हरीश दिवेकर। इसे मौसम विभाग की मेहरबानी कहें या प्रकृति की कि मॉनसून सक्रिय हो गया है। धूप-उमस भी हो रही है, बारिश भी हो रही है। इस समय देश-दुनिया में श्रीलंका ही छाया है। लोग राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर चुके हैं, उनके बिस्तर पर सो रहे हैं, स्वीमिंग पूल में नहा रहे हैं। देश में सरकार को कोई नामोनिशान नहीं बचा है। अब उधार के पैसों से किसका घर चला है...। इधर मध्य प्रदेश में निकाय और पंचायत चुनाव चल रहे हैं। कांग्रेस को खोई साख पाना है तो बीजेपी को साख बचाना है। दोनों ही पार्टियां कस के मेहनत कर रही हैं। बयानबाजियों का दौर चरम पर है। सत्ता के सेमीफाइनल में कोई रिस्क भी नहीं लेना चाहेगा। वैसे इस बीच कई और भी खबरें पकीं, आप तो सीधे अंदरखाने में उतर आइए...
ध्यान दीजिए, योग लगाकर इलाज कीजिए
साहब बड़े हैं। अभी कुर्सी पर हैं। जल्दी ही सेवानिवृत्ति को प्राप्त होंगे। अब बड़े हैं तो काम भी बड़े ही करेंगे ना। जीवनभर बड़ी कुर्सी संभाली, लाभ-शुभ भी बड़े-बड़े ही किए। सुना है कि बड़ी जमीन खरीदी है बिशनखेड़ी में। पूरी 75 एकड़। इतनी बड़ी जमीन को जमीर से जोड़े रखने के लिए साहब ने ध्यान लगाना शुरू कर दिया है। गुणा-भाग भी कर रहे हैं। मतलब..ऐसा कुछ इलाज कर रहे हैं कि माल भी बचा रहे और मान भी। सुना है साहब वहां ध्यान-योग से लेकर प्राकृतिक इलाज का कोई केंद्र शुरू करने वाले हैं। अपने दक्षिणी गुरु से लाइन लेकर इस लाइन पर चलने वाले साहब की योजना अभी आकार लेने से दूर है, लेकिन साहब के उज्ज्वल भविष्य की कामना करने वालों ने जमीन से जुड़े साहब पर ध्यान लगाना शुरू कर दिया है । पहला इलाज जमीन के दस्तावेजों की पड़ताल से शुरू होगा। उसके बाद दस्तावेज उन एजेंसियों और दिल्ली की उन बड़ी मेज पर पहुंचाए जाएंगे, जहां से शर्तिया इलाज की गुंजाइश हो। हम ना साहब का नाम बताएंगे, ना शुभचिंतकों के। इतना समझ लीजिए साहब सचिवालय मे बड़ी कुर्सी पर बैठे हैं।
चुनाव तुम्हारा, माल हमारा
नगर निगम चुनाव में प्रदेश के एक मंत्री ने नया नारा दिया। चुनाव तुम्हारा, माल हमारा। नहीं समझे। हम बताए देते हैं। मंत्रीजी पिछले चुनावों के दौरान खलघाट के रेस्ट हाउस में प्रायः पाए गए। जाते तो खाली हाथ थे, लेकिन लौटते भरे बैग के साथ थे। जब तक मंत्रीजी रेस्ट हाउस में रहते..मां कसम बिलकुल रेस्ट नहीं कर पाते थे। ठेकेदारों, कारोबारियों ने उठना-बैठना दुश्वार कर रखा था। जिसे देखो लिफाफा लेकर आ रहा था और मंत्रीजी थे कि गिन-गिनकर परेशान थे। नरम दिल मंत्री हैं, किसी का दिल नहीं दुखा सकते थे, सो सबकी भेंट ग्रहण की। लगे हाथ यह भी बोलते जाते कि मैं तो इस मोह-माया से दूर ही रहता हूं, पर क्या करूं मुखियाजी का संदेश है, बिना धन आपका कोई धौरी नहीं। उसी संदेश को आत्मसात कर लिया है। मंत्री जी के इन मुहावरों में बेचारे वे स्थानीय प्रत्याशी फंस गए, जो उस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे। वे जब इन ठेकेदारों, कारोबारियों के पास शुभ-लाभ की उम्मीद में पहुंचे तो पता चला कि हुजूर लेट हो गए हो। मंत्री जी हूटर बजाए हुए आए और लक्ष्मी लेकर लापता हो गए। ठीक भी है, मंत्रीजी को भी तो सवा साल बाद चुनाव लड़ना है, काम तो ऐसा कुछ किया नहीं कि जीत पाएं...लक्ष्मी का ही सहारा है। इसलिए तुम्हारे चुनाव के बहाने अपना इंतजाम कर लिया। हैं ना कमाल के मंत्री । हम बोलते हैं तो लोग कहते हैं कि 'हरि' बोलता है।
जिस डाल पर बैठे हो, उसी को काट रहे हो
मुहावरा पुराना है, पर एक नए मामले में ऐसी जगह बैठा है कि नए-पुराने सब को चुप कर दिया। कहानी कुल जमा यह है कि हाल में नगरीय निकाय चुनाव में जो खेल-खराब हुआ ना पर्ची नहीं बंटने का, कम वोटिंग का और कई वोटर्स को मिस्टर इंडिया की तरह गायब कर देने का, उसका ठीकरा फोड़ने के लिए नेताजी लोग किसी सिर की तलाश कर रहे थे। नजर पड़ी चुनाव आयुक्त पर। सारे के सारे नेता अपने ठीकरे लेकर उनके सिर की तरफ बढ़े। आयुक्त भी पुराने खिलाड़ी रहे हैं। कई ठीकरेबाजों की ठीक किए हैं अपने जमाने में। इन ठीकरेबाजों को दो टूक कह दिया, अफसरों पर आरोप लगा रहे हैं, अफसर आपके, सरकार आपकी। जितना शोर मचाओगे, सरकार की उतनी फजीहत होगी। इधर साहब बोले, उधर सदन में सांय-सांय सन्नाटा छा गया। नेताओं की बोलती बंद होते ही दूसरे अफसरों की बोलती बोलने लगी- जब मतदाता सूची तैयार हुई, तब सारे नेताओं को संदेसे भेज-भेजकर परेशान हो गए कि हुजूर आ जाओ, देख जाओ। कुछ ऊपर-नीचे करना है तो पहले ही बता दो। तब तो सब चुनाव जीत रहे थे। अब सब ऊपर-नीचे हो रहे हैं। हां, अफसर इस बात से खुश हैं कि साहब के एक ही जवाब ने कई अफसरों के सिर बचा लिए ।
इधर हम हारे, उधर तुम हटे
प्रदेश के मुखियाजी जब मतदान के अगले दिन जबलपुर पहुंचे तो उनके लिए समाचार शुभ नहीं थे। लोकल नेताओं ने बताया कि कलेक्टर साहब, निगमायुक्त साहब ने रायता ढोल दिया है। ना वोटर घर से निकला, ना साहब। चिट्ठी-पत्री घर पहुंचने की बात तो छोड़ो, जो दूसरे इंतजाम करना थे, वो भी ढंग से नहीं हुए। इस शिकायत में ये संदेश छुपा था कि जबलपुर में हमारे महापौर प्रत्याशी हार-गति को प्राप्त हो जाएं तो लोकल टीम को मत कोसना। सब अफसरों का किया धरा है। हार-गति की बात सुन हृदयगति कुछ अनियंत्रित हुई, फिर नियंत्रित करते हुए कलेक्टर-कमिश्नर की तरफ घूरकर बोले-अगर परिणाम मनमाफिक नहीं आए तो आप लोग अपना बोरिया-बिस्तर बांध लेना। अब इस चेतावनी में भी चेतावनी छुपी है। पहली तो तबादले की है, दूसरी यह कि मतगणना में अतिरिक्त योग्यता दिखाकर बच सकते हो । पता नहीं कांग्रेस ने इस पाठ से कोई शिक्षा ली है या नहीं। अरे, मतगणना के दौरान..जागते रहो...जागते रहो...। हां, जी। सही पकड़े हैं।
