'चंबल के गांधी' को श्रद्धांजलि: गांधीवादी सुब्बाराव का अस्थि कलश जौरा से भोपाल पहुंचा

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'चंबल के गांधी' को श्रद्धांजलि: गांधीवादी सुब्बाराव का अस्थि कलश जौरा से भोपाल पहुंचा

भोपाल. प्रख्यात गांधीवादी विचारक एवं समाज सेवी डॉ. एस.एन. सुब्बाराव (Dr. SN Subbarao) का अस्थी कलश 13 नवंबर को भोपाल के गांधी भवन (Gandhi Bhawan) में पहुंचा। जहां सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन किया गया है। गांधी भवन में निर्मित गांधी समाधि स्थल पर श्रृद्धांजलि सभा (Tribute Assembly) का आयोजन किया गया। इस शोक सभा में शहर के सामाजिक कार्यकर्ता पहुंचे। जहां पर सुब्बाराव के रिकॉडित भाषणों को चलाया गया। इसके बाद सभा में उपस्थित लोगों ने सुब्बाराव से जुड़ी स्मृतियों को साझा किया। इस मौके पर अनीष कुमार ने सुब्बाराव के जीवन और संघर्षों का वर्णन किया।

सभा में बड़ी संख्या में लोग इकठ्ठा

 सुब्बाराव सर्वोदय समाज के सर्वमान्य नेता थे। वह गांधी भवन न्यास के अध्यक्ष पद पर कार्यरत थे।  इस मौके पर न्यास के सचिव दयाराम नामदेव ने सुब्बाराव के निधन को गांधी विचार की अपूर्ण क्षति बताया। श्रद्धाजंलि सभा में विधायक कुनाल चौधरी, डॉ आलोक मेहता, डॉ आनंद मुट्नगल, महेंद्र शर्मा, डॉ मनोज जैन मोहसीन खान और शिवाषीश तिवारी समेत बड़ी संख्या में लोग इकठ्ठा हुए। सभा का आयोजन दोपहर तीन बजे से आठ बजे तक किया गया। कल सुबह अस्थि कलश भोपाल से सीहोर पहुंचेगा, जहां श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होगा। इसके बाद शाम पांच बजे नर्मदा नदी में अस्थियों को विसर्जित किया जाएगा।

कौन थे डॉ एसएन सुब्बाराव

पद्मश्री अवार्ड (Padma Shri Award) से सम्मानित डॉ एसएन सुब्बाराव (SN Subbarao) का 92 वर्ष की उम्र में 27 अक्टूबर को निधन हो गया था। गांधीवादी विचारधारा (Gandhian ideology) के प्रणेता रहे सुब्बाराव को कई दिग्गजों अपना आदर्श मानते थे। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें 13 साल की उम्र में गिरफ्तार किया गया था।

सुब्बाराव ने श्योपुर के त्रिवेणी संगम घाट पर गांधी जी की तेरहवी का आयोजन शुरू करवाया था। सुब्बाराव का पूरा जीवन समाजसेवा को समर्पित रहा है। सुब्बाराव चंबल में आतंक का पर्याय बन चुके डाकुओं का सामूहिक सरेंडर करवाने के बाद चर्चाओं में आए थे।

सुब्बाराव ने 14 अप्रैल 1972 को गांधी सेवा आश्रम जौरा में 654 डकैतों का समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (Jaiprakash Narayan) एवं उनकी पत्नी प्रभादेवी के सामने सामूहित आत्मसमर्पण (Surrender of dacoits) कराया था। इनमें से 450 डकैतों ने जौरा के आश्रम में, जबकि 100 डकैतों ने राजस्थान के धौलपुर में गांधीजी की तस्वीर के सामने हथियार डालकर समर्पण किया था।

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