हरीश दिवेकर। आधा अगस्त बीत चुका है। सावन तो बरसा ही, भादों भी अच्छा बरस रहा है। इस बार तो बड़ा खेला हो गया। बीजेपी के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से दो बड़े नाम शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी हटा दिए गए। कुछ जानकार इसे सामान्य घटना बता रहे हैं, लेकिन ये ‘सामान्य’ नहीं है। राजनीति की बिसात पर जमे समीकरण कुछ वक्त बाद असर दिखाते हैं। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के घर सीबीआई पहुंच गई। सिसोदिया ने कहा कि अफसरों का बर्ताव अच्छा था। दो-चार दिन में गिरफ्तारी भी हो जाएगी। इधर, मध्य प्रदेश में एक जिले में वन अमले की बंदूक से एक आदतन अपराधी मारा गया। अब इसे जानकारी की कमी कहें या राजनीति, मृतक के परिजन को बड़ा मुआवजा दे दिया गया। वहीं, जिले के पूरे वन अमले ने अपने हथियार लौटा दिए, वजह बताई कि जब चलाना ही नहीं है तो रखकर क्या करेंगे। वैसे तो मध्य प्रदेश में अंदरखाने भी कई खबरें पकीं, कुछ की खुशबू फैली, कुछ की फैलते-फैलते रह गई, आप तो सीधे अंदर उतर आइए....
दिल्ली ही हो रही दिल की बात
बीजेपी के दिल्ली वालों के दिल बड़े कठोर हैं। भोपाल पर रहम ही नहीं कर रहे है। भोपाल में पार्टी वालों के सिर पर ऐसे कलंदर को सवार कर दिया है कि सत्ता वालों ने शीशे में उतारने के लिए तमाम घोड़े खोल लिए लेकिन मजाल है किसी की सवारी कुबूल हो जाए। पहले वालों को तो आसानी से घेर लिया जैसे ही दिल्ली से कोई भोपाल आकर बैठा और इधर सत्ता ने उन्हें सुख-चौन देकर शीशे में उतार लिया। लेकिन इस बार तो हिमालयीन मानव की स्थापना हो गई है। पर्वत की तरह तनकर डटे हैं, ना सुख के आगे झुक रहे हैं, ना सुविधा की मांग कर रहे हैं। प्रबंधन के विशेषज्ञ कई नेता भी इनके दरबार में गाड़ी दौड़ा-दौड़ाकर थक गए। अब तो साहब ने इन गाड़ियों को भी रेड सिग्नल दिखा दिया है। भोपाल वालों की पीड़ा ये है कि दिल में ना उतरें ठीक है, हमें न उतारें वो भी ठीक है, पर भोपाल की सारी बातें दिल्ली जा रही हैं, ये तो ठीक नहीं है। कोई इन नेताओं का ज्ञानवर्धन करिए, दिल्ली वालों ने दिल्ली से दिल की बात करने के लिए ही इन्हें भोपाल भेजा है। आपके भगत बनने के लिए नहीं भेजा कि आपको सब सुहाना लगे।
चालीस करोड़ किसकी जेब में?
मोटर वाहन वाले हिसाब-किताब में इन दिनों 40 करोड़ के गबन की लुकी-छिपी चर्चा हो रही है। कहानी यह है कि पहले कोई साहब थे, उनसे हिसाब मांगा जा रहा है, वे कुबूल रहे हैं कि मंत्री को पूरा खाता-बही बता दिया था, धन जितना काला था, उतने ही सफेद तरीके से हिसाब दे दिया है। मंत्री जी कह रहे हैं, इन साहब का गणित हमेशा ही गड़बड़ रहता है। इस बार भी है। काली मां की कसम, काला धन इधर कू नहीं आया..किधर कू गया ये साहबईच्च बताएंगे। बात मुखियाजी तक पहुंची तो उनके कान खड़े हो गए। चालीस करोड़ पर मंत्री-अफसर के चार-चार हाथ होते देख मुखियाजी ने भी इशारा कर दिया है कि जब तक हिसाब-किताब साफ नहीं हो जाता, तब तक अफसर जी की नौकरी उनके नहीं, अपने हिसाब से करवाओ। बोले तो सूखाग्रस्त जगह पर बैठाओ। अब हो ये रहा है कि साहब सूखे इलाके से बाहर आने के लिए ज्यों ही जोर लगाते हैं, उतनी ही जोर से पूछा जाता है..वो चालीस करोड़..। साहब फिर गुमसुम हो जाते हैं। ताजा खबर यह है कि साहब ने दिल्ली दौड़ लगाई है। वहां अपने और मंत्री के आका को हिसाब दिया है। आका ने कहा है- मैं अपने हिसाब से मुखिया से बात कर लूंगा। अभी तक तो नहीं की।
मंत्री नहीं मदिरा में है दम...
एक मंत्रीजी को एक अफसर भाए नहीं। चुनावी मौसम में उन्होंने चुनाव आयोग से शिकायत की और उन्हें सूखाग्रस्त विभाग में पदस्थ करवा दिया। अफसर ने कुछ दिन शांति बनाए रखी। फिर ज्योंही चुनाव निपटे, मंत्रीजी को जमीन दिखाई और सूखाग्रस्त कुर्सी छोड़ राजधानी में ही हरी-भरी पोस्टिंग ले ली। अफसर की ये कलाबाजी मंत्रीजी को समझ नहीं आ रही है। हां, उनके जमूरे जरूर कहने लगे हैं कि मंत्री जी से ज्यादा मजबूत तो मदिरा निकली। अफसर को मदमस्त कर दिया।
छुपा-छुपी खेलें आओ...
वे बहुत मृदुभाषी हैं। थोड़े-थोड़े सरल भी लगते हैं, सीधे-साधे तो हैं ही। ऐसा उनके मातहत कहते थे। लेकिन इतने सरल निकले कि उन्हें समझना कठिन हो गया। अब जब आलीशान बंगला जमीन से निकलकर आसमान ताकने लगा तो लोगों को समझ आया कि इतने सीधे हैं कि सीधे अपना काम कर गए कि और दाएं-बाएं वालों को खबर तक नहीं हुई। ये मामला मंत्रालय में उच्च पदस्थ एक अफसर का है। पंडित जी के बंगले के चर्चे दूर तलक हो रहे हैं। अभी तक तो आईएएस के उन बंगलों के चर्चे होते थे, जो व्हिसपरिंग पॉम में बने हैं, पर जैसे ही पंडितजी के बंगले ने सिर उठाया, सब बौने हो गए। साथी कह रहे हैं कि साहब सीधे बनकर उल्टे-सीधे काम करते रहे और खबर ही नहीं हुई। होती भी कैसे कभी किसी की तेरी-मेरी में पड़े ही नहीं। बस मेरी-मेरी में लगे रहे।
सैंया भए मुक्त, अब डर काहे का
श्रीमतीजी से कानूनी तौर पर मुक्त होने के बाद अब आईएएस साहब की महफिल देर रात तक संचालनालय में ही जमने लगी है। सरकारी काम का समय खत्म होते ही बाकी दरबारी तो रुखसत हो जाते हैं, लेकिन कुछ खास बंदों को सेवा-भाव के लिए दफ्तर में ही रुकना पड़ता है। फिर मिलते हैं चार-यार और जमती है महफिल। जब सुना कि साहब की महफिल की खुशबू बड़े साहब तक भी पहुंच गई तो लगा कि महफिल उजड़ेगी, लेकिन हुआ उल्टा...। पता चला कि साहब खुद भी देर तक अपनी महफिल अलग जमाते हैं। अब बोलो..पूरे कुएं में ही भांग पड़ी है तो कौन नहीं झूमेगा। अब आपमें दम है तो दोनों साहबों से ऊपर बहुत सारे साहब हैं, वहां बात पहुंचाओ, शायद बात बन जाए।
यहां भी आरक्षण...
इक चिट्ठी इन दिनों चर्चा में है। चिट्ठी यह है कि हमें सूचना के अधिकार पाने वालों और पत्रकारों से बचाओ। ये हमारी बिरादरी वालों के बारे में चुन-चुनकर सूचनाएं मांग रहे हैं, फैला रहे हैं। चिट्ठी लिखने वाले अजाक्स के कोई कर्ताधर्ता हैं और वे यहां तक कह गए हैं कि आरटीआई और पत्रकार संप्रदाय की सूचनाओं के आधार पर विधायक विधानसभा में मामला उठा देते हैं, जिससे हमारी बिरादरी के अफसरों पर दनादन केस दर्ज हो रहे हैं। पहले पूछो, फिर केस दर्ज करो। चिट्ठी बाजार में चलने के बाद ये चटखारे चल रहे हैं कि शिकायत जाति-बिरादरी की नहीं भ्रष्टाचार की हो रही है। इसमें कोई कष्ट है क्या... या भ्रष्टाचार में भी आरक्षण चाहते हो।