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Narsinghpur. हिंदु सनातन धर्म में यह सर्वविदित परंपरा है कि जिस घर में परिवार के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो जब तक उसका अंतिम संस्कार विधिविधान से नहीं हो जाता, घर में चूल्हा नहीं जलता है। लेकिन नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर क्षेत्र में धर्मपताका के ध्वजवाहक शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन में क्षेत्र में इस कदर शोक का माहौल है कि झोतेश्वर ही नहीं आसपास के कई गांव में सोमवार को चूल्हा तक नहीं जला। सारे के सारे गांव से शंकराचार्य के अंतिम दर्शनों के लिए लोग भागे दौड़े चले आए। तो झोतेश्वर में तो एक घर ऐसा नहीं था जहां कोई पुरूष या महिला शंकराचार्य के अंतिम दर्शन करने न गया हो। घर में थे तो सिर्फ छोटे बच्चे और किशोरियां।
झोतेश्वर निवासी विनय कुमारी सेन, रजनी आदि ने बताया कि शंकराचार्य उनके लिए अभिभावक के समान थे, वे इस क्षेत्र में उन्हीं की छत्रछाया में रह रहे थे। उनके चले जाने से ग्रामीणों को सही मायनों में ऐसा ही लग रहा है मानो घर का मुखिया चला गया हो। जो कह पा रहे हैं वो कहकर बता रहे हैं और जो ग्रामीण इतने मुखर नहीं हैं उनका उदास चेहरा और आंखों की नमी यही बातें बयान कर रही हैं। इधर झोतेश्वर में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के समाधी में लीन होने से पूर्व सनातनी परंपराओं का पालन संतगणों की देखरेख में हुआ। वहीं उनके अंतिम दर्शन करने इतनी भारी तादाद में जनसैलाब उमड़ा जैसा झोतेश्वर में इससे पहले कभी नहीं देखा गया था।
शंकराचार्य ने ही दिलाई क्षेत्र को पहचान
नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर क्षेत्र को संपूर्ण भारत के नक्शे में एक पहचान दिलाने का काम शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने किया था। उन्होंने न केवल क्षेत्र को अपनी तप साधना से आलौकिक किया बल्कि शक्तिपीठ की स्थापना कराकर क्षेत्र में धर्ममय वातावरण और धर्ममय संस्कार क्षेत्रवासियों को दिए। यही कारण है कि उनके समाधि में लीन होने की खबर से ही न केवल बड़े नामों वाले उनके शिष्य बल्कि साधारण ग्रामीण भी शोकाकुल हो रहे हैं।