दमोह की परंपरा कायम रहे इसलिए लकवे के बाद भी कलकत्ता से दमोह पहुंचा मूर्तिकार, नहीं टूटने दी 36 साल की परंपरा 

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Rajeev Upadhyay
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दमोह की परंपरा कायम रहे इसलिए लकवे के बाद भी कलकत्ता से दमोह पहुंचा मूर्तिकार, नहीं टूटने दी 36 साल की परंपरा 

Damoh. कल सोमवार से शारदेय नवरात्र पर्व की शुरुआत हो रही है और इस पर्व में परंपरा के अनुसार देवी प्रतिमाओं की स्थापना होती है। यह सिर्फ एक परंपरा ही है कि प्रतिमाओं की स्थापना पीढ़ी दर पीढ़ी चलती जाती है। दमोह की ऐसी ही परंपरा को निभाने के लिए कलकत्ता के प्रसिद्ध मूर्तिकार एक हाथ में लकवा लगने के बाद भी देवी प्रतिमा बनाने दमोह पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 36 साल से वह दमोह आकर देवी प्रतिमाओं का निर्माण करते आ रहे हैं। इस साल भी यह परंपरा न टूटे इसलिए वह एक हाथ  के काम न करने के बाद भी 1200 किमी का सफर तय कर दमोह पहुंचे हैं और देवी प्रतिमाओ का निर्माण कर रहे हैं।

 

फरवरी 2020 में एक हाथ में लग गया लकवा



कलकत्ता निवासी मूर्तिकार असित हलदार 60  बताते हैं कि यह केवल बंगाल की काली मां का आर्शीवाद ही है जो एक हाथ में लकवा लगने के बाद भी आज वे देवी प्रतिमा का निर्माण कर उनकी सेवा कर रहे हैं। हलदार ने बताया कि फरवरी 2020 में उन्हे बाएं हाथ में लकवा लग गया कुछ दिन बिस्तर पर रहे हाथ से काम करने का प्रयास किया, लेकिन हाथ ने काम नहीं किया। इसी दौरान 23 मार्च से पूरे देश में कोरोना संक्रमण के चलते लॉकडाउन लग गया जिसके बाद उन्हे लगा कि शायद अब देवी प्रतिमाओ का निर्माण नहीं कर पाएंगे और उनका सफर यहीं खत्म हो जाएगा। इसी बीच दमोह के बजरिया निवासी मिश्रा परिवार से उनके पास बुलावा आया और उन्होंने दमोह आने का निवेदन किया। दमोह आने का बुलावा आते ही श्री हलदार के मन में ख्याल आया कि वह दमोह की परंपरा को 36  साल से निभाते आ रहे हैं और यदि दमोह नहीं जाएंगे तो यह परंपरा टूट जाएगी। उन्होंने अपने सात कारीगरों को साथ लिया और  दमोह पहुंचे और प्रतिमाओं का निर्माण शुरू किया।



ऐसे शुरु हुआ था सफर



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असित हलदार ने बताया कि वर्ष 1986 में कलकत्ता निवासी उनके पहचान के एक व्यक्ति दमोह के इलाहाबाद बैंक में मैनेजर थे। उस समय दमोह के राय चौराहा निवासी स्व छोटेलाल राय की मैनेजर से दोस्ती थी और मैनेजर अक्सर बंगाल की देवी प्रतिमाओं को बनाने वाले मूर्तिकार हलदार के बारे में बताते थे। जिसे सुनकर एक दिन श्री राय ने बैंक मैनेजर से कहा कि आप जब भी कलकत्ता जाओ तो मूर्तिकार हलदार से दमोह आने का आग्रह जरुर करना। कुछ दिन बाद मैनेजर कलकत्ता आए तो उन्होंने दमोह आने का निमंत्रण दिया। उसी साल मूर्तिकार हलदार अपने कुछ साथियों के साथ दमोह पहुंचे और छोटेलाल राय ने अपने यहां उन्हे रोककर देवी प्रतिमा बनाने जगह उपलब्ध कराई तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी रहा। श्री राय के निधन के बाद उनके बेटे बस आपरेटर शंकर राय और उनके परिवार के लोगों ने वही मान, सम्मान दिया जो उनके पिता देते थे। राय चौराहा पर कुछ जगह की कमी होने के कारण हलदार चार साल पहले बजरिया में स्व डॉ. रवि मिश्रा के कहने पर उनके घर के पास बने संकटमोचन मंदिर परिसर में आकर प्रतिमाओ का निर्माण करने लगे।



बड़े आकार की बनाई है प्रतिमाएं



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असित हलदार ने बताया की इस साल कोरोना का कोई सरकारी नियम शासन की ओर से नही है इसलिए छोटी प्रतिमाओं से काफी बड़ी प्रतिमाओं का निर्माण किया गया है। जिनकी स्थापना पूरे जिले में होगी। छोटी, बड़ी मिलाकर करीब 250 प्रतिमाओं का निर्माण उनके द्वारा किया गया है।


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