MP-CG सीमा पर हाथियों का आतंक, दहशत में लोग; शासन के पास नीति नहीं

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Rahul Tiwari
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MP-CG सीमा पर हाथियों का आतंक, दहशत में लोग; शासन के पास नीति नहीं

Shahdol. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ (Madhya Pradesh-Chhattisgarh) के सीमावर्ती इलाके (border areas) में जंगली हाथियों के झुंडों का मूवमेंट बीते कुछ सालों में बढ़ा है। हर कभी हाथी जंगल से इंसानी बस्तियों में आ जाते हैं। गांवों में उत्पात मचाते हैं और लोगों के आशियानों को क्षति पहुंचाते हैं। हाथियों के आतंक ने कई परिवारों को ऐसे जख्म दिए हैं, जिनकी भरपाई कई सालों में नहीं हो पाएगी। हाथियों के हमले से कई लोगों की जान तो गई ही है, कई लोग अपाहिज भी हुए हैं। हाथियों के हमले से कई लोगों की जीते-जी मरने जैसी हालत हो गई है। शहडोल के सीमावर्ती वनक्षेत्र में हाथियों का आतंक आम बात हो गई है। यहां हाथियों के झुंड ने ग्रामीणों के घरों को नुकसान पहुंचाते हुए बाड़ियों में लगी फसलों को भी आहार बनाते हैं। ग्रामीण परेशान हैं और प्रशासन का इस ओर ध्यान ही नहीं है, जो बड़ी चिंता का कारण है।



क्षेत्र में हाथियों की आवाजाही बढ़ी



छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे मध्यप्रदेश के 5 जिले जिनमें सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर और डिंडोरी शामिल है। इनमें हाथियों का आतंक किस कदर फैला हुआ है, इसका आंकलन पिछले 5 महीनों में हाथियों के द्वारा कुचलने से हुई 25 लोगों की मौत से किया जा सकता है। हाथियों से हुई मौतों का यदि जिलेवार ब्यौरा देखें तो 23 फरवरी 2022 संजय गांधी दुबरी में तीन लोगों की मौत, 5 अप्रैल 2022 जयसिंह नगर के ग्राम चितराव में पति-पत्नी की मौत, जयसिंह नगर के ग्राम बांसा में पति-पत्नी एवं एक अन्य महिला को हाथियों ने कुचला, 19 मई 2022 को जयसिंहनगर क्षेत्र के ग्राम पंचायत कोठीगढ़ के ग्राम नंदना में एक महिला की हाथियों द्वारा कुचलकर हुई मौत। इसी प्रकार 2 अप्रैल 2020 अनूपपुर में खेतों में काम कर रहे तीन मजदूरों को हाथियों ने कुचलकर मार दिया और 2 सितंबर 2020 को अनूपपुर में ही एक व्यक्ति को हाथियों ने मौत के घाट उतारा। घटनाओं पर यदि नजर दौड़ाएं तो ज्यादातर घटनाएं छत्तीसगढ़ से लगे मध्य प्रदेश के उन क्षेत्रों की हैं, जहां पर जंगलों में पानी और खाने की उपलब्धता पर्याप्त है। हाथियों का छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र में आवाजाही कोई आज की बात नहीं है, बल्कि ये आवाजाही पिछले 70-80 सालों से चल रही है लेकिन इंसानों की बढ़ती जनसंख्या के कारण इंसान जंगलों में अतिक्रमण करके आवासीय बसाहट बनाते जा रहे हैं, जो कहीं ना कहीं हाथियों के लिए एक समस्या भी है। हाथियों की आवाजाही के कारण सीमावर्ती क्षेत्रों के गरीब ग्रामीण लोगों की आर्थिक व्यवस्था का सबसे प्रमुख स्त्रोत वनोपज, महुआफूल, सालबीज, तेंदूपत्ता और तेंदू का संग्रह ग्रामीणों द्वारा करने में हाथी एक बड़ी बाधा बन चुके हैं। जबकि सीमावर्ती क्षेत्रों के गरीब ग्रामीण आदिवासी इन्हीं वनोपज को बेचकर अपने साल भर का गुजर-बसर करते हैं।



हाथियों के इतिहास पर एक नजर



हाथियों का भारत में अपना एक अलग ही इतिहास देखने को मिलता है। आजादी से पहले हाथी केवल राजाओं और महाराजाओं के किले में शोभा बढ़ाते पालतू जानवर के रूप में देखे जाते रहे हैं। आजादी के बाद मध्यप्रदेश के बोरी होशंगाबाद के जंगलों में भारत की सबसे अच्छी किस्म के सागौन वृक्ष पाए जाते हैं। लेकिन मजदूरों की कमी के कारण जंगल के ठेकेदारों ने हाथियों से पेड़ों की ढुलाई और गाड़ियों में भरने का काम लिया जाता रहा। बोरी होशंगाबाद सतपुड़ा नेशनल पार्क (Satpura National Park) घोषित होने के बाद पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उद्यान के खाली हुए हाथियों को बांधवगढ़ नेशनल पार्क(Bandhavgarh National Park), पन्ना टाइगर रिजर्व(Panna Tiger Reserve) भेज दिया गया, जहां इन हाथियों को बाघ एवं जंगलों की रक्षा का महत्वपूर्ण काम लिया जाने लगा।



भारत में हाथियों का इतिहास



भारत में मूलत: हाथियों की दो प्रजातियां (Elephant Species) पाई जाती हैं। पहली बिहार प्रजाति जोकि कद में छोटी होती है। दूसरी प्रजाति केरल कर्नाटक की है, जो कद में बड़ी होती है। बिहार राज्य में बढ़ती माइनिंग और घटते वन क्षेत्र ने हाथियों के प्राकृतिक आवास को काफी हद तक नष्ट कर दिया है, जिसके कारण हाथी बिहार से छत्तीसगढ़ की तरफ पलायन कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भी हाथियों की बहुल्यता से इनके प्राकृतिक आवास कम होते जा रहे हैं। इसके कारण हाथियों का झुंड छत्तीसगढ़ से भी पलायन करते हुए मध्य प्रदेश के दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र से छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे हुए बांधवगढ़ एवं संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में 80 से 90 वर्षों से लगातार आवाजाही करते आ रहे हैं और इस पूरे मार्ग को हाथियों के झुंड ने एक कॉरिडोर गलियारा के रूप में विकसित कर लिया है। हाथियों के विषय में कहा जाता है कि हाथी एक बार जिस मार्ग पर चला जाता है उस मार्ग को उसको आने वाली पीढ़ी भी अनुवांशिक रूप से जान लेती है और उसका अनुसरण कर सकती हैं। हाथियों की आवाजाही से हर साल जानमाल के नुकसान की घटनाएं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के सीमावर्ती क्षेत्रों में सुनाई देती रही हैं।



महावतों के लिए कोई भी प्रशिक्षण स्कूल नहीं



बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में लगभग 14 पालतू हाथी हैं। इनमें से सात बिहार की प्रजाति है जिसमें रामा और लक्ष्मण की अपनी विशेष पहचान लोगों के बीच है। इसके अतिरिक्त केरल की प्रजाति है। हाथियों के महावत को लेकर एक महत्वपूर्ण पहलू है जिसे जानना आवश्यक है। भारत में महावतों के लिए कोई भी प्रशिक्षण स्कूल नहीं है। जितने भी महावत हैं, वह पैतृक रूप से प्रशिक्षित हैं। अर्थात हर महावत ने अपने पिता या पूर्व से इस कार्य का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में कुट्टप्पन एवं रमजान महावत में से कुट्टप्पन का कोई भी पारिवारिक सदस्य महावत के कार्य में नहीं आया। वहीं रमजान के पिता रीवा महाराजा के महावत का कार्य कर चुके हैं। रमजान ने अपने लड़के को भी महावत के कार्य में निपुण किया है। बिहार फिर छत्तीसगढ़ से 2013-18 में पलायन करके बांधवगढ़ एवं संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में अपना प्राकृतिक आवास बना चुके हाथियों के तीन झुंड हैं, जिसमें लगभग 43 हाथी शामिल हैं।



बिहार और छत्तीसगढ़ से पलायन करके आए हाथियों के झुंड ने बांधवगढ़ एवं संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में अपना प्राकृतिक आवास बना लिया है। हाथियों द्वारा प्रजनन कर अपनी संख्या में भी वृद्धि की जा रही है। हाथियों ने अब अपना नया पता बांधवगढ़ और संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान को बना लिया है जंगली हाथियों की बढ़ती जनसंख्या ने बाघों के संरक्षण एवं क्षेत्र को लेकर पार्क प्रबंधन के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं, जिसका वर्तमान में कोई भी हल दिखाई नहीं दे रहा, हाथी वाइल्डलाइफ का हिस्सा हैं।



छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा हाथियों को संरक्षित रखने के लिए लेमरू नामक स्थान पर हाथियों के प्राकृतिक स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, जिससे हाथियों का पलायन एवं सामान्य जनजीवन को अस्त-व्यस्त करने से रोका जा सके। अकेले उत्तरी छत्तीसगढ़ में 240 से अधिक हाथियों का आवास स्थल है। छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले हाथी अपेक्षाकृत नए हैं। हाथियों ने वर्ष 1990 में अविभाजित मध्यप्रदेश में विचरण शुरू किया है।



छत्तीसगढ़ से मध्यप्रदेश में हाथियों के आने के प्रमुख कारण



पहला : छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के उत्तरी पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ की तुलना में मध्य प्रदेश के वन क्षेत्रों का घनत्व पहले की तुलना में बढ़ा है।



दूसरा : जल स्त्रोत छत्तीसगढ़ के जंगल क्षेत्रों की तुलना में मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जंगली क्षेत्रों में पेयजल की सुगमता और भंडार ज्यादा अच्छा है। जिसके कारण हाथियों को खाने के लिए और पीने के लिए भटकना नहीं पड़ता है।



तीसरा : शहडोल जिले के जयसिंह नगर क्षेत्र में शहडोल संभाग का सबसे अधिक महुआ उत्पादन होता है और इस क्षेत्र के लोगों का जीव को पाचन का प्रमुख माध्यम भी महुआ फूल है। वहीं हाथियों का पसंदीदा भोजन भी महुआ, साल बीज, तेंदू कहलाता है, जिसके कारण भी हाथियों का झुंड इन क्षेत्रों में पिछले कई दशकों से आवाजाही कर रहे हैं।



प्रशासनिक प्रतिक्रिया



सवाल (1) क्या कारण है कि हाथी सरगुजा क्षेत्र से मध्यप्रदेश के क्षेत्रों में पलायन करके आ रहे हैं ?



सवाल (2) शासन-प्रशासन स्तर से हाथियों से लोगों की जान और माल की रक्षा करने के लिए क्या कार्य योजना बनाई और क्रियान्वित की जा रही हैं ?



उत्तर- मुख्य वन संरक्षक



भोजन पानी की तलाश में हाथी आते रहते हैं, हमारी टीम लगातार रेस्क्यू कार्य में लगी रहती है। बाकी किसी प्रकार की कोई कार्य योजना नहीं बनी है।



उत्तर- गौरव चौधरी, डीएफओ नॉर्थ



जंगल हाथियों के लिए है वह उनका निवास स्थल है हाथी भोजन पानी की तलाश में पिछले कई दशकों से आते-जाते रहे हैं कोई विशेष कार्य योजना नहीं है लेकिन बांधवगढ़ में वन विभाग के आला अधिकारियों की एक बैठक अवश्य हुई है जिसके मिनट्स उपलब्ध होने के बाद आपको उपलब्ध करा दिए जाएंगे।



उत्तर- ललित पांडे पूर्व वन परीक्षेत्र अधिकारी वन एवं वन्य प्राणी विशेषज्ञ



छत्तीसगढ़ में हाथियों की बढ़ती जनसंख्या और घटते वन क्षेत्र के कारण हाथियों का पलायन मध्य प्रदेश के घने वन क्षेत्र में सुगम रूप से उपलब्ध भोजन और पानी के कारण पलायन होता रहता है। वर्तमान में शासन और प्रशासन स्तर से कोई भी कार्य योजना अलग से नहीं बनाई गई।


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