भोपाल. 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस। वो शिक्षक ही होता है, जो हमें लायक बनाता है। शिक्षक ही हमारे अंदर ज्ञान पुंज भरता है, जिससे हम सफलता की सीढ़ी चढ़ते चले जाते हैं। इस मौके पर हम मध्यप्रदेश के 5 शिक्षकों की कहानी आपको बता रहे हैं। ये सभी तमाम मुश्किलों, दुश्वारियों के बावजूद अपने उद्देश्य में लगे हैं।
कोरोना में घर जाकर बच्चों को पढ़ाया
जबलपुर के संस्कारधानी में एक शिक्षक ने कोविड के दौरान शिक्षा की लौ नहीं बुझने दी। दिनेश मिश्रा की वजह से गांव के बच्चे स्कूल जाने लगे। पहले उनके अभिभावक उन्हें स्कूल भेजने से कतराते थे, लेकिन अब वो अपने बच्चों को स्कूल भेजते है। दिनेश मिश्रा कोविड के दौरान बच्चों के घरों में जाकर पढ़ाते थे। इसके लिए उन्होंने पूरी तरह से तैयारी कर ली थी। वो बच्चों के बीच साबुन,मास्क और सैनिटाइजर बांटते थे। बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए उन्होंने घर-घर जाकर पढ़ना शुरू कर दिया,ताकि एक भी बच्चा छूटे न।
पढ़ाने के लिए रोज पहाड़ चढ़ती हैं
शिक्षक आपका जीवन सवारता है। ये बात किसी से छिप्पी नहीं है। ऐसी है बैतूल की कमलती डोंगरे जिन्होंने 1998 में पढ़ना शुरू किया। स्कूल पहाड़ियों में है, इसलिए वो रोज 25 किलोमीटर का सफर करती है। 10 किलोमीटर बस से, 12 लिफ्ट लेकर और 3 किलोमीटर पहाड़ी पर चढ़कर। इन 23 सालों में उन्होंने कभी ट्रासफर के बारे में नहीं सोचा। बच्चों का जीवन सवारने के लिए वो रोज इतना सफर तय करती है। उनके पढ़ाए गए कई बच्चे सेना, शासकीय सेवाओं तो कुछ लड़कियां माइक्रो बायलाजी पढ़ रही है। अभी उनके स्कूल में 29 बच्चे हैं।
60 साल पहले वॉलीबॉल कोर्ट बनवाया, अब गांव में 450 खिलाड़ी
दमोह के पथरिया गांव में के रिटायर्ड शिक्षक आरडी पटेल की जुनून ने गांव के रहने वाले बच्चों का जीवन सवारा। उन्होंने गांव के युवाओं को खेल से जुड़ा, फिर क्या पुरुस्कार की लाइन लग गई। इस गांव की बड़ी संख्या पुलिस और आर्मी में अपना योग्यदान देती है। उन्हें पहली 1959-60 के वॉलीबॉल कोर्ट बनवाया। इसके बाद क्या था लोग खेल से जुड़ने लगे। गांव में नेशनल,स्टेट और जिला स्तरीय लेवल पर कई प्रतियोगिताएं हो चुकी है।
नेत्रहीन हैं, पर खास अंदाज में पढ़ाते हैं
अमित देख नहीं सकते है ,लेकिन उन्होंने अपनी इस कमजोरी को ताकत में तब्दील कर लिया। उनकी क्लास के बच्चे अपना 100% देते हैं। अमित बच्चों को बोल-बोलकर पढ़ाते है। कोशिश करते है कि ज्यादा से ज्यादा ज्ञान बच्चों के बीच बांट सके। एक सामान्य स्कूल में नेत्रहीन टीचर का पढ़ाना बड़ी बात है।अमित क्लास 6वीं से लेकर 8वीं तक को विज्ञान पढ़ाते है। उनका पढ़ाने का तरीका काफी यूनीक है। पहले वो छात्रों को एक विषय देते है, फिर छात्र उसे कक्षा में पढ़कर सुनाते है। उसके बाद अमित उसे समझाते हैं।
लोगों की मदद से स्कूल में 14 लाख के काम कराए
गरीबी में पढ़ाई कर अब बच्चों का भविष्य संवारने वाले गुरु को सम्मानित किया जा रहा है। देवास के शासकीय माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक महेश सोनी का चयन राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार 2021 के लिए हुआ है। सोनी ने 20 साल में स्कूल में लोगों की मदद से 14 लाख रुपए के काम करवाए। आज स्कूल में वह सभी सुविधाएं मौजूद हैं, जो निजी स्कूल से उम्मीद करते हैं। यहां, नीम, बादाम, गुलोहर के पेड़ तो हैं ही। बच्चे स्मार्ट टीवी, कम्प्यूटर और लैपटॉप के जरिए स्मार्ट शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं।