गोया कि आराम भी कर लीजिए, ‘इकबाल’ कब तक बुलंद रहेगा, डॉ. साब को कड़वी खुराक

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गोया कि आराम भी कर लीजिए, ‘इकबाल’ कब तक बुलंद रहेगा, डॉ. साब को कड़वी खुराक

हरीश दिवेकर। जून का पहला पखवाड़ा बीतने को है और गर्मी की लू उतरने का नाम नहीं ले रही। छाने वाले तो ठीक हैं, बरसाने वाले बादलों का आसमान में अता-पता नहीं है। देशभर में इस समय नूपुर शर्मा के बयान की चर्चा है। पैगंबर मोहम्मद पर दिए बयान पर बवाल हो गया है। एक समुदाय की भृकुटियां तन गई हैं तो देश-विदेश के कुछ इंटेलेक्चुअल नूपुर के समर्थन में उतर आए हैं। उधर, 4 राज्यों में राज्यसभा चुनाव की वोटिंग को लेकर भी हंगामा रहा। राजस्थान और कर्नाटक में क्रॉस वोटिंग हो गई। राजस्थान में तो बीजेपी विधायक को पार्टी से बाहर कर दिया गया। इधर, मध्य प्रदेश में पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव की बयार बह रही है। 100 से ज्यादा पंचायतें समरस पंचायतें बन गईं यानी यहां निर्विरोध निर्वाचन हो गया। इनमें भी ज्यादातर महिला सरपंच बनीं। इसके इतर भी प्रदेश में कुछ खबरें बनीं, कुछ सुगबुगाहट रही, आप तो सीधे अंदर चले आइए...





संदेसे आते हैं..                





इंदौर बीजेपी के दद्दा एक नेताजी को इस बार किसी समिति में नहीं लिया गया। दद्दा हर चुनाव के हर टिकट में अपना नाम चला देते हैं। उम्र और राजनीति दोनों किनारे पर हैं । चेहरे पर सिलवटें आ रही हैं, पर मजाल है कि कुर्ता-पैजामे पर सिलवटें आ जाएं। इधर, चुनाव आते हैं, उधर दद्दा दिल्ली-भोपाल एक किए देते हैं। कभी पूरे टिकटों के मामले में पूरे प्रदेश के भाग्य विधाता रहे ये नेताजी के बारे में अब तो कार्यकर्ता भी कहने लगे हैं कि देखना भाई...अपने-अपने वार्ड संभालकर रखना...बड़ा टिकट नहीं मिला तो ऐसा नहीं हो कि वो पार्षदी के लिए जोर लगाने लग जाएं। पता नहीं कौन उनका फैमिली फिजिशियन है, जिसने सलाह दे रखी है कि बिना टिकट के स्वास्थ पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, कुछ ना कुछ मांगते रहा करो, सेहत ठीक रहेगी। वैसे इशारों में बता दें कि दद्दा सांसद रह चुके हैं, महापौर रह चुके हैं फिर भी कभी विधायकी तो कभी सांसदी, कभी फिर मेयर..अब का बताएं दद्दा...। पार्टी भी परेशान हो गई थी, सो इस बार सारी कमेटियों से दूर रखकर संदेसा भिजवा दिया है कि...आराम करिए...आराम बड़ी चीज है।





अब आया ऊंट फाइल के नीचे..





किस्सा यह है कि एक आईएएस साहब हैं। किस्सा यह सुनाते रहे हैं कि उनके तार सीधे मैडम से जुड़े हैं। मतलब कोई आंख उठाकर देखने का नईं...समझा क्या...। उनके इशारों को कुछ ने समझा और कुछ ने इतना ज्यादा समझ लिया था कि समय का इंतजार करने लगे। आ गया समय। बड़े साहब के पास इन मैडम मुग्ध साहब की सीआर पहुंची तो उनकी आंखों में चमक आ गई। अब आया ऊंट फाइल के नीचे। थोड़ा सा याद दिला दें कि जिन साहब को सीआर लिखना थी, वो किसी जमाने में वे बिजली विभाग की बड़ी सीट पर बैठते थे और ये साधक उनके अधीन होने के बाद भी उनकी किसी बात का ठीक से जवाब नहीं देते थे। समय बदला। बिजली विभाग से उठकर साहब हॉट सीट पर पहुंच गए। और उसके बाद...देवियों सज्जनों। हमारे सामने बैठे हैं, एक ऐसे महाशय जिनकी सीआर हमें लिखना है। क्या किया जाए। छह नंबर देकर लॉक कर दें। कर दिया। ना मैडम की लाइफ लाइन काम आ रही है, ना फोनो फ्रैंड। गेम से बाहर हो गए आईएएस साहब।





हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक...





गाना मीठा है। हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, खुदा करे के कयामत हो और तू आए...। मंत्रालय में लंबे समय से जमा कई ताजे-ताजे आईएएस इस कयामत का इंतजार कर रहे हैं। ये कयामत छह महीने बाद आ सकती है बड़े साहब के साहबजादे पर। ऐसा हम नहीं ताजा-तरीन आईएएस का समूह कह रहा है। पीड़ा यह है कि वे जो सारे के सारे अफसर मंत्रालय में धूल खा रहे हैं, उसके पीछे बड़े साहब का ही हाथ है और साहब के रुखसत होने में बोले तो रिटायर होने मे 6 महीने बचे हैं। वे जाएंगे और हम फारम में आएंगे। साहब के सुपुत्र भी तो आईएएस हैं। कहा-सुना जा रहा है कि साहबजादे की फाइल तैयार हो रही है। इधर, बड़े साहब ने विदाई के हार-फूल पहने और सुपुत्र का किया-धरा बाजार में आ जाएगा। वैसे साहब भी पुराने खिलाड़ी हैं। अपन तो इंतजार करते हैं कयामत से कयामत तक का। 





हम तुम्हारे लिए, तुम हमारे लिए..





इंदौर में दारू विभाग के अफसरों और फाइव स्टार होटल वाले का बवाल हो गया। बिना पिए ही दोनों ऐसे झूमे कि बात जिले के मुखिया तक पहुंच गई। मुखिया का अपना मजबूत मुखबिर तंत्र है। पार्टी की पूरी रंगत पलभर में उनकी टेबल पर लिखित में आ गई। लब्बोलुआब यह था कि दोनों साहब ने खाया-पीया, पर होटल का छह अंकों बिल देने की बारी आई तो अफसरी की आड़ में होटल वाले के छक्के छुड़ा दिए। मुखिया के लिए इतना बहुत था। चला मारी कलम। कोई ऑफिस अटैच, किसी के तबादले और सस्पेंड की अनुशंसा...। इधर, मुखिया जी कलम चली, उधर से तीन बड़े फोन घनघना उठे। रुकिए...। समझिए...। क्या कर रहे हैं...। अब क्या समझना। चल गई कलम। फोन के बाद रुकने, समझने का रास्ता यह निकाला कि जो कलम चल गई, उसे रोका तो नहीं जा सकता। हां, चुनाव बाद फिर कलम चलाकर सबको यथास्थिति में पहुंचा दिया जाएगा। हम तुम्हारे लिए.. तुम हमारे लिए..फिर जमाने का क्या है, हमारा ना हो...। मामला एक ही बिरादरी का बोले तो ठाकुरवाद का है भाई। जो निपटे वो भी, जिन्होंने निपटाया... बचाया... वो भी...। जय ठकुरास की...।





आपकी बीमारी, आप ही डॉक्टर.. खुद करो इलाज





बीजेपी में डॉक्टर साहब होते हैं। बीमारी के भी डॉक्टर हैं और ट्विवटर के भी। सोशल मीडिया पर भी दवाखाना चलाते हैं। ये डॉक्टरी कभी-कभी बीमारी बनकर गले पड़ जाती है। अभी-अभी नई बीमारी गले पड़ी है। डॉक्टर साहब ने कांग्रेस के साहब का इलाज करने के चक्कर में लिख मारा कि उन्होंने मेयर के टिकट बेचे हैं। बाकायदा रेट लिस्ट भी जारी कर दी। साहब को अच्छा मौका मिल गया, डॉक्टर साहब का इलाज करने का। इतना लंबा-चौड़ा प्रिस्क्रिप्शन लिखकर भेजा है कि डॉ.साहब को समझ नही आ रहा है कि कौन सा डोज पहले लेना है कौन सा बाद में। उस पर मुसीबत यह कि पार्टी के स्पेशलिस्ट भी बैकफुट पर हैं...। आपकी बीमारी है, आप डॉक्टर हो...आप ही इलाज भी करो। बोले तो कोई हिते (शी) नहीं बचा पार्टी में। 





टिकट ले लो.. टिकट..दूसरे से कम भाव में..





टिकट लेना है... मिल जाएगा। पार्षद का मिलेगा। बाजार भाव से कम में मिलेगा। टिकट ले लो..टिकट। हर जिले के में टिकट बिक्री की गुमटी खोलकर बैठे दलालों का स्टार्टअप चल पड़ा है। पार्षदी के इच्छाधारी इन गुमटियों की मुंडेर पर बैठे मिल जाएंगे। झक कुर्ते-पैजामे-जैकेट में बैठे गुमटी मालिक के पास कागज-पत्तर जमा हो रहे हैं और साथ में जमा रहे हैं दुकान। कितने दोगे...इतने में तो पंच का टिकट ना मिले..तुम पार्षदी का मांग रहे हो। अरे भैया, ऊपर भी तो देना पड़ेगा ना। यहां से नाम-दाम भेजूंगा तब तो फाइल आगे बढ़ेगी ना...। दूसरा इतने दे रहा है। चल रही है दुकान। गुमटीधारी का खेल समझो । टिकट मिल गया तो हमने दिलाया पैसा हजम। ना मिला तो थोड़ा काटकर बाकी वापस। धंधे का सीजन है, जितना कमा सको, कमा लो। देने वाले जो उधार बैठे हैं। 





सब कुशल-मंगल है





राजधानी में मुकाबले की सेज बिछी। मास्टरजी की शिकायत पर सेज समूह के स्कूल के खिलाफ कागज चले, फिर आयकर वाले भी पधार गए।  लंबा-चौड़ा हिसाब-किताब जांचने। क्या हुआ पता नहीं, लेकिन इतना पता है कि इस छापामारी से मुकाबले लिए सेज ने भी छापा-छापी शुरू कर दी है। भोपाल में होर्डिंग पर लटक-लटककर बताया जा रहा है कि सब कुशल-मंगल है। ना छापे का असर है, ना शिकायत का। बाकी कसर अखबार वालों ने पूरी कर दी है, घर में हुई आलीशान शादी की खबर बाहर वालों को पढ़वा-पढ़वाकर। अब ये शादी खाना आबादी अखबारों में ऐसे ही तो आबाद नहीं हुई होगी ना। कुछ तो शुभ-लाभ चला होगा। पता नहीं सेज वाले क्यों नहीं समझते कि सब को सब समझ आ रहा है। 



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