मामाजी ने किसको दी दक्षिणा, पंडितजी की रहस्यमयी शायरी, पुलिस में ‘लाला’ का जलवा

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The Sootr CG
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मामाजी ने किसको दी दक्षिणा, पंडितजी की रहस्यमयी शायरी, पुलिस में ‘लाला’ का जलवा

हरीश दिवेकर। ढाई महीने ताबड़तोड़ गर्मी झेलने के बाद नौतपा भी आ ही गया। बादल अभी दूर हैं, पर सुखद ये है कि तपिश जल्द रवाना होने का मौसम आने वाला है। बीते हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान दौरे पर थे। कुछ घंटों के प्रवास में कई मीटिंग कर डालीं। यही तो मोदी का वर्किंग स्टाइल है। राहुल गांधी भी लंदन गए थे, लेकिन इस पर विवाद भी हुआ। अब राहुल विदेश जाएं और इस पर सवाल ना उठें, ये संभव नहीं। वहीं, कपिल सिब्बल कांग्रेस छोड़कर चले गए। राज्यसभा के लिए निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरा और बगल में अखिलेश यादव बैठ रहे, बाकी आप समझ जाइए। इधर, मध्य प्रदेश में कोर्ट के आदेश के बाद पंचायत और निकाय चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण का खेल शुरू हो गया है। मसालेदार, खुशबू बिखेरती खबरें तो और भी हैं, आप तो बस अंदर चले आइए... 



दर्दे दिल दर्दे जिगर...



नेता सीधे नहीं बोलते, लेकिन इतना उल्टा भी नहीं बोलते कि सीधे-सीधे समझ न आए। अब देखिए ना, मामाजी ने जो कहा वो आपको समझ नहीं आया क्या। अरे बीजेपी मुख्यालय में कहा ना। तब जब चुनाव प्रबंध कार्यालय के लिए हवन-पूजन खत्म हुआ। मामाजी बोले-दक्षिणा देना है, पंडितजी कहां हैं। पास खड़े पुराने मंत्री बोले- आपके पास ही हैं...। मामा ने संगठन के मुखिया की तरफ देखकर मुस्कराते हुए कहा- मैं तो पूरा का पूरा पंडितों से घिरा हुआ हूं। पूरा का पूरा बोले तो अकेले शर्मा नहीं हैं भाई...कोई मिश्रा भी होंगे। दर्दे दिल..दर्दे जिगर दिल में जगाया पूर्व मंत्री गुप्ताजी ने।



पंडितजी की शायरी



हमारे घर के (गृह) मंत्री सबको घर के लगते हैं। बातें भी ऐसी ही करते हैं कि घर जैसी लगें, लेकिन सब जगह बातों से काम नहीं चलता ना, कहीं-कहीं जवाब भी देना पड़ता है। अब देखो, खरगोन में फसाद हुआ, लोग जले, मरे, भागे, लेकिन पंडित जी तब पहुंचे ही नहीं। अब पहुंचे। देर हो गई। कार्यकर्ता ही सवाल उठाने लगे बड़ी देर कर दी आपने आने में...। आप तो हिंदूवादी छवि वाले नेता हो, पहले आना था। बदले में मंत्रीजी बोले- पप्पू ने नहीं आने दिया, क्या करते। आप खोजबीन करते रहें कि मंत्री के पप्पू कौन हैं। खंडवा गए तो वहां भी देर कर दी...वाला सवाल उठा। यहां जवाब में पप्पू के बजाए शायराना अंदाज में कहा- वो दौर ओर था, ये दौर और है...। यूं पंडितजी बात गोल-मोल कर गए, लेकिन कार्यकर्ता समझ गए कि बात उतनी गोल है नहीं, जितनी बताई जा रही है। बात सीधी है। इतनी सीधी की कोई भी समझ ले पंडितजी की गाड़ी अलग दिशा में जा रही है। किससे अलग जा रही है...ये अलग से नहीं बताएंगे। आसपास नजर रखा करो जरा। 



नेताइन चलीं बड़े गांव



इंदौर में एक नेताइन हैं। बीजेपी की मजबूत नेता हैं, जब चाहें, जहां से चाहें चुनाव जीत जाती हैं, लेकिन जीतने के बाद फिर जीतने की हिम्मत नहीं करतीं, सो उस सीट से पीठ फेर लेती हैं। अभी तक दो बार इधर..और फिर उधर...जा चुकी हैं। अब फिर इधर-उधर होने की तैयारी है। ये हम नहीं कह रहे, उनकी कदमताल देखकर पार्टी वाले ही कह रहे हैं। बड़े गांव उर्फ देपालपुर सीट पर नेताइन की नजर है।  अपनी बिरादरी के वोट भी इतने तो हैं कि लड़ाई शुरू की जा सके, बाकी काम पार्टी कर देगी। सुना है कि वहां अपनी बिरादरी वालों के लिए अपनों से ही भिड़ना शुरू कर दिया है। पुराने नेताजी के कई बंदों को थाना कचहरी दिखा दी है। मकसद साफ है या तो इधर आओ या अंदर जाओ। वैसे भी बीस साल से बड़ा गांव ताजगी की उम्मीद लगाए बैठा है, बार-बार एक ही भैया पधार जाते हैं। जीते या हारें। सुना है इस बार पार्टी भी यहां ताजी हवा देना चाहती है, नेताइन का जी इसलिए लग रहा है बड़े गांव में। 



देवी हैं, कोई तो पुकारो



तुम पुकार लो...तुम्हारा इंतजार है। ना-ना..गाना नहीं गा रहे, व्यथा सुना रहे हैं। इमरती देवी जी की व्यथा। ग्वालियर में मंच सजा हो, महाराज यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया की मौजूदगी हो और कोई इमरती देवी को ना पुकारे तो दर्दभरी आवाज निकलेगी ही। किस्सा ये है कि ग्वालियर के निजी मेडिकल कॉलेज में पत्थर गाड़ा जा रहा था। मंच पर सब थे। महाराज थे, मामा थे और मुन्ना भैया भी थे। देवी नहीं थीं। वो नीचे बैठी थीं। ठीक है। इतना भी चलेगा, लेकिन इतना तो नहीं चलेगा ना कि कोई मंच से नाम भी न पुकारे। और इतना तो बिलकुल नहीं चलेगा कि साथ बैठे मुन्नालाल गोयल का नाम दो बार पुकारे और देवी का पुकारे ही नहीं। पर चलाना पड़ा। ये राजनीति है। हे देवी! क्षमा करें।



तेरी राह में खड़े हैं...



महाराज के खेमे से एक नेताजी अध्यक्ष बन गए। ये कोई खबर नहीं है। खबर यह है कि नेताजी के बेटे जी सुपर अध्यक्ष बन गए। ना जी ना...वे पिताश्री के विभाग में कोई क्रांति नहीं लाना चाहते, वे तो यह जानना चाहते हैं कि पिताजी जिस विभाग के मुखिया बने हैं, उसमे लाभ-शुभ किस रास्ते से गुजरता है। हम वहीं राह में खड़े हो जाएंगे। अब पहले तो कभी ये विभाग देखा नहीं, सो उन विशेषज्ञों की शरण में पहुंच गए हैं, जिन्होंने विभाग को कुतर-कुतर कर कतरा-कतरा कर दिया था और अब सेवानिवृत्ति की जिंदगी जी रहे हैं। जासूस बता रहे हैं, विशेषज्ञों ने कुछ राह सुझाई है। बचा काम अध्यक्षजी की उस चिट्ठी ने पूरा कर दिया, जिसका मजमून यह है कि विभाग में बहुत भ्रष्टाचार हुआ है, जांच कराई जाए। इधर चिट्ठी सीएम को गई, उधर अफसर पुत्र जी की शरण में पहुंच गए। अब सब शुभ-शुभ है...लाभ ही लाभ है...।



हो लाला, तो हो भला



पुलिस में हो...लाला हो... तो भला करवाने के लिए तैयार रहिए। लाला नहीं हो तो जिला छोड़कर मुख्यालय में लारी..लप्पा..लारी...लप्पा करते रहिए। कहने वाले तो कहने लगे कि अब खाकी महकमे में अभी केवल लालाओं के चेहर पर ही लाली है, बाकी सब खाली है रे भैया। हम समझाएं देते हैं, हो क्या रहा है। मालवा-निमाड़ एक जिले में एक लालाजी पुलिस कप्तान थे। उनके जिले में चोरी-चकारी रुक नहीं रही थी, फिर क्या था, मामाजी ऐसे नाराज हो गए कि तुरत-फुरत जिले से रवाना कर दिए गए। इस आवाजाही में मामाजी भी भूल गए कि जिन्हें हटा रहे हैं, वे भी आला दर्जे के लाला हैं। बोले तो मुख्यालय से हरी झंडी प्राप्त अफसर। साहब छोटे जिले से हटे तो बड़े जिले के कप्तान बन गए। अब बोलो, सीएम की नाराजगी में ऐसा होता है क्या। नहीं ना। ऐसा तब ही होता है, जब आप लाला हो। मुख्यालय में पूरे के पूरे पक्के वाले आईपीएस फाइलें चटका रहे हैं और एक प्रमोटी अफसर मजबूत जिले की कप्तानी कर रहे हैं। पोस्टिंग के लिए बाट जोह रहे युवा आईपीएस भी अब सोशल मीडिया पर चटकारे लेकर पूछ रहे हैं...लाला युग है भाई। आप बने रहिए शर्मा जी, वर्माजी..। फंसे रहिए दफ्तर में। कम से कम लाला युग तक तो यही चलेगा।


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