ग्रामीणों ने हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) का दरवाजा खटखटाया। 



ये हाल है सीएम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले के। सवाल यह भी है कि सीएम के होम टाउन में ही जब लोगों के स्वास्थ से खिलवाड़ हो रहा है तो फिर एक आम आदमी किससे और क्या उम्मीद रख सकता है। 



ये पता चला: याचिकाकर्ता मांगीलाल मेवाड़ा की ओर से पैरवी कर रहे वकील आयुष देव वाजपेयी ने बताया कि एनटीजी की बेंच ने 17 फरवरी 2022 को सुनवाई करते हुए गांव के ग्राउंड वॉटर यानी जमीन के अंदर के पानी की गुणवत्ता की जांच करने के लिए कलेक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की। ये कमेटी 6 हफ्तों में रिपोर्ट सबमिट करेगी। कमेटी में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और एमपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी भी शामिल रहेंगे, जो मौके पर जाकर प्रदूषण और पानी की गुणवत्ता की जांच करेंगे। वहीं एनजीटी ने जयश्री गायत्री फूड फैक्टरी से भी 6 हफ्तों के अंदर जवाब मांगा है। इसके अलावा पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आदेश के बाद भी फैक्टरी में हो रहे प्रोडक्शन को लेकर बिजली विभाग और जिला प्रशासन को भी नोटिस जारी किया गया है। मामले में अगली सुनवाई 28 मार्च को होना है। जयश्री गायत्री फूड फैक्टरी में दूध से बने उत्पाद जैसे पनीर, दही, चीज, बटर, मिठाई बनती है, जिसकी ब्रांडिंग मिल्क मैजिक के नाम से होती है। 



9 साल पहले बनी फैक्टरी: मिल्क मैजिक उत्पाद को कंपनी भारत के अलावा विदेशों में भी सप्लाई करती है। इस कंपनी की शुरुआत 2013 में की गई थी, तब पिपलिया मीरा में फैक्टरी छोटी थी, इसलिए उससे निकलने वाले केमिकल से ग्रामीणों को ज्यादा असर नहीं पड़ा। जैसे-जैसे प्रोडक्ट की मांग बढ़ती गई, कंपनी का भी विस्तार होता गया। यही कारण है कि 2017 में फैक्टरी को भी विस्तार (एक्सटेंशन) दिया गया। इसके बाद बड़ी मात्रा में केमिकल नाले के जरिए गांव की सीवन नदी में मिलाया जाने लगा। नदी का पानी दूषित होने से ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर असर पड़ने लगा, जिसका ग्रामीणों ने विरोध भी किया, पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही थी, जिसके बाद ग्रामीणों ने एनजीटी की शरण ली। 



दोनों किडनी खराब: एनजीटी में लगे केस के याचिकाकर्ता मांगीलाल मेवाड़ा का आरोप है कि फैक्टरी से निकलने वाले केमिकल युक्त पानी से गांव का ग्राउंड वॉटर दूषित हो चुका है। ग्रामीणों को चर्म रोग, पेट-सीने में दर्द जैसी अन्य बीमारियां हो रही है। द सूत्र की टीम गांव के मोहन मेवाड़ा के घर पहुंची। मोहन के 20 साल के बेटे सतीश की दोनो किडनियां खराब है। 3 साल से वे इंदौर में इसका इलाज करा रहे हैं। मोहन का कहना है कि इलाज के लिए करीब 10 लाख चाहिए, जो अभी उनके पास नहीं है। फसल कटने पर उस हिसाब से इलाज करा रहे हैं। सतीश ने कहा कि डॉक्टर बता रहे हैं कि लगातार गंदा पानी पीने से उसकी किडनी खराब हुईं। सतीश और उसके पिता मोहन मेवाड़ा दोनों इसके लिए फैक्टरी के साथ-साथ उन अधिकारियों को भी दोषी मानते हैं, जिन्होंने शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की। 



