हरीश दिवेकर, देखते-देखते साल का पांचवां महीना आ गया। होली से पड़ रही गर्मी उफान पर है। नौतपा के पहले ही कई नौतपा तप चुके हैं। देश-प्रदेश की राजनीति में भी सरगर्मी है। बीजेपी, कांग्रेस तो छोड़िए बदला निकालने में आप भी पीछे नहीं है। पंजाब पुलिस ने दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता को उठा लिया। वो तो भला हो कोर्ट का कि प्रवक्ता जी को राहत मिल गई। महाराष्ट्र में उद्धव की नींद हराम कर गिरफ्तार हुए राणा दंपति भी रिहा हो गए। इधर, मध्य प्रदेश में कांग्रेस, किला जीतने की जद्दोजहद में जुटी है। राजा साहब ने ग्वालियर में मीटिंग कर डाली। इसमें क्षेत्र में सीटें बढ़ाने की रणनीति बनी। बीजेपी में भी बैठकों का दौर चला। कई खबरें पकीं, कुछ ने खुशबू बिखेरी। अंदरखाने की जानने के लिए आप तो सीधे अंदर चले आइए...
दिल है कि मानता नहीं
मामा सीएम फारम में हैं। पर कभी-कभी भूल जाते हैं कि कहां फारम दिखाना कहीं नहीं। अब मुरली के सामने गलत राग छेड़ोगे तो बाद में सुर-ताल तो सुधारना ही पड़ेंगे ना। कुछ दिन पहले भोले मामा पार्टी प्रभारियों की बैठक में बोल पड़े- एक वो प्रभारी थे, जो भाषण देकर चले जाते थे, एक ये प्रभारी हैं जो खूंटा गाढ़कर बैठ गए हैं। अब बोल तो गए, पर जब हॉल में हें-हें, ठी-ठी होने लगी तो समझ आया कि गलत जगह फारम दिखा दिया।
जल्दी से सुर संभालते हुए बोले- अच्छा है, संगठन के काम पर बारीकी से नजर रखते हैं। वैसे तब तक तीर कमान से और सुर जुबान से निकल चुका था। कहने वाले कह रहे हैं, मुरली से मामा का दबा-छुपा दर्द है। बीते महीनों की बैठक में मुरली ने मामा एंड कंपनी के कई मंत्रियों, विधायकों को खुलेआम ऐसा-ऐसा बोला कि उसका दर्द मामा के दिल से जा नहीं रहा। इसलिए दिल है कि मानता नहीं। कुछ ना कुछ बुलवा ही देता है । बाकी कसर प्रभारी के भारी-भरकम लवाजमें ने पूरी कर दी। बंगला, गाड़ी, गार्ड और भी ना जाने क्या-क्या। दर्द तो होगा ना।
बीत नहीं रहे दुख भरे दिन
सज्जन (वर्मा) के सितारे बहुत दुर्जन हो गए हैं। जिधर जा रहे हैं, खेल खराब हो रहा है। पहले सोचा था साहब..बोले तो कमलनाथ.. जब नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ेंगे तो उन्हें अपने सबसे प्राचीन शिष्य सज्जन की याद आएगी, पर नहीं आई। पद ले उड़े नवीनतम मित्र गोविंद सिंह। सज्जन के मामले में साहब के स्मृतिदोष लगातार हो रहे हैं। साहब के खेमे में अरुण यादव का सेंसेक्स काफी ऊंचा जा रहा है। इसी की काट के लिए सज्जन पहुंचे खरगोन, जो अरुण यादव की पुश्तैनी राजनीतिक विरासत है।
सोचा था दंगे के बहाने राजनीति भी हो जाएगी और अरुण यादव से हिसाब-किताब भी। पर वहां तो सौलह सौ के हजार हो गए। फायदे
के बजाए नुकसान हो गया। जिस गली में गए, उसी में हाय-हाय हो गई। बाकी कसर सोशल मीडिया ने पूरी कर दी, सारी फजीहत सरे बाजार करके। अब हिसाब देते रहो कि सब बीजेपी की चाल है। हो भी सकती है। तो फिर तुम काहे के नेता, जो विरोधी की चाल में उलझ जाते हो बार-बार। इस लेन-देन में बेचारे खरगोनी विधायक रवि जोशी का खाता-पन्ना गड़बड़ा गया। निमाड़ी सुर बता रहे हैं, दंगों ने खरगोन का कांग्रेसी मौसम बिगाड़ दिया है।
समझने वाले समझ गए..ना समझे वो..
