राजीव उपाध्याय, Jabalpur. मध्यप्रदेश में एक बार फिर कोयला संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश अब कुछ ही दिनों तक बिजली से रोशन हो सकेगा, क्योंकि पावर प्लांट में अब सिर्फ 2 लाख 72 हजार मीट्रिक टन कोयला ही बचा है। मध्यप्रदेश में सिर्फ 2 दिन का ही कोयला बचा है। इस संकट से विद्युत विभाग के कान खड़े हो गए हैं।
4 विद्युत ताप ग्रहों में 13 फीसदी कोयला उपलब्ध
देश भर के पावर हाउस में कोयला 33 फीसदी उपलब्ध होता ही है, लेकिन मध्य प्रदेश के चार विद्युत ताप ग्रहों में सिर्फ 13 फीसदी कोयला ही उपलब्ध है। प्रदेश में कोयले की मांग और पूर्ति के बीच भी बड़ा फासला है। प्रदेश एक बार फिर कोयला संकट से घिरने जा रहा है। इस देशव्यापी संकट के बीच मध्य प्रदेश में अब सिर्फ 2 दिनों के लिए 2 लाख 72 हजार मीट्रिक टन कोयला ही बचा है। ये आंकड़े खुद सरकारी डिस्पैच सेंटर ने जारी किए हैं।
सरकार और आमजन की चिंता बढ़ी
इस परिस्थिति में अब सरकार के साथ-साथ आम जनता की चिंता भी बढ़ गई है। बिजली मामलों की जानकारों की भी चिंता बढ़ गई है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार को केंद्र से कोयला मांगना चाहिए। रेलवे भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश में मौजूद पावर प्लांट में कोयले की उपलब्धता बहुत कम हो गई है।
पावर प्लांट में कोयले की किल्लत
मध्यप्रदेश के अमरकंटक पावर प्लांट में 49.90 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है। बिरसिंहपुर पावर प्लांट में 35.30 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है। सतपुड़ा सारणी पावर प्लांट में 50.30 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है और श्री सिंगाजी पावर प्लांट में 1 लाख 36 हजार 400 मीट्रिक टन कोयला ही बचा है। वहीं मध्यप्रदेश के बिजली घरों में सिर्फ 2.72 हजार मीट्रिक टन कोयला बचा है।
कोयले की समस्या से जूझ रहे कई राज्य
गौरतलब है कि कोयला संकट की समस्या अकेले मध्यप्रदेश में नहीं है, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी कुछ इस तरीके के हालात हैं। छत्तीसगढ़ में भी कोयला संकट को लेकर राज्य सरकार जहां केंद्र की व्यवस्था पर ठीकरा फोड़ रही है, तो वहीं मध्यप्रदेश को भी इस संकट से उबरने के लिए केंद्र से मदद मांगनी होगी। अमूमन देश के कई राज्य केंद्र से अतिरिक्त कोयले की मांग कर रहे हैं।