यूं ही कोई ‘महाराज’ नहीं हो जाता, इंदौर में ‘का..बा..’ और मामाजी के गुब्बारे

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Atul Tiwari
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यूं ही कोई ‘महाराज’ नहीं हो जाता, इंदौर में ‘का..बा..’ और मामाजी के गुब्बारे

हरीश दिवेकर। मार्च आने का बिगुल बजने लगा है। एक दिन बाद महाशिवरात्रि है, लेकिन फिजाओं में यही गूंज रहा है कि होली कब है? पहाड़ों पर बर्फ गिर रही है, मैदानों में तपिश बढ़ने लगी है। वैसे देश में चुनावी माहौल है। यूपी विधानसभा चुनाव के 5 चरण हो चुके हैं, लोग तो खैर यही जानना चाहते हैं कि 400+ सीटों वाले प्रदेश की गद्दी पर कौन बैठ रहा है? उधर, रूस अपनी मनमर्जी का मालिक बन गया है। अदने से यूक्रेन पर हमला कर दिया है। कॉमेडियन से राष्ट्रपति बने यूक्रेन के राष्ट्रपति वेलोडिमिर जेलेंस्की तीखे जवाब देने में कोई कोताही नहीं कर रहे। इधर, मध्य प्रदेश में कई खबरें पकीं। आप कहीं मत जाइए, सीधे अंदर उतर आइए...





समिधा के निकट महाराज: महाराज की समिधा (भोपाल में संघ का मुख्यालय) से नजदीकियां क्या बढ़ीं, सत्ता-संगठन ​शीर्ष की बैचेनी भी बढ़ गई। हर कोई इस गणित को अपने हिसाब से समझ और समझा रहा है। मूल भाजपाई ये मानते थे कि सत्ता समीकरण के लिए कांग्रेस से बीजेपी में आए नेता कुछ समय बाद अपने आप किनारे लग जाएंगे। दो साल में तेजी से बदलते समीकरणों से अब उन्हें समझ आने लगा है कि गैर भाजपाई, मूल भाजपाई पर हावी होने लगे हैं। समिधा का प्रेम और आशीर्वाद भी इन पर जिस तरह से बना हुआ है, उससे बड़े नेताओं की नींद उड़ना लाजमी है। बहरहाल, अभी मिशन 2023 में 18 माह बाकी हैं, इतने समय में ​कौन किसकी कश्ती में छेद कर पाने में सफल होता है ये तो आने वाला समय ही बताएगा।  





क्यों उखड़े मंत्री जी: राजधानी भोपाल में हुए एक कार्यक्रम में मंच में जगह ना मिलने से एक मंत्री जी उखड़ गए। कार्यक्रम बीजेपी संगठन और एनजीओ का था, इसलिए मंत्री को बताया गया था कि मंच पर सीएम और राजधानी के संगठन पदाधिकारी ही रहेंगे। मंच पर सूबे के मुखिया के साथ उनके चहेते मंत्री को बैठा देख दूसरे मंत्री उखड़ गए। उन्होंने पुलिसिया अंदाज में जिला संगठन के पदाधिका​री की सरेआम क्लास भी ले डाली। मंत्री के पुलिसिया तेवर देख मुखिया भी असहज हो गए। हालांकि आनन-फानन में इन मंत्रीजी के लिए कुर्सी लगवाई गई। इन्हें तो मंच पर जगह मिल गई, लेकिन दूसरे वरिष्ठ नेता जो प्रोटोकॉल में मंच पर बैठने का अधिकार रखते थे चुपचाप देखते रह गए। एक वरिष्ठ नेता ने तो अपने साथी से खुसफुसाते हुए यह तक कह दिया- सही है भाई, जब तक शर्मीला मांगता नहीं है, तब तक गर्मीला देता नहीं है। 





नासमझ माननीय! दिल पर ले गए: मामाजी का क्या है, वो तो भावनाओं में बहकर सम्मान देने के फेर में कुछ ना कुछ बोल ही देते हैं, लेकिन बेचारे हमारे माननीय उनकी बात दिल से लगा बैठे। अब माननीयों को इस बात से मुंह फूला हुआ है कि दल की बैठक में हमें कहा था कि बजट बनाने से पहले आपसे चर्चा कर आत्मनिर्भर मध्यप्रदेश का नक्शा गढ़ा जाएगा। कुर्ते-पायजामे में कलफ लगाकर माननीय इंतजार करते रह गए और अफसरों ने बजट ही तैयार कर दिया। अब सीधा सदन में ही पता चलेगा कि उनके क्षेत्र को क्या मिला और क्या नहीं। नासमझ माननीय कह रहे हैं, जब अफसरों की ही सुनना है तो हमसे कहा क्यों...? समझदार कह रहे हैं कि नई बात नहीं है, इससे पहले भी कई बार गुब्बारा बन चुके हैं, अ​ब तो हम शब्दों पर नहीं भावनाओं पर जाते हैं। 





नो काका बाबा: इंदौर में विधानसभा नंबर तीन है। कांग्रेस यहां दो बार से मुंह की खा रही है। जिस हिसाब कांग्रेसी खुद ही एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे हैं, लगता है हैट्रिक होगी। मामला कुल जमा यूं है कि यहां दो भाइयों का झगड़ा है। दोनों रिश्ते में काका-बाबा वाले भाई हैं। पिछले चुनाव में टिकट के लिए दोनों में कड़ी टक्कर हुई। टिकट आई तो परिवार में ही, लेकिन कहने वाले कह रहे हैं, निपटाया भी परिवार ने ही। वो भी तब, जब घर में राजनीति के बड़े खिलाड़ी मौजूद थे। अब वो भी नहीं रहे तो अभिव्यक्ति की अराजकता फैल गई है। जो चाहे करो। अभी कांग्रेस का जो ‘घर चलो अभियान चला’ ना, वो तीन नंबर में ‘एक-दूसरे को घर छोड़कर आओ’ के रूप चल रहा है। दो नेता, दो टीमें और दो-दो आयोजन। काका-बाबा के जिन दो पुत्रों में संघर्ष चल रह है, उनमें एक हैट्रिक विधायक रहे हैं और मजबूत भी हैं, लेकिन पिछले दो चुनाव हार चुके हैं। दूसरे एकदम ताजा हैं और टिकट के लिए उम्मीद से हैं। पिछली बार वे किनारे से लौटा दिए गए थे। इस जंग में एक पुराने मंत्री जी ने ताजा उम्मीदवार को गोद ले लिया है। उन्हें पुराने विधायक से हिसाब चुकता करना है। मुखिया भी चकरी हुए हैं। दोनों बुला रहे हैं, दोनों जगह जाना पड़ रहा है। तर्क अच्छा है- काम तो कांग्रेस का ही कर रहे हैं ना, इसलिए जा रहा हूं। बस इस खींचतान में कांग्रेसी टीम के ‘कान फ्यूज’ हो रहे हैं। इनकी सुन ली और वो टिकट ले आए तो मरण। उनकी सुन ली और ये टिकट ले आए तो...। बड़ी मुसीबत है रे बाबा...।





दुर्घटना से देर भली: महिला कांग्रेस से मैडम रुखसत कर दी गईं। ठीक से कुर्सी पर बैठी भी नहीं थीं कि कुर्सी खींच ली गई। किसी नियुक्ति पत्र की इतनी छोटी उम्र का कांग्रेस में संभवतः यह पहला मामला है, वरना यहां तो कुर्सी टूट जाए, पर उस पर बैठा शख्स नहीं उठता। अब इस खींचतान की खुर्दबीन हो रही है। अंदर की खबर यह है कि मैडम ने बड़ों को विश्वास में लिए बगैर चिट्ठी-पत्री शुरू कर दी थी। बीच में इशारा मिला भी था कि शांति बनाए रखें, धीरे चलें और दुर्घटना टालें, लेकिन पता नहीं इस बार क्या मूड था। शोर भी खूब किया और रफ्तार भी तेज ही रखी। इसमें हुआ ये कि चिट्ठी-पत्री में जो छूट गया, वो रूठ गया। बात नीचे से ऊपर जा पहुंची। बताया गया, गाड़ी ना कांग्रेस मुख्यालय पर रुक रही है, न टोल पर, न लाल बत्ती पर। कुछ करिए नहीं तो चुनाव आते-आते बड़ी दुर्घटना हो जाएगी। जो रूठे हैं, वो चुन-चुनकर बदला लेंगे। उसके बाद...उसके बाद क्या। चार बचे, बाकी सब चारों खाने चित्त हो गए। हां जी.., हां जी...मैडम भी। 





दो में से एक जैन की खुलेगी लॉटरी: प्रदेश में डीजीपी और सीएस ​पद के लिए दो जैन अफसरों की सशक्त दावेदारी है। डीजीपी का पद 4 मार्च को रिक्त हो रहा है तो 8 महीने बाद नवंबर में सीएस रिटायर हो रहे हैं। डीजीपी के लिए सशक्त दावेदारों में सुधीर सक्सेना के बाद दूसरे नंबर पर पवन जैन हैं तो सीएस के लिए पहले नंबर पर अनुराग जैन ओर दूसरे पर मोहम्मद सुलेमान सशक्त दावेदार माने जा रहे हैं। अंदरखाने का मानना है कि इन दो में से किसी एक जैन की लॉटरी खुलना तय है। भाग्यशाली कौन होगा इसका फैसला 4 मार्च के बाद हो जाएगा। 





आईएएस पति का जलवा: विधायक और पार्षद पति के कारनामों से प्रभावित एक आईएएस पति भी अब खुलकर मैदान में आ गए हैं। बीवी आईएएस बनी तो साहब अपना धंधा-पानी बंद करके आईएएस बीबी का बैक ऑफिस संभाल रहे हैं। ठेकेदारों को भी सुविधा हो गई। एक तो आईएएस से डील करना वो भी महिला आईएएस से, ये जरा टेढ़ा मामला था। जब से आईएएस पति आए हैं, ठेकेदार रात को भी बेधड़क बात कर लेते हैं। हालत ये हैं कि अब जिले की रेत से भी तेल निकाला जा रहा है। बात ऊपर तक भी गई, लेकिन मामला डायरेक्ट आईएएस का होने के कारण वरिष्ठों ने चुप्पी साध ली। प्रमोटी आईएएस होता तो अब तक मंत्रालय में बाबू बना देते।



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