प्रोडक्शन बंद करने के थे आदेश: ग्रामीणों की शिकायत मिलने पर मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम ने मौके पर जाकर जांच की थी। फैक्टरी के अंदर एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट यानी ईटीपी मिला था, लेकिन इसके बावजूद नाले में केमिकल मिला पानी भी मिला, जिसके आधार पर बोर्ड ने 20 जनवरी 2022 को फैक्टरी में तत्काल प्रोडक्शन बंद करने के आदेश दिए। इसके लिए विद्युत वितरण कंपनी को बिजली काटने के लिए भी लिखा, पर फैक्टरी की बिजली सिर्फ दो दिन ही बंद रही। इसके बाद वापस चालू हो गई। फैक्टरी में प्रोडक्शन आज भी हो रहा है। मामले में पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के रीजनल ऑफिसर ब्रजेश शर्मा ने कहा कि फैक्टरी बंद करने के लिए हमने बिजली काटने को कहा था, अब यह काम जिला प्रशासन का है। ब्रजेश शर्मा ने बताया कि मामले में बोर्ड पहले ही फैक्टरी संचालक पर करीब 1.20 करोड़ की पेनाल्टी का नोटिस जारी कर चुका है। 



कलेक्टर ने दिया था आश्वासन: पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के निरीक्षण के दो दिन बाद सीहोर कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर भी मौके पर पहुंचे थे। फैक्टरी अधिकारी और ग्रामीणों के साथ बैठक का दौर भी चला, पर तत्काल कोई नतीजा नहीं निकला। कलेक्टर ने 15 दिनों के अंदर समस्या खत्म करने का भरोसा दिया, पर अभी भी फैक्टरी से गंदा पानी निकल रहा है। सरपंच प्रतिनिधि जयसिंह भारती ने कहा कि आदेश फैक्टरी बंद करने के थे, पर ये बंद नहीं हुई। कलेक्टर ने 15 दिन का कहा था, पर 1 महीने बाद भी समस्या वैसी की वैसी ही है। 



राजनीतिक संरक्षण का भी आरोप: ग्रामीणों ने प्रशासन द्वारा सख्त कार्रवाई नहीं करने पर राजनीति संरक्षण का आरोप लगाया है। वनय सिंह मेवाड़ा ने कहा कि 4 साल से हम बस चक्कर ही लगा रहे हैं। इससे तो यही समझा जाए कि फैक्टरी के मामले में किसी बड़े नेता का हाथ है या अधिकारियों से साठगांठ है। वनयसिंह मेवाड़ा के आरोप को बल इसलिए भी मिलता है कि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड पहले ही फैक्टरी पर तगड़ी पेनाल्टी लगा चुका है। कलेक्टर दौरा कर आए हैं। फैक्ट्री बंद करने के आदेश हैं, यह सब तभी हुआ होगा, जब आरोपों में कुछ सच्चाई हो। इसके बाद भी फैक्टरी संचालक पर कार्रवाई न होना समझ से परे हैं। 



फसल बर्बाद, जीव-जंतुओं पर भी असर: कमलेश मेवाड़ा ने बताया कि फैक्टरी से निकल रहे गंदे पानी ने जैसे ही सीवन नदी को दूषित किया, ग्रामीणों ने करीब 4 साल पहले ही नदी के पानी का उपयोग बंद कर दिया, लेकिन जलीय जीव-जंतु मरने लगे। लगातार नदी में मिल रहे केमिकल से ग्राउंड वॉटर प्रभावित हो गया। इससे किसान भले ही ट्यूबवेल से पानी की सिंचाई करें, पर उसकी फसलें प्रभावित हो रही हैं। नदी के पानी को पीने या उसके संपर्क में आने मात्र से कुत्ते और अन्य मवेशियों में खुजली, बाल झड़ने जैसी अन्य बीमारियां हो रही है। 



कर्मचारियों ने सबकुछ सही बताने की नाकाम कोशिश की: मामले की पड़ताल करने जब द सूत्र की टीम मौके पर पहुंची तो टीम को देखकर फैक्टरी के 4 कर्मचारी नाले के दूसरी ओर से आ गए। यह सूत्र की टीम के साथ-साथ सीवन नदी के जोड़ तक चले। इस दौरान कर्मचारियों ने सबकुछ सही बताने की नाकाम कोशिश की। कर्मचारी आपस में बात कर बार-बार कह रहे थे कि ये कोयले का पानी है, जबकि पानी की बदबू करीब 50 मीटर दूर से भी बहुत तेज आ रही थी।


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