Bhopal. सीएम शिवराज सिंह चौहान दिल्ली का दौरा करते हैं और एमपी में अटकलों का दौर शुरू हो जाता है। हर सियासी गलियारा यही फुसफुसाता है कि अब शिवराज गए। मध्यप्रदेश की सत्ता का सरताज डेढ़ साल के लिए कोई और होगा। लेकिन हर बार शिवराज की वापसी होती है और अटकलें खत्म हो जाती हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है। शिवराज सिंह चौहान कोर कमेटी की बैठक में भाग लेने दिल्ली पहुंचे और उस एक ब्रेकिंग न्यूज का इंतजार होने लगा। लेकिन ऐसी कोई खबर नहीं आई। पर बैठक में जो हुआ वो शिवराज सिंह चौहान के लिए कोई राहत भरी खबर नहीं है। प्रदेश में सत्ता का चेहरा फिलहाल वही हैं लेकिन उनकी सरकार चलाने वाला रिमोट कंट्रोल अब किसी ओर के हाथ में है। कोर कमेटी की बैठक में शिवराज सरकार की एक के बाद एक कई कमियां सामने आईं। इनकी बावजूद शिवराज की कुर्सी तो बच गई लेकिन ताकत कम हो गई।
कोशिश सत्ता और संगठन में समन्वय बिठाने की है
मिशन 2023 की तैयारी में बीजेपी पूरी तरह जुट चुकी है। वैसे अभी गुजरात का अहम चुनाव होना है। लेकिन वहां बीजेपी जीत के लिए आश्वस्त नजर आती है। लिहाजा पूरा फोकस अगले साल होने वाले पांच राज्यों के चुनाव पर लगा दिया है। ताकत इस कदर झोंकी है कि फिलहाल हर दो महीने में सत्ता और संगठन की बैठक करने का फैसला ले लिया गया है। हाल ही में दिल्ली में कोर कमेटी की बैठक में ये फैसला हुआ है। कोशिश सत्ता और संगठन में समन्वय बिठाने की है। ताकि चुनाव से पहले किसी तरह का कम्यूनिकेशन गैप नुकसान न कर जाए।
एंटीइंकम्बेंसी पर भी हुई चर्चा
ये तो हुई बैठक से जुड़ी मोटी मोटी बातें। अंदरखाने की खबर ये है कि इस बैठक में शिवराज सरकार की खामियां जम कर उजागर हुईं। अधिकांश मंत्रियों के क्षेत्र में एंटीइंकम्बेंसी और मंत्री विधायकों पर अफसरों का हावी होना मध्यप्रदेश सरकार की कमजोरी बन कर उभरा। बीजेपी किसी भी कीमत पर मध्यप्रदेश जैसे राज्य को अपने हाथ से निकलने नहीं देना चाहती। वैसे कुछ राज्यों में सत्ता बचाने के लिए बीजेपी चुनाव से पहले सीएम बदल चुकी है। लेकिन मध्यप्रदेश में ये रिस्क लेने से कतरा रही है। डर ये है कि कहीं उसके बाद पनपना असंतोष सबोटेज का कारण न बन जाए। जिसका सीधा सा मतलब ये है कि जीत का जो रोडमैप तैयार हो रहा है उसमें कोई रूकावट नहीं आनी चाहिए।
दिल्ली में हर दो माह में बैठक होगी
सो ये तय हुआ कि चेहरा तो सीएम शिवराज ही रहेंगे लेकिन सत्ता का रिमोट कंट्रोल अब दूसरे हाथों में होगा। अब संगठन सत्ता पर हावी हो सकता है। ये मुमकिन है कि प्रदेश में सीएम शिवराज सिंह चौहान जो भी फैसले लें उस पर पहले संगठन की मोहर लगे। संगठन के मुखिया वीडी शर्मा हैं। जो अब शिवराज सिंह चौहान पर भारी पड़ सकते हैं। कोर कमेटी की बैठक में सीएम शिवराज सिंह चौहान के अलावा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी मौजूद रहे। अब ऐसी बैठकें दिल्ली में हर दो माह में होनी हैं। जहां संगठन अपनी रिपोर्ट देने के साथ साथ सत्ता की खामियां भी गिनाएगा। ऐसे में हर बार शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें और बढ़ते जाना तय है।
विधायकों और मंत्रियों में पनप रही नाराजगी
चुनाव डेढ़ साल बाद है। इससे पहले हर दो महीने में एक बैठक से इशारा साफ है कि इवेंट मैनेजमेंट की तरह सरकार चला रहे शिवराज सिंह चौहान जितनी खामियां दबा छुपा कर रखना चाहते हैं, वो एक एक करके खुलती चली जाएंगी। पहली ही बैठक में अफसरों पर शिवराज की कमजोर पकड़ और मंत्री विधायकों में पनप रही नाराजगी उभर कर सामने आ चुकी है। हर दो महीने में उनके लिए एक एक फैसले की समीक्षा भी हुआ करेगी। बीजेपी के लिए एमपी में जीत भले ही आसान हो पर ये तय है कि ये डेढ़ साल शिवराज सिंह चौहान के लिए हर दो माह में एक नई अग्निपरीक्षा लेकर आएगा।
