हरीश दिवेकर। इंतजार किसी का भी हो, कठिन होता है। अब मॉनसून को ही ले लीजिए। केरल में कभी का टकरा गया है, पर बाकी देश को रुला रहा है। ना जाने कहां अटक-भटक गया है। ऊपर से मौसम विभाग की अपनी तरह की भविष्यवाणियां भी कम परेशानीभरी नहीं होतीं। गर्मी के बाद वाली ‘गर्मी’ काटे नहीं कटती। इधर, उमसीले माहौल में मध्य प्रदेश चुनावी रंग में रंगा हुआ है। पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव जो होने हैं। सभी नगर निगमों के लिए जिस तरह दोनों पार्टियों ने मेयर प्रत्याशी चुने, उससे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तस्वीर साफ होती दिख रही है। पार्षदों के टिकट बंटवारे में आरोप-प्रत्यारोप, गुस्से, तैश के तमाम रंग दिखे। उधर, मोदी सरकार ने अग्निपथ भर्ती योजना की घोषणा क्या की, देशभर के पथों पर जैसे अग्नि बिखर गई। अब सरकार छात्रों को मनाने-पुचकारने में लगी है। अब देखते हैं, सरकार कितना मना पाती है, छात्र कितना समझ पाते हैं। पर्दे के पीछे कई खबरें और भी हैं, आप बस अंदरखाने चले आइए।
मामा की नहीं, मैम की चलेगी
किस्सा कुल जमा यह है कि खाकी वाले बड़े साहबों के यहां कई छोटे खाकी वाले बेगारी कर रहे हैं। किसी हरिराम ने ये बात मामाजी तक पहुंचा दी कि सड़क पर डंडा बजाने वाले साहब के यहां नौकरी बजा रहे हैं। मामा ने सुना और सीएस, एसीएसस और डीजीपी को पुकार लिया। पुकार सुन दौड़े चले आए अफसरों को पता नहीं था कि यहां गृह विभाग की नहीं, बल्कि गृह (घर) की पूछताछ होने वाली है। मामा ने अफसरों से कहा- दस-दस साल पहले जो आईपीएस सेवानिवृ्ति को प्राप्त हो गए, उनके यहां भी विभाग के कई जवान बेगारी कर रहे हैं। लगे हाथ यह भी कह दिया कि घर बैठ गए हों या नौकरी में हों, अफसरों के यहां विभाग का कोई बंदा काम नहीं करेगा। अफसरों ने मामा का रौद्र रूप देखा और ऐसे सिर हिलाया, जिसका लब्बोलुआब ये था कि जो हुकुम हमारे आका। मामा भी खुश कि सब को ठिकाने लगा दिया। बैठक खत्म हुई तो सारे अफसर मंद-मंद मुस्करा रहे थे। अब इसका लब्बोलुआब यह था कि मामाजी नौकरी तो आज है, कल नहीं रहेगी, बीवी यानी मैम तो घर में जीवनभर रहना है। उनकी सुनें या आपकी। अगर आपकी सुनकर अर्दलियों को रुखसत कर दिया तो उनकी चौबीस घंटे सुनना पड़ेगी, इससे अच्छा है आधा घंटा बैठक में आप ही की सुन लें। सौदा घाटे का नहीं है।
आइंदा बोलने नहीं देना...
