MP: रीवा में स्वाइन फीवर ने दी दस्तक, 11 सैंपल की जांच में हुई वायरस की पुष्टि; स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप

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The Sootr CG
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MP: रीवा में स्वाइन फीवर ने दी दस्तक, 11 सैंपल की जांच में हुई वायरस की पुष्टि; स्वास्थ्य विभाग में मचा हड़कंप

अविनाश तिवारी, REWA. रीवा जिले के मऊगंज सहित कई शहरी इलाकों में सुअरों की लगातार मौत हो रही है। इसने पशुपालकों के साथ आस-पास रहने वाले लोगों की चिंता बढ़ा दी है। लगातार हो रही सुअरों की मौत के चलते पशु चिकित्सा विभाग की टीम द्वारा जानवरों में टीकाकरण शुरू किया गया है। सुअरों के सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे गए। जांच रिपोर्ट में अफ्रीकन स्वाइन फीवर की पुष्टि हुई है। इसकी वजह से सुअरों की मौत हो रही है। हालांकि इससे इंसानों या दूसरे जानवरों को कोई खतरा नहीं होता है।





सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे 





मध्यप्रदेश के रीवा में सुअरों को महामारी हो रही है। यहां अफ्रीकन स्वाइन फीवर ने दस्तक दे दी है। रीवा से जांच के लिए भोपाल स्थित राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (National Institute of High Security Animal Diseases Bhopal) में आए 11 सैंपलों में एएसएफ संक्रमण (ASF infection) पाया गया है। संस्थान की ओर से जांच रिपोर्ट राज्य शासन को भेज दी गई है। रीवा शहर के वार्ड-15 में सुअरों के बीमार होने की जानकारी मिली थी। लक्षणों के आधार पर बीमार सुअरों के सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे थे, जिसमें इस वायरस की पुष्टि हुई है।





अफ्रीकन स्वाइन फीवर क्या है





ये एक अत्यधिक घातक संक्रामक रोग है, जो अफ्रीकन स्वाइन फीवर नामक वायरस के जरिए फैलता है। पालतू और जंगली सुअरों दोनों ही इसके शिकार बनते हैं। संक्रमण होने पर सुअरों को तीव्र बुखार आता है। बुखार के साथ एनोरेक्सिया, भूख न लगना, त्वचा के में रक्तस्राव, उल्टी और दस्त शामिल होते हैं। हालांकि जानकारों की माने तो अभी तक न तो इसकी कोई दवा बनी है, न ही कोई टीका तैयार हुआ है। हालांकि इससे दूसरे जानवरों या इंसानों को कोई खतरा नहीं है। लेकिन सुअरों के लिए ये वायरस बहुत खतरनाक होता है।





रोग से बचने के लिए गाइड लाइन का पालन करें





अफ्रीकन स्वाइन फीवर को कंट्रोल करने के लिए राष्ट्रीय गाइड लाइन जारी की गई है। इसके मुताबिक जिस स्थान पर एएसएफ का संक्रमण पाया जाता है, उसके एक किलोमीटर के दायरे में मौजूद सुअरों की किलिंग की जाती है। ताकि दूसरे जानवरों को संक्रमण से बचाया जा सके। इसके अलावा तीन किलोमीटर के दायरों में सभी जानवरों की सैंपलिंग कर निगरानी करनी पड़ती है।



 



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