हरीश दिवेकर। इस समय हर कोई यही पूछ रहा है कि रूस करना क्या चाहता है। यूक्रेन पर बमबारी होते हुए 11 दिन हो चुके हैं। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की अकड़ है तो यूक्रेनी राष्ट्रपति वेलोडिमिर का जुझारूपन। इधर, भारत अपने छात्रों को देश लाने में लगा है। कुछ लोग इसे अच्छा बता रहे हैं, कुछ कह रहे हैं, इस काम को जल्दी भी कर सकते थे। 4 राज्यों में वोटिंग खत्म हो गई है, सिर्फ यूपी में एक चरण बाकी है। लोग नतीजे के इंतजार में हैं, लेकिन भैया, वो तो 10 को ही आएगा ना। मार्च आता है तो फिजाओं में एक लाइन गूंजने लगती है- होली कब है? तो रंगों की तैयारी भी हो रही है। इस बीच मध्य प्रदेश में भी रंगों की छटा बिखरी पड़ी है। आप तो सीधे अंदरखाने उतर आइए।
कौन लगा रहा महाराज की इमेज पर बट्टा: महाराज के तेजी से बढ़ते कदमों से दिग्गजों की धड़कनें बढ़ना शुरू हो गई हैं। उनके सियासी दुश्मन उनकी हर बात-हरकत पर बारीक नजर रखे हुए हैं। यानी छोटे से मौके पर चौका मारने की पूरी तैयारी है। हाल ही में यूक्रेन का एक वीडियो देशभर में वायरल कर ये बताने की कोशिश की गई कि महाराज ने एक युवती को चंद सेकंडों में कई बार टच किया। आखिर में हाथ मिलाकर दूसरे हाथ से थपथपाया भी। प्रदेश में उन्हीं के पार्टी के नेताओं ने इस वीडियो को जमकर वायरल भी करवाया...!! इससे महाराज को कितना नुकसान हुआ वो तो पता नहीं, लेकिन विरोधियों को जरूर ठंडक मिली। महाराज भी समझ गए कि उन्हें गैरों से नहीं, अपनों से सावधान रहना होगा।
गर तुम न होते...: सीहोर की कथा में ट्रैफिक उलझने के बाद जो राजनीतिक कथा लिखी गई, अब उसके पीछे अब कई कथाएं चल रही हैं। जिस तरह से कथास्थल में लेने-देने की मची और मामला गर्म हुआ, उसके बाद लग रहा था कि वहां के दोनों प्रशासनिक मुखियाओं का रुखसत होना तय है... क्योंकि मामा हमेशा फारम में रहते हैं। मंच से ही कलेक्टर, कमिश्नर के फैसले कर रहे हैं। ऐसा हो भी जाता, लेकिन उससे पहले ही पार्टी के अंदर और बाहर से बयानों की जो लहर चली, उसके बाद सरकार ने कार्रवाई के बजाए नया बायपास बना दिया। दोनों मुखिया को मौके पर भेजकर सॉरी, सॉरी करवा दिया। अगर मामले में कार्रवाई हो जाती, तो साबित हो जाता कि अंदर-बाहर वाले जो कह रहे थे वो सही था, तभी तो अफसर इधर-उधर किए। कहने वाले कह रहे हैं- गर, बाहर वाले न होते तो कथा कुछ और होती। खैर, अंत भला तो सब भला।
ऊपर से बनी बात, ऊपर से ही बिगड़ी: कांग्रेस में आग बुझी नहीं हैं। आंसू भी निकल रहे हैं। गुस्सा भी आ रहा है। प्रदेश महिला कांग्रेस की मुखिया को जिस तरह रुखसत किया गया, उसके बाद बातें बाहर आ रही हैं। मुखिया दुखी हैं, कह रही हैं, हटाना था तो बनाया क्यों। मैं तो पहले ही इस पद पर रह चुकी थी। कार्यकाल भी दमखम से पूरा किया था। क्या कठपुतली बनकर काम करती? दूसरे बता रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस के पुराने प्रभारी और प्रदेश के ही एक दिग्गज का पुराना हिसाब-किताब बाकी था। प्रभारी ने अपनी ठसक और बड़े संपर्कों से इन्हें पद दिलवा दिया तो दूसरे ने उसे दिल पर लेकर छुट्टी करवा दी। छुट्टी करवाने वाले का साथ एक और नेता ने दिया, जिनके तार महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष तक हैं। कौन सही, कौन गलत, ये कांग्रेस जाने लेकिन बड़ों की लड़ाई में मैडम का बड़ा नुकसान हो गया। कांग्रेस की राजनीति में आपस की राजनीति नहीं करने वाले कुछ ही तो नेता हैं, उनके साथ भी ऐसा सलूक। ये हम नहीं, कुछ कांग्रेसी ही कह रहे हैं। हमें का लेना-देना...।
