महाराज-तोमर-भिया का ट्राएंगल, ‘दुश्मन’ को रास आई राजनीति, रीडर के जलवे

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Atul Tiwari
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महाराज-तोमर-भिया का ट्राएंगल, ‘दुश्मन’ को रास आई राजनीति, रीडर के जलवे

हरीश दिवेकर। होली बीत चुकी है और तेज धूप का मौसम आ गया है। पंजाब में आप की सरकार आ चुकी है, 10 कैबिनेट मंत्री भी बन चुके हैं। इन्हें चुनने में भगवंत मान ने आप का मान बनाए रखा है। डॉक्टर, इंजीनियर, किसान सबको जगह दी है। यूपी में योगी की शपथ जल्द होगी। उत्तराखंड में जरूर कुछ पेंच फंस सकता है। इधर, रसातल में जाती कांग्रेस में हाहाकार मचा है। नेता नसीहत देने में लगे हैं, लेकिन 10 जनपथ निष्क्रिय है। वहीं, द कश्मीर फाइल्स ने राजनीति की नई फाइलें खोल दी हैं। फिल्म 150 करोड़ी होने वाली है, लेकिन इसको लेकर नेताओं-अफसरों के अपने-अपने सुर हैं। देशभर की तमाम उठापटक के बीच खबरें तो मध्य प्रदेश में भी भुनीं। आप तो बस अंदर चले आइए। 





जमी बर्फ पिघल रही है: ग्वालियर-चंबल के दो दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री महाराज-तोमर के बीच क्या वाकई जमी बर्फ पिघल रही है? दिल्ली से आई एक खबर ने इस सवाल को जन्म दिया है। खबर ये है कि दिल्ली में दोनों दिग्गजों ने पहले कमराबंद मीटिंग की। इसके बाद दोनों एक ही वाहन से कैबिनेट बैठक में शामिल होने के लिए रवाना हुए। दोनों के बीच इतने आत्मीय रिश्तों की खबर ने प्रदेश के कई राजनेताओं की नींद उड़ा दी है। प्रदेश के मुखिया बनने के सपने देख रहा हर दूसरा राजनेता जानना चाहता है कि आखिर दोनों के बीच क्या चर्चा हुई। क्योंकि लोग जानते हैं कि दोनों भले ही ऊपर से भले ही रिश्ते सामान्य दिखाते हों, लेकिन उनके रिश्तों में कितनी तल्खी है, ये बात कार्यकर्ता से लेकर आलाकमान तक जानते हैं। दोनों के बीच बन रहे नए समीकरण ने प्रदेश की राजनीति में तूफान से पहले की शांति वाला ​फील ला दिया है।





लौट रही है रिश्तों की रौनक: महाराज ने तोमर ही नहीं, कैलाश के साथ भी कदमताल करना शुरू कर दिया है। यहां भी बरसों की कड़वाहट को रिश्तों की चाशनी में खत्म किया जा रहा है। इंदौर की फिजां में बीते दिनों एक राजनीतिक आयोजन हर किसी की जुबां पर है। वजह है कैलाश विजयवर्गीय के कार्यक्रम में ज्योतिरादित्य सिंधिया का मेहमान बनकर पहुंचना। जिसने सुना, उसने तीन बार दांत से ऊंगली काटी। ये काटपीट इसलिए, क्योंकि बीते सालों क्रिकेटीय राजनीति के जो मैच हुए, उसने दोनों के रिश्तों में गहरी खाई बना दी। लेकिन कहते हैं ना कि राजनीति में दोस्ती-दुश्मनी दोनों अस्थाई होती है। सिंधिया और विजयवर्गीय ना केवल एक-दूसरे का हाथ थामे बैठे रहे, बल्कि जमकर एक-दूसरे को सराहा भी। इस गर्मजोशी से वे तो बहुत खुश हैं, जो दोनों के रिश्तों में मधुरता देखना चाहते थे, लेकिन उनका दांव फेल होता दिख रहा है, जो दोनों की कुश्ती का आनंद लेते हुए अपना अखाड़ा सुरक्षित रखे हुए थे। अब ये गर्मजोशी क्या रंग दिखाएगी, वो कहानी फिर कभी। अभी याददाश्त के लिए इतना बताए देते हैं कि इंदौर में स्वर्गीय माधवराव सिंधिया की जो जीवंत प्रतिमा लगी है, वो काम बीजेपी के शासनकाल में हुआ था। भले ही उसे बनाया इंदौर विकास प्राधिकरण ने था, लेकिन उसमें कोशिशें कैलाश विजयवर्गीय की ज्यादा थीं। और तब से ही अलग-अलग दलों में रहने के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के दिल में विजयवर्गीय के प्रति विशेष सम्मान था। अब तो दल एक हो गया है। शायद दिल भी। इंतजार करिए, दिल की बातें बाहर आने का।