इसका इशारा पहली ही बैठक में मिल चुका है। कोर कमेटी की बैठक के बाद शिवराज सिंह चौहान भले ही मुस्कुराते हुए दिखाई दे रहे हैं। पर, खबर ये भी है कि चौहान और वीडी शर्मा बैठक के लिए एक साथ पहुंचे थे। बैठक से पहले दोनों के बीच बंद कमरे में मुलाकात की भी खबर है। लेकिन जब बैठक से बाहर निकले तब दोनों के रास्ते बदले हुए थे। संकेत साफ है अब वीडी शर्मा संगठन को मजबूत करेंगे और ये कसावट शिवराज सिंह चौहान की सत्ता पर अभी असर डालेगी। पहली ही बैठक में शिव के राज में कई खामियां नजर आई हैं जो बीजेपी को नुकसान में डाल सकती हैं। यही वजह है कि विष्णु को ताकतवर बनाने पर विचार शुरू हुआ है।
शिवराज सरकार की खामियां-
शिवराज सिंह चौहान की सरकार में अफसरशाही हावी
हालांकि शिवराज सिंह चौहान ने अफसरों पर काबू पाने के लिए कई कोशिशें की हैं। उन्होंने अपना स्टाइल भी चेंज किया। उस स्टाइल का अफसरशाही पर क्या असर हुआ पता नहीं पर वो ये जरूर कहते हैं कि मामा बदल गया है। इसके बाद टांग दिए जाएंगे, गाड़ दिए जाएंगे जैसे जुमलों की लंबी फेहरिस्त है। इसके बावजूद शिवराज कोर कमेटी को ये यकीन नहीं दिला सके कि मामा के राज में अफसरों पर लगाम कसी जा चुकी है।
मंत्रियों का रिपोर्टकार्ड भी खराब
शिवराज कैबिनेट में शामिल कई मंत्रियों के क्षेत्र की सर्वे रिपोर्ट ही चौंकाने वाली रही है। कई मंत्रियों के काम से उनके क्षेत्र की जनता ही खुश नहीं है। कुछ मंत्री ऐसे हैं जिनके पास एक से अधिक अहम विभाग हैं जिस वजह से वो सभी पर ठीक से फोकस नहीं कर पा रहे।
मंत्रियों के विभागों में फेसबदल या बेदखल
मंत्रियों के परफोर्मेंस को देखते हुए उनके विभागों में फेरबदल भी हो सकता है, खबर ये भी है कि शिवराज कैबिनेट से पांच से छह मंत्री बेदखल कर दिए जाएं। ताकि वो क्षेत्र पर पूरा ध्यान दे सकें और विभाग पर भी पकड़ मजबूत की जा सके।
ओबीसी और एससी एसटी सीटों पर कमजोर पकड़
अगले चुनाव से पहले पार्टी का पूरा फोकस प्रदेश की उन 87 सीटों पर है जहां एससीएसटी और ओबीसी वर्ग के वोटर्स का दबदबा है। ऐसी सीटों के हिसाब से भी सत्ता में बदलाव किए जा सकते हैं। भोपाल दौरे के दौरान अमित शाह ने भी ऐसे ही संकेत दिए थे। जब उन्होंने कहा था कि गोपाल भार्गव सीनियर नेता हैं लेकिन आदिवासी इलाकों में उनसे मजबूत पकड़ की उम्मीद नहीं की जा सकती। इसके बाद से गौरी शंकर बिसने की कैबिनेट में वापसी की संभावनाएं बढ़ गई हैं। बिसेन वर्तमान में OBC कल्याण आयोग के अध्यक्ष हैं। इसी तरह, आदिवासी समुदाय से सुलोचना रावत को मंत्री पद दिया जा सकता है। रावत जब कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई थीं, तब उन्हें मंत्री बनाए जाने का आश्वासन दिया गया था।
संगठन बड़ी सर्जरी करने से पीछे नहीं हटेगा
मध्यप्रदेश की सियासत में बहुत जल्द बड़े बदलाव देखे जा सकते हैं। जीत का नक्शा तैयार करने के बाद मंजिल तक पहुंचने के लिए बीजेपी का संगठन बड़ी से बड़ी सर्जरी करने से पीछे नहीं हटेगा। हर दो महीने में होने वाली बैठक के बाद तेजी से असर दिखाई देना भी शुरू होगा। मैसेज सबके लिए साफ है जो जीत की दिशा में आड़े आएगा वो बदल दिया जाएगा। फिलहाल बारी मंत्रियों की है। इसके बाद बड़े चेहरे संगठन के निशाने पर आ जाएं तो कोई ताज्जुब नहीं होