जो बोलने से डरते हैं, मैं उन्हें सामने लाने का काम करती हूं- शोभा डे

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जो बोलने से डरते हैं, मैं उन्हें सामने लाने का काम करती हूं- शोभा डे

भोपाल. लिटरेचर फेस्ट के अंतिम सत्र में रिलेशनशिप इन द टाइम ऑफ लॉक डाउन पर लेखिका, कॉल्मिस्ट शोभा डे, आई.ए.एस राघव चंद्रा एवं डॉ. नीलकमल कपूर ने चर्चा की। बातचीत में नीलकमल कपूर ने लेखिका शोभा डे से पूछा कि आपकी पुस्तकों को तीन जनरेशन पढ़ रही है आप के मुताबिक क्या बदलाव आया है। 



सेक्स एजुकेशन: इस पर लेखिका शोभा डे ने कहा कि पहले लोग कई मुद्दों पर बात नहीं करते थे पर अब महिलाएं अपनें हक की बात करने लगी हैं। वो सेक्स पर बात करने लगीं हैं। साथ ही इस समय तो सेक्स एजुकेशन पर बात की जा रही है। 55 सालों में लेखक के तौर पर शोभा डे ने 29 बुक लिखी हैं। और कई किताबें सेक्स जैसे मुद्दों पर बात करने लगी हैं। यह हमारे जीवन का एक हिस्सा है जैसे हवा और पानी।



अपनी पुस्तक पर ये कहा: मैं फीचर के बजाए उस वक्त की कहानी लिखना पसंद करती हूं। वहीं लेखिका शोभा ने अपनी बुक वीड पर कहा कि पुस्तक की कहानी एक परिवार की है। जब मां पिता को पता चलता है कि उनके बच्चे वीड का इस्तेमाल कर रहे हैं। 



मेरी फैमिली ने मेरे निर्णय का हमेशा सम्मान किया: वर्तमान के लेखक बाजार के मुताबिक लिखते हैं लेकिन मैं पुराने ख्याल की हूं और यह मेरी गलती है कि मैं उनके जैसा नहीं लिख पाती। मैं उन सभी को शुभकामनाएं देना चाहूंगी। मैं अभी भी अपने लिए लिखती हूं। लेखक की जिम्मेदारी होती है कि मनुष्य के दिन प्रति दिन किस्से को लिखें और उसे सामने लायें। वहीं फेमिनिस्म और वूमन नाइट पर उन्होंने कहा कि अगर लड़की अपने मर्जी से पढ़ सके, घूम सके, अपना जीवन साथी चुन सके, वही असली फेमिनिस्म है। मैं भी एक रूढ़िवादी सोच वाले परिवार में पैदा हुई लेकिन मेरी फैमिली ने मेरे निर्णय का हमेशा सम्मान किया। मेरे परिवार ने हम चारों भाई बहनों को कभी कुछ करने से नहीं रोका। इसके साथ साथ मैं उन सभी पुरुषों की सराहना करती हूं जो नौकरी के साथ साथ अपनी जिंदगी और अपनी पत्नियों का खयाल रखते हैं। उन्होंने कहा कि मैं शुरू से ऐसी हैं जो लोग बोलने से डरते हैं मैं उन्हें सामने लाने का काम करती हूं। चाहे वह विवाद ही क्यों न हो।


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