महिला अधिकारी पर मंत्री मेहरबान: जड़ी-बूटी से इलाज करने वाले विभाग की महिला अफसर पर एक मंत्री मेहरबान हैं। हालत यह है कि महिला अफसर जरा सा परेशान होती हैं तो मंत्री जी बैचेन हो जाते हैं। एक एडमिशन घोटाले में महिला अधिकारी का नाम आया तो उसे बचाने के लिए खुद कैबिनेट मंत्री विभाग के राज्य मंत्री के बंगले जा पहुंचे। महिला अधिकारी की इतनी जोरदारी से पैरवी की, राज्य मंत्री को मानना ही पड़ा। विभाग से अब महिला अफसर को इस घोटाले से बाहर करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। बहरहाल, महिला अधिकारी इससे बच पाती है कि नहीं वो तो आने वाला समय बताएगा, लेकिन मंत्री जी का महिला अधिकारी पर मेहरबान होने का मामला सार्वजनिक होने से मंत्री जी को जरूर नुकसान पहुंचा सकता है।
कलेक्टर पर मेहरबान कौन: मंत्रालय में इन दिनों खासी चर्चा है कि आए दिन मुख्यमंत्री को विवादों में लाने वाले कलेक्टर पर आखिरकार मेहरबान कौन है। पनीर फैक्ट्री मालिक को संरक्षण देने का मामला ठंडा नहीं हुआ था कि पंडितजी की कथा बीच में रुकवाकर बवाल खड़ा कर दिया। इसमें इंदौर के भिया से लेकर साध्वी भी मैदान में उतर आईं, लेकिन मजाल है कि कलेक्टर की दाढ़ी पर तिनका भी नजर आया हो, वो अपने ही अंदाज में कलेक्टरी कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या मुख्यमंत्री खुद नजरअंदाज कर रहे हैं या फिर किसी और बड़े आका की मेहरबानी कलेक्टर पर बनी हुई है, जिसके चलते उन्हें हटाना सूबे के मुखिया के लिए आसान नहीं हो रहा है।
नए खेल की तैयारी: निगम का नाम लघु जरूर है, लेकिन इसमें खेल बड़े बड़े होते हैं। हों भी क्यों ना, जब साहब ही विशेष हो तो खेला करना तो बनता ही है। किसानों को चायनीज उपकरण सप्लाई करने के मामले में EOW ने जांच बैठा दी है, लेकिन साहब को इसकी चिंता नहीं है। अब वो नए खेल की तैयारी में जुट गए हैं। प्रदेशभर के स्कूलों में कौन सी कंपनी किस जिले में फर्नीचर देगी इसका पूरा खाका साहब ने स्कूल वाले साहब के साथ मिलकर तैयार कर लिया है। सारी मलाई ऊपर ही काट ली जाएगी, कलेक्टर सिर्फ साइन करेंगे। अधिकार छिनेगा तो नाराजगी भी बढ़ेगी तो साहब के विशेष खेल का मामला अब मंत्रालय तक पहुंच गया है।
टूर के साथ तफरी भी: प्रदेश का पर्यटन सुधरे या ना सुधरे, हम तो पर्यटन कर ही लें, ये हाल है पर्यटन विभाग की एक जिम्मेदार महिला अधिकारी का। सरकारी खर्च पर खुद तो गईं ही, साथ में पतिदेव को भी ले गईं। वैसे गलत भी नहीं है, पति साथ रहेगा तो काम पर ज्यादा मन लगेगा। लोगों का क्या है, किसी का अच्छा होता देख नहीं सकते। मैडम आप तो अच्छे से पर्यटन की ट्रेनिंग करके आइए, जिससे प्रदेश का पर्यटन बेहतर हो सके। हम आपकी सुविधा के लिए बता दें कि कलेक्टर रहते हुए मैडम माफिया से पंगा लेकर दबंग महिला अफसर बनी थीं।