भोपाल. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। कहीं इसका नकारात्मक तो कहीं सकारात्मक असर देखने को मिल रहा हैं। रूस और यूक्रेन बड़े पैमाने पर गेहूं का निर्यात (Wheat Export) करते हैं। वह भी युद्ध की चपेट में आ गया है। ऐसे में आयात करने वाले देश नए विकल्प की तलाश कर रहे हैं और भारत उनके लिए एक बेहतर पसंद बनकर उभरा है। वहीं मध्यप्रदेश गेहूं के उत्पादन के मामले में देश में नंबर एक पर है। जाहिर सी बात है कि यह स्थिति मध्यप्रदेश के लिए गेहूं खरीदी में बेहतर वातावरण बना रही है। बता दें कि दुनिया के गेहूं के निर्यात में रूस और यूक्रेन का हिस्सा 28.3 प्रतिशत है। बाजार में भाव अच्छे होने से किसान 15 साल बाद अपना गेहूं बेचने के लिए सरकारी खरीदी पर निर्भर नहीं है। हालांकि इसका एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि जो सहकारी समितियां गेहूं खरीदी कर व्यापार करती थीं उनके कर्मचारियों के सामने इस साल रोजी रोटी का संकट तक खड़ा हो जाएगा। इन सहकारी समितियों से प्रदेश के करीब 45 हजार कर्मचारी जुड़े हैं। सरकारी खरीदी केंद्रों पर गेहूं नहीं जाने से इन सहकारी समितियों के कर्मचारियों के परिवारों को बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा
ये है गेहूं का बाजार भाव: रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण गेहूं का बाजार भाव 1900 से लेकर 2300 रूपए प्रति क्विंटल तक है। वहीं शरबती गेहूं तो 3500 से 4000 रूपए तक बिक रहा है। वहीं गेहूं का समर्थन मूल्य 2015 रुपए है। सूबे में सीधे किसानों से गेहूं खरीदी सरकार ने करीब 15 साल पहले की थी। तब से लेकर पिछले सीजन तक अधिकांश गेहूं सरकारी खरीदी केंद्रों पर ही बिकने जाता था, लेकिन 15 साल बाद बाजार में मूल्य अधिक होने से किसान सरकारी खरीदी केंद्र पर न जाकर मंडी और बाजार में ही व्यापारी को अपना गेहूं बेचेगा।
प्रदेश में है 4500 सहकारी समितियां: प्रदेश में 4500 सहकारी समितियां है, जो हर साल गेहूं की खरीदी करती हैं। हर साल कुछ समितियां बंद भी हो जाती थी तो कुछ चालू होने से यह आंकड़ा थोड़ा बहुत ऊपर नीचे रहता था, पर इन समितियों से करीब 45000 कर्मचारी जुड़े हैं।
व्यापार से ही निकलता है कर्मचारियों का वेतन: सहकारी समिति कर्मचारी संघ से जुड़े हरदा के मुकेश तिवारी बताते हैं कि सहकारी समितियों को गेहूं खरीदी पर 2 फीसदी कमीशन मिलता है, पर लगातार समर्थन मूल्य बढ़ने से अब ये 2 प्रतिशत न मिलकर 27 रुपए प्रति क्विंटल ही मिल रहा है। समितियां जो व्यापार करती है उससे जो आमदनी होती है उससे ही कर्मचारियों को वेतन मिलता है। कई समितियों के कर्मचारियों को तो दो से तीन साल का वेतन ही नहीं मिला, क्योंकि वे खरीदी नहीं कर पाई।
इन कारणों से भी किसान सरकारी खरीदी केंद्र जाने से बचेगा-
- सरकारी खरीदी केंद्र पर किसान को एक साथ पूरी उपज बेचनी पड़ती है, पर मंडी या बाजार में वह अपनी आवश्यकतानुसार अपनी उपज बेच सकता है।
तो क्या सरकारी केंद्रों पर नहीं खरीदा जाएगा एक भी दाना: ऐसा नहीं है, सरकारी खरीदी केंद्रों पर भी गेहूं खरीदा जाएगा, पर वह उत्पादन के मुकाबले न के बराबर ही होगा। दरअसल जिस गेहूं की क्वालिटी सबसे खराब होगी व्यापारी से 2000 रुपए से कम की बोली लगाएगा। ऐसा गेहूं सरकारी खरीदी केंद्रों पर पहुंचेगा। इंदौर के सरकारी खरीदी केंद्र में पहले दिन जो 90 क्विंटल गेहूं खरीदा गया वह इसी क्वालिटी का था।
मंडियों में शुरू हो गई बंपर आवक: भोपाल-करोंद मंडी के प्रभारी अधीक्षक ओमप्रकाश रघुवंशी ने कहा कि पिछले साल शुरुआती दिनों में करोंद मंडी में 1 लाख क्विंटल गेहूं की आवक थी जो इस बार बढ़कर 1.5 लाख क्विंटल तक पहुंच गई है। भाव तेज होने से अभी आवक में और तेजी होगी। वहीं इंदौर मंडी के सचिव नरेश परमार ने कहा कि मंडी में गेहूं की आवक 25 से 30 हजार क्विंटल की है, अभी यह और तेज होगी।
खरीदी का लक्ष्य 1 लाख मीट्रिक टन बढ़ाया और पंजीयन 7.23 लाख कम हुए: सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया के अनुसार इस साल 1 करोड़ 30 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य रखा गया है, जबकि प्रदेश में पिछले वर्ष 28 लाख किसानों ने समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने के लिए पंजीयन कराया था, जबकि इस वर्ष 20 लाख 77 हजार किसानों ने ही पंजीयन कराया है। इसे लेकर सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया तर्क देते हैं कि किसानों को गेहूं के अतिरिक्त अन्य फसल लगाने के लिए प्रेरित किया गया, जिसका ये नतीजा है। बता दें कि सरकारी खरीदी केंद्रों पर वर्ष 2020 में मध्यप्रदेश में 1 करोड़ 29 लाख मीट्रिक टन और 2021 में 1 करोड़ 28 लाख 50 हजार मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था।
पंजीयन का खरीदी से इस बार नहीं रहेगा कोई संबंध: किसान नेता केदार सिरोही ने कहा कि पंजीयन का इस बार खरीदी से कोई संबंध नहीं होगा। समर्थन मूल्य पर पंजीयन किसान सिर्फ इसलिए करवाता है ताकि सरकार जो रेट तय करे यदि बाजार भाव उससे कम हो तो वह समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचे, लेकिन इस बार स्थिति ठीक उसके उलट है। बाजार मूल्य ही समर्थन मूल्य से अधिक है, इसलिए किसान सरकारी खरीदी केंद्रों पर निर्भर नहीं रहेगा भले ही पंजीयन कितने भी हुए हो। हतोदा के किसान राजेश पटेल, बहादुर चौहान, पालिया से अनलि पटेल, रायसेन के किसान अंशुल धाकड़ और मनोज जाटव ने बताया कि समर्थन मूल्य से ज्यादा बाजार के भाव है इसलिए वे अपने गेहूं मंडी में बेचने के लिए लाए हैं।
भोपाल से राहुल शर्मा और इंदौर से योगेश राठौर की रिपोर्ट...