केस-01 : सर्जिकल वार्ड में इलाज के लिए भर्ती सोहावल के राम सोहावन मल्लाह को बेड तो मिला गया लेकिन चादर नहीं मिली। उन्हें इस बात की जानकारी ही नहीं है कि अस्पताल से ही चादर मिलती है। सो घर से ही ले आए थे।
केस-02: कैमा ग्राम की प्रसूता राजकलिया चौधरी भी रामसोहावन की बातों को दोहरा रही थी। उन्होंने कहा कि अम्मा ने कहा की चादर वादर भी रख लो काम आएगा सो घर से ही सामान ले आए।
SATNA. एक्सीलेंस हॉस्पिटल सरदार वल्लभ भाई पटेल शासकीय जिला चिकित्सालय में भर्ती होने वाले मरीजों के साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया जा रहा है। सामान्य मरीजों की तो बात छोड़िए उन प्रसूताओं को भी बेडशीट नसीब नहीं होती जिनकी तीमारदारी के लिए सरकारें पलक पांवड़े बिछाए रहती हैं। मरीजों की गरज हो तो वह घर से बेडशीट ले आएं वरना यहां खाली गद्दे में लेटना पड़ेगा। गद्दे भी रेगजीन के बने हैं। ऐसे में इस गर्मी के बीच मरीजों की जबरदस्त परीक्षा हो रही है।
चादर देने से स्टाफ की ना-नुकुर
तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाइए... किसी भी बेड में बमुश्किल चादर नजर आ जाए। आखिरकार अस्पताल प्रबंधन को चादर देने से परहेज क्यों है? दरअसल, पैरामेडिकल स्टाफ को इस बात की चिंता खाए जाती है कि उनकी सफेद चादर मैली हो जाएगी। यही कारण है कि किसी भी मरीज को बेडशीट नहीं दी जाती। मरीजों की गरज हो तो वह घर से लाए अथवा बगैर चादर के लेटा रहे। अब जिसका घर जिला अस्पताल से नजदीक है तो वह तो बेडशीट ले आएगा मगर जो दूर-दराज से आया है उसका क्या? बताया जा रहा है कि वार्ड इंचार्ज को यह चादरें अस्पताल प्रबंधन की ओर से वार्ड के बेड अनुसार आवंटित की जाती हैं लेकिन चादर गंदी न हो इस डर से वार्ड में रखे बेड्स में नहीं बिछाई जाती हैं।
एनएचएम ने दी हैं दिन के हिसाब से चादरें
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने जिला अस्पताल को हजारों बेडशीट दे रखी हैं। स्टोर से यह बेडशीट वार्डों को आवंटित भी की गई हैं। इन चादरों में दिनों का जिक्र किया गया है। सप्ताह के सातों दिन के लिए अलग-अलग बेडशीट हैं। बताया गया है कि सतना के जिला अस्पताल में 400 बेड हैं और करीब 24 वार्ड हैं । औसतन एक वार्ड में 16-17 बेड लगे हुए हैं। इस मामले में द सूत्र ने सीएस केएल सूर्यवंशी से बात करने के प्रयास किए लेकिन वह न अस्पताल में मिले न ही मोबाइल पर उनसे बात को सकी।