कथा की राजनीति: वो जमाना और था, जब राजनीति की कथाएं चलन में होती थीं। अब तो कथा की राजनीति चल रही है। अभी इंदौर के देपालपुर में भीड़-भरी कथा हुई। कथा उन्हीं महाराजजी की थी, जिनकी कथा में सीहोर में खूब राजनीतिक और प्रशासनिक हलचल मची थी। देपालपुर में भी खूब भीड़ हुई। जिस ट्रस्ट ने कथा करवाई, उसके अध्यक्ष बीजेपी के पूर्व विधायक मनोज पटेल हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि ट्रस्ट का नियम यह है कि वर्तमान विधायक उसके स्वमेव अध्यक्ष हो जाते हैं। होना चाहिए था कि कांग्रेस विधायक विशाल पटेल को, लेकिन उन्होंने अपनी माताजी को उपाध्यक्ष बना दिया।





अभिनेता में राजनीति की तलाश: मप्र के छोटे से गांव से निकलकर फिल्मी दुनिया में धमाल मचाने वाले एक अभिनेता के तमाम शुभचिंतक और मित्र इन दिनों उनमें राजनीति की संभावनाएं तलाश रहे हैं। वैसे अभिनेता का मन भी राजनीति करने का तो है, लेकिन वो सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं। वैसे अभी अभिनेता जी को इंडस्ट्री में काम भी खूब मिल रहा है और पुरस्कार भी। अभिनेता के बीजेपी-कांग्रेस दोनों दलों के नेताओं से अच्छे संबंध हैं। पत्रकारों समेत हर बड़े वर्ग में उनके फैन मौजूद हैं। इस अभिनेता को अपनी शानदार अदाकारी के लिए कई बड़े पुरस्कार भी मिल चुके हैं। वो अपनी खनकदार आवाज और शानदार व्यक्तित्व के लिए भी पहचाने जाते हैं। वैसे इनका राजनीति में टिककर लंबी पारी खेलने का मूड है। कैलाशवासी हो चुके एक संत के ये परम प्रिय, स्नेही, विश्वसनीय और कृपा पात्र रहे हैं।





महिला आईएएस पर नहीं चला प्रभाव: सरकार को अच्छे प्रशासन का रास्ता दिखाने वाले संस्थान के वाइस चांसलर इन दिनों महिला आईएएस से खासे परेशान हैं। वीसी साहब ने अपने संघ से करीबी रिश्तों की धमक दिखाकर सरकार के आला अफसरों तक को चमका रखा है, लेकिन वे उनके संस्थान में पदस्थ महिला आईएएस के आगे बेबस हैं। अब साहब महिला आईएएस के खिलाफ प्रशासनिक मुखिया के दरबार में जा पहुंचे हैं। रसूखदार वीसी का मामला आते ही बड़े साहब ने महिला आईएएस से जानकारी तलब की तो पता चला कि वीसी गलत तरीके से दो संस्थानों में तीन वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके यात्रा के बिल पास करने के लिए दबाव बना रहे हैं। महिला आईएएस ने नियमों का हवाला देते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया। मामले को सुनने के बाद बड़े साहब ने भी चुप्पी साध ली है। 





रीडर बताता है फाइलों का वजन: राजधानी से नजदीक एक संभाग के कमिश्नर अपने ​रीडर के बगैर हिलते नहीं है। जब भी कोई महत्वपूर्ण फाइल साहब के पास आती है तो पहले उनका रीडर फाइल का वजन देखता है। यदि फाइल वजनदार है तो साहब ही इसे डील करेंगे। हल्की फाइलों को वे अपने अधीनस्थ एडिशनल कमिश्नर के पास सरका देते हैं। हालात ये हैं कि अब अधीनस्थ कहने लगे हैं कि हमसे अच्छा तो साहब का रीडर है...मलाई के बाद की खुरचन उसे जो मिल रही है। हमारे हिस्से में तो हम्माली ही है।



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