कवि का कमाल
पवन जैन कवि हृदय सीनियर आईपीएस हैं। कलम उठाते हैं तो कविता निकलती है, कठोर आदेश कम ही निकलते हैं, लेकिन अभी कलम से विभाग में कमाल कर रहे हैं। कमाल भी ऐसा कि कई पुराने अफसर नींद में से उठ-उठकर बड़बड़ा रहे हैं कि...शिवराम है कि हटा दिया...गंगाराम ड्यूटी पर क्यों नहीं आया। इस बड़बड़ाने की वजह है। इन पुराने अफसरों के यहां सेवानिवृति के बाद भी होमगार्ड और पुलिस के कई जवान झाडू-पौंछा, सब्जी और मेम साब को लाने ले जाने में अपना जीवन खपा रहे थे। पिछले दिनों प्रदेश के मुखिया जी को किसी हरिराम ने कान में मंत्र फूंक दिया था कि बंगलों की बेगार को वहां से हटाकर मैदान में लगा दें तो सरकार के स्वास्थ्य में थोड़ा सुधार हो सकता है। बस, मुखिया जी के श्रीमुख से निकल गया फरमान। सारे बंगलों से अपनों को बुलाओ और अपने काम पर लगाओ। इसी फरमान को सख्ती से निभा रहे हैं कोमल ह्रदय पवन जैन। कई सेवानिवृत्त अफसरों के यहां से होम गार्ड जवानों की वापसी हो गई है, पुलिस जवानों की फाइल चल रही है। पुराने अफसरों की चिंता यह है कि जिस पवन वेग से आदेश निकल रहे हैं, बाकी जवान भी अपने मूल काम पर होंगे और हमें खुद ही झोला लेकर भिंडी-लौकी का भावताव करने जाना पड़ेगा। वैसे बता दें कि पुराने अफसर ही नहीं, एक खबरनवीस के यहां भी दो नर बेगार करते पाए गए। वे भी खबर छोड़कर बाजार कूच करने वाले हैं।
कटनी में कट ना जाए नाक, रतलाम से रात की नींद हराम
कटनी, रतलाम को बीजेपी भी घर की सीट मानती रही है। इसलिए कुछ काम करने के बजाय घर में बैठी रहती है। इस बार जब खबर मिली कि दोनों ही शहरों से जनता उन्हें बेघर करने वाली है तो लगाई दौड़ रतलाम और कटनी की तरफ। संगठन के मुखिया ने कटनी में रात काली की। रतलाम में बड़े नेताओं से सड़क नपवाई, फिर भी मौसम अनुकूल नहीं हुआ तो मर्ज तलाशा गया। पता चला पार्टी में सब नेता हो गए हैं, कार्यकर्ता बचे ही नहीं हैं। जो बचे हैं उन्हें इन बड़े नेताओं ने बचा-खुचा मानकर फेंक दिया, इसलिए वे भी घर-गृहस्थी के कामों में लग गए। यहीं से पार्टी के बेघर होने की राह बनी। तय यह हुआ है कि कटनी-रतलाम को अभी तो अपन ही भाग-दौड़ कर बचा लें, उसके बाद कार्यकर्ताओं के चरण स्पर्श का अभियान चलाया जाएगा, ताकि जो अभी हो रहा है, वो 2023 के विधानसभा चुनाव में न हो। अब इन्हें कोई बताओ कि रतलाम में जीतने वाले के बजाय नेताजी के निजी भक्त को टिकट देने का दंड भोग रही है पार्टी।