चुनाव में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए जाति पर जोर, सामाजिक संगठन करा रहे जनगणना

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चुनाव में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए जाति पर जोर, सामाजिक संगठन करा रहे जनगणना

भोपाल. जाति न पूछो साधु की। ये कबीर का दोहा है जो जाति की जगह ज्ञान को अहमियत देता है। लेकिन चुनावी राजनीति में सबसे ज्यादा जोर जाति का ही दिखता है। ये परंपरा सी बन गई है कि टिकट उसको ही मिलता है जिसका जातिगत जनाधार होता है। राजनीतिक दलों पर टिकट का दबाव डालने के लिए अब सामाजिक संगठन अपनी जातिगत जनगणना करा रहे हैं। प्रदेश के अलग-अलग सामाजिक संगठनों ने अनारक्षित विधानसभा सीटों पर अपनी-अपनी जाति की आबादी का आंकलन करना शुरू कर दिया है। जाति के जनाधार के आधार पर ये राजनीतिक दलों से टिकट की मांग करेंगे।





ये है विधानसभा की स्थिति: मप्र विधानसभा में कुल सीटों की संख्या 230 है, जिसमें से 82 सीट अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। बाकी 148 सीटें ऐसी हैं जहां पर अक्सर जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर टिकट दी जाती है। हालांकि लोकतंत्र में राजनीतिक दल जातिगत आधार को सिरे से नकारते हैं लेकिन असलियत कुछ और ही होती है। कांग्रेस की 54 सीटें ऐसी हैं जिनमें 24 सीटों पर ओबीसी और 30 सीटों पर सामान्य वर्ग के लोगों को टिकट दिया गया था। बीजेपी की सीटों में 33 ओबीसी वर्ग और 55 पर सामान्य वर्ग के लोग विधायक चुनकर आए। बीएसपी की एक सीट पर ओबीसी और एक पर सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि काबिज है। सपा के पास एक सीट है जो कि सामान्य वर्ग की है। अन्य में एक विधायक ओबीसी और तीन सामान्य वर्ग से हैं। 





जगनणना के लिए शिविर की तैयारी: अग्रसेवा संस्थान अग्रवाल परिवारों की जनगणना के लिए हर क्षेत्र में शिविर लगाने की तैयारी कर रहा है। वहीं कायस्थ समाज ने जातिगत जनगणना के लिए अलग-अलग टीमों का गठन किया है। इनके अलावा ब्राहमण समाज समेत अन्य समाजों के लोग भी इस तरह की मुहिम चलाने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि इन संगठनों के प्रमुख इसे समाज को एकजुट करने का अभियान बता रहे हैं। बात राजनीतिक दलों की करें तो चुनाव के करीब आने पर इस तरह की मांगों को बीजेपी सामान्य बात मानती है। बीजेपी के प्रदेश मुखिया वीडी शर्मा कहते हैं कि वे तो सबका साथ सबका विकास के सि़द्धांत पर काम करते है। वहीं कांग्रेस के प्रदेश महासचिव केके मिश्रा कहते हैं कि सामाजिक संगठनों की मांगों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। 





वहीं, राठौर समाज के हर्षित राठौर का कहना है कि उन्होंने जनगणना का काम पहले ही शुरू कर दिया था। 13 साल पहले इंदौर इकाई ने समाज की जनगणना की थी। इस काम को करने का मकसद समाज का डाटा इकट्ठा करना है। रत्नेश श्रीवास्तव का कहना है कि कायस्थ समाज 2017 से समाज की जनगणना कर रहा है। विकास अवस्थी का कहना है कि हमारे समाज ने 2019 से 2020 जनगणना काम किया था। कोरोना के चलते इस काम को रोकना पड़ा था। जल्द ही दोबारा शुरू करेंगे। वीरेंद्र जैन कहते हैं कि समाज जनगणना के काम को तेजी से कर रहा है।



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