REWA. विन्ध्य की धरती पानी मांग रही है। राजनीतिक सरगर्मियों के बीच किसान आसमान को ओर मुंह फाड़ कर देख रहा है कि कभी तो इस अवर्षा से निजात मिलेगी और बदरा हैं कि छिटपुट बरस फिर लंबे समय तक लौटते ही नहीं। परिणाम यह है कि धान को रोपा पालियों में सूख गया जो बचा खुचा उसे सूरज की तपन चारा भी रहने देगा। अब किसान की किस्मत में इंतज़ार है कि कभी तो बारिश होगी। किसान की सबसे बड़ी परेशानी धान के रोपा का सूख जाना है। हालात यह हैं कि किसानों खेतों के लिए बोरवेल से पानी दे रहे हैं लेकिन बोरवेल का पानी भी भीषण गर्मी के बीच खेत में बिल्कुल भी नहीं टिकता। यही नहीं सोयाबीन भी किसानों ने बो दिया है लेकिन मौसम की चेतावनी है कि बारिश होगी ऐसे में अगर ज्यादा बारिश हुई तो हालात पिछले साल से भी बदतर होंगे। इस बारे में रीवा जिले के सिरमौर जनपद के 56 साल के किसान चेतनाथ धरमपुरहा बताते हैं कि जून में एक बार बारिश हुई तो लगा कि धान उगाई जा सकती है। करीब 5 एकड़ की जमीन के लिए रोपा लगा के रखा था लेकिन अब जब लंबे समय से उचित मात्रा में पानी नहीं गिर रहा तो वह सूख रहा है। बोर के पानी खेत में भरना मजबूरी है। यह खर्चा अतिरिक्त है।
रीवा जिले के उपसंचालक कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इस सीजन में 289 हेक्टेयर धान बुवाई का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से अब तक कितना हुआ यह डेटा नहीं मिला लेकिन पानी के न बरसने के कारण लगा हुआ रोपा भी सूख रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र रीवा के अनुसार जिले में करीब 352.2 लाख हेक्टेयर जमीन खेती योग्य है।
50 फीसदी से कम बारिश, बिजमरी का खतरा!
सतना जिले की बात करें तो यहां इस वर्ष कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने 2 लाख 40 हज़ार 790 हेक्टेयर का धान बुवाई का लक्ष्य रखा है। इसमें से सूचना है कि बहुत सारी धान पालियों में उगने के बात खेत में ही रह गई। जिले के मसनहा निवासी प्रभु शुक्ला बताते हैं कि रैगांव क्षेत्र धान के लिए इलाके में जाना जाता है। इसके अलावा नागौद और उचेहरा भी धान बेल्ट है। यही कारण है कि यहां के किसानों ने धान की रोपाई के लिए 30 से 40 रुपए किलो ग्राम तक का धान का बीज लाकर रोपा लगाया है। यहां यह भी है कि जिन किसानों के पास सींच का साधन है तो वह रोपा लगवा रहा है। 1 जून से लेकर 12 जुलाई तक सतना में 131. 1 एमएम बारिश हो चुकी है। जबकि पिछले साल इसी समय अंतराल में 183.3 एमएम बारिश हो चुकी थी। यह भी जानना जरूरी है कि अब तक 260 एमएम बारिश होना चाहिए था लेकिन इस औसत का 50 प्रतिशत कम बारिश हुई है।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने कहा :विंध्य धान का इलाका, फसल बदलें किसान
कृषि वैज्ञानिक ये मानते हैं कि विंध्य की उर्वरा भूमि धान प्रचुर मात्रा में होती है लेकिन कृषि मौसम में आए बदलावों के साथ किसानों को भी बदलना होगा। यहां लघु धान फसलें भी उगाई जाती रहीं है जिनकी बुवाई किसान कर सकता है। कृषि महाविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी आर पी जोशी बताते हैं कि विंध्य क्षेत्र धान का बेल्ट है। इसलिए यहां का किसान पारम्परिक रूप से प्रकृति पर निर्भर है। इस समय जो हालात हैं वह बारिश के असामान्य वितरण के कारण है। इस कारण बीज के अंकुरण के लिए जो नमी चाहिए वह नहीं मिल पा रही है। जिन्होंने पहले बारिश में बो दिया होगा उनके लिए तो यह खतरा है। इसलिए सलाह दी जाती है कि किसान भाई लघु धान जिसमें ज्वार, बाजरा, कोदों, कुटकी, सावाँ, काकुन और बासरा जैसी फ़सलें ले सकते हैं। जहाँ तक बात सोयाबीन की है तो रीवा और सतना में बोया जाता है जिन किसानों ने बो दिया है। वह सीधी नाली बना लें ताकि पानी के ज्यादा होने से उनका वितरण तिरछा कर दें ऐसे में पानी भरेगा नहीं।