अरे, हम कोई गाना-वाना नहीं गा रहे भाई। हम तो मुरली बजा रहे हैं। जो समझ ले वो ठीक जो न समझे वो अनाड़ी है। मामला समझिए। चुनाव दिन-ब-दिन खिसककर करीब आ रहे हैं। इतने करीब कि टिकटबाजों ने हाड़-तोड़ मेहनत शुरू कर दी है। पगडंडी नाप रहे हैं। कोई मोहल्ला छोड़ नहीं रहे हैं और पार्टी की लॉग बुक में लिख रहे हैं कि पार्टी के कामों से प्रवास पर हैं। यही लिखा-पढ़ी मुरली ने बारीकी से पढ़ ली। पहले तो मासूम बनकर पूछा कि कौन-कौन पार्टी के नाम से प्रवास कर रहा है? दनादन हाथ उठ गए। इतने सारे प्रवासी पार्टीजन देखकर पहले तो मुरली खुश हुए फिर धीरे से बोले जो जहां से टिकट की दावेदारी कर रहा है, उस एरिया में नईं जाने का...समझा क्या...दूसरी जगह जाने का...। उनका इशारा जिनकी तरफ था वो समझ गए। जो नहीं समझे उन्हें अगली बार प्रवास के लिए नया कार्यक्रम मिल जाएगा।
नहीं खुला सिम-सिम
मंत्रीजी को लग रहा था खुल जा सिम-सिम बोलेंगे और दरवाजा खुल जाएगा। उन्हें नहीं पता था कि केवल सोच लेने भर से कोई अलीबाबा नहीं बन जाता, बहुत सारे चालीस...से निपटना पड़ता है। कहानी कुल जमा यह है कि एक मंत्रीजी ने अपनी सारी काली-पीली कमाई सफेद करने के लिए जमीन से जुड़ गए। सीधे-सीधे नहीं, एक जंबूरे के नाम पर जमीन से जुड़ाव किया। नेशनल पार्क के पास की जिस जमीन से मंत्रीजी जुड़े वहां रिजॉर्ट बनाना था।
सपना यह था कि जो पार्क में आएगा, वो मंत्री जी के रिजॉर्ट की सेवा भी लेगा। कहें कि खूब माल आएगा। बस मंशा यह थी कि पार्क का एंट्री गेट बदल जाए। फाइल चलवा दी। मामाजी सीएम से प्रस्ताव भी पास करवा दिया। फाइल जब विभाग में गई तो पता नहीं कहां से अफसरों को इशारा हो गया कि भले ही ऊपर से प्रस्ताव बना दिया हो, आप तो अड़ंगा डालकर फाइल क्लोज कर दो। ऐसा ही हुआ। नहीं खुला सिम-सिम। अब मंत्रीजी कभी अपनी जमीन को देखते हैं, कभी खुद को। जिस मिट्टी से करोड़ों कमाना थे, वो मिट्टी में मिल गई।
गृह पर भारी ग्रह
गृह बोले तो पुलिस विभाग के ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि न्याय के देवता ने शनि ने सारी चाल ही गृह वालों के लिए बदली है। छिंदवाड़ा के एडीजी उमेश जोगा और एसपी विवेक अग्रवाल को कोर्ट ने कहा कि है रेप की जांच और आरोपी के मामले में आप गड़बड़ कर रहे हो..कृपया करके जिला छोड़ो और कहीं दूरस्थ पधारो। बोले तो सीधे-सीधे हटाने के आदेश दे दिए। तेरह साल पुरानी एक फाइल खुल गई। कई पुलिस अफसरों को किसी बेगुनाह को गुनहगार बताने का गुनहगार माना गया।
दो सीनियर अफसर तो अपने गृह क्षेत्र यानी घर के मामलों में ही उलझ गए। एक सीनियर आईपीएस शैलेष सिंह ने अपने साले को जमीन-जायदाद के केस में उलझाया तो कचहरी बोली- पद और रसूख इस्तेमाल किया। गलत है मामला। केस खारिज। दूसरे आईपीएस पुरुषोत्तम शर्मा हैं, जिनका वीडियो किसी समय में घर-घर की कहानी बन गया था। लड़-भिड़कर अपना निलंबन खत्म करवाए ही थे कि शनि ने आंखें तरेरी। असर यह हुआ कि सरकार इस बहाली के खिलाफ हाईकोर्ट जा रही है। गृह वालो..ग्रह पूजन करवा लीजिए...। ग्रहजी, पता नहीं, कब किस पर मेहरबान हो जाए।
साला ही साहब बन गया
साला आधा घरवाला होता है, बोले तो..जीजा की कुर्सी पर आधा हक मानता है। कम से कम एक आईएएस साहब को साथ तो यही हो रहा है। साला ऐसा सिर पर बैठा है कि अपने जीजाजी उर्फ आईएएस साहब के नाम से किसी भी काम की सुपारी ले लेता है और काम करवाने वाले इच्छाधारी को सीधे जीजू के सामने ले जाकर खड़ा कर देता है। साहब काफी दिनों से बर्दाश्त कर रहे थे, लेकिन जब साले ने जीजू की नाक पर हाथ रख दिया तो बात बिगड़ गईं।
हुआ यूं कि साहब ने एक भ्रष्ट अधिकारी को सस्पेंड कर दिया। साले ने बहाली की सुपारी ले ली और ले गया सीधे जीजू के बंगले पर। तब साहब भोजन कर रहे थे। आधे घरवाले ने दो कदम आगे जाकर इच्छाधारी को भी डायनिंग टेबल पर ले जाकर खड़ा कर दिया। साहब ने सिर उठाया, साले की तरफ देखा। इच्छाधारी की पहचान पूछी और नाम सामने आया तो....। सुना है कि साहब ने गृहस्थी दांव पर लगाने की जोखिम उठाते हुए पत्नी तक को कह दिया कि अपने भाई से कह दो, तुम्हारा भाई ही बनकर रहे, मेरा साला बनकर यूं सुपारी लेता रहेगा तो ठीक नहीं होगा। अब अगली सुपारी और अगले गुस्से का इंतजार करिए। साला है, कहां मानने वाला है।