जी, ऐसा ही हुआ। मंत्रालय में एक बड़े साहब होते हैं। उन्हें भाषण देने की व्याधि ने घेर लिया है। नेताओं की तरह माइक देखकर उनके मुंह में भी पानी आ जाता है, कंठ कुलबुलाने लगता है। उन्हें पता नहीं था कि इसी आदत के कारण कभी इज्जत का पानी भी उतर जाएगा। उनके मंत्रालय में आयोजन हुआ। ना जाने किस अशुभ घड़ी में उन्हें किसी ने कह दिया कि किसी वक्ता को बोल दीजिए कि थोड़ा सा बोलकर माइक सूबे के मुखिया को पकड़ा दें। उन्हें बहुत सारी घोषणाएं करना हैं। साहब बोले किसी को क्यों..हम हूं ना...। हम बोलूंगा। साहब ने माइक पकड़ा और ऐसा पकड़ा कि ना केवल बोलते चले गए, बल्कि घोषणाओं का आधा हिस्सा वो भी बोल गए, जो मुखिया जी को बोलना था। अपने भाषण का एनकाउंटर होते देख मुखिया लाल-पीले-नीले बोले तो गुस्से से बहुरंगी हो गए। उनका रंग देख दूसरे अफसर ने भाषण दे रहे साहब के कान में कहा- अब शांत गदाधारी भीम..शांत...मुखिया को बोलने का अवसर दो वत्स...। साहब की स्मरणशक्ति लौटी। हां, वे तो साहब हैं, मुखिया की बातें बोल गए। हड़बड़ी में माइक छोड़ा। उनका छोड़ा हिस्सा मुखिया ने बोलकर भाषण खत्म किया और अपने दाएं-बाएं को हिदायत दे दी कि आइंदा इन नेतानुमा साहब के हाथ में माइक देखा तो सबके हाथ में इतने ऑर्डर पकड़ा दूंगा कि ना बोलने के काबिल रहोगे, ना लिखने के। अभी साहब शांत हैं।
भैया के रंग में भाभी की भंग
मंत्रीजी में मूड में थे। मूड तो बनना ही था। पांच सितारा होटल। सुहाना मौसम, साथ में महिला मित्र और गपशप। यानी मैं और मेरी तन्हाई जैसा कोई आलम नहीं था। सब रंग-बिरंगा था, तभी कुछ खटर-पटर हुई। मंत्रीजी ने आसपास देखा तो चेहरा हवा-हवाई हो गया। सात फेरों वाली मूल प्रति साक्षात सामने खड़ी थीं। पति-पत्नी और वो के त्रिकोणीय संघर्ष जैसे हालात बन गए। मंत्रीजी ने चारित्रिक और राजनीतिक कौशल बताते हुए उस समय तो क्लीन चिट ले ली। बात संभल भी गई। अब मंत्री जी अपने हरिरामों को दौड़ा दिया है, उस हरिराम को ढूंढने के लिए, जिसने ये गपशप का आयोजन लीक किया था। सुना है सारे हरिराम शहर को कौना-कौना छान रहे हैं। भौजी के सूत्र भी कमाल हैं ना...।
नाम बड़ा तो राजनीति बड़ी
जीतू पटवारी की बातें बड़ी-बड़ी ही होती हैं, पर कमब्खत नाम छोटा है। इतना छोटा कि शुरू होते ही खत्म हो जाता है। जीतू...। ये क्या नाम हुआ। इसे बड़ा करो तो राजनीति भी बड़ी हो जाएगी, ऐसा किसी महाराज ने जीतू से कहा है, ऐसा किसी ने हमें भी कहा है। अब राजनीति के इस मोड़ पर फलां बहादुर सिंह भदौरिया तो रखने से रहे। नस्ल परिवर्तन का तो कोई चांस नहीं है ना...सो अपने मूल नाम पर लौट गए हैं। सर्व साधारण को सूचित किया जाता है कि मेरा नाम अभी तक जीतू पटवारी था, लेकिन इससे मेरी राजनीति छोटी लाइन पर ही अटकी हुई थी...आगे से मुझे मेरे मूल नाम जीतेंद्र पटवारी से पुकारा जाए। ताकि...बड़े नाम से राजनीति भी बड़ी हो जाए। सो विदित हो। ठीक ही तो है। नेता तो पता नहीं, कितने चोले बदलते हैं, जीतू ने तो नाम ही बदला है। देखते हैं, राजनीति भी बदलती है या नहीं।
गुरु गोविंद दोउ खड़े....
धनु राशि वाले मंत्री जी कुंभ राशि वाले मंत्रियों से परेशान हैं...। जैसे-तैसे तो मंत्री ने सालों की लंबी लड़ाई के बाद गोपाल को कमजोर किया....अंचल में इकलौते कद्दावर नेता होने की अपनी धाक जमा पाते कि उसके पहले ही क्लाईमेक्स में गोविंद एंट्री मार गए...। गोविंद अकेले होते तो मंत्रीजी निपट भी लेते, लेकिन यहां तो उनके गुरु भी डटकर साथ खड़े हैं...। वैसे तो मंत्रीजी पांव-पांव वाले भैया के दाएं-बाएं माने जाते हैं, लेकिन गोविंद के गुरु भी कम नहीं, सीधे नमो से लिंक जुड़ा है। नए समीकरण में गोपाल के समर्थकों को मंत्रीजी पर व्यंग्य कसने का मौका मिल गया। वे कहते फिर रहे हैं, ''गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।'' उधर मंत्रीजी भी अब कुंभ राशि वालों का तोड़ ढूंढने में लग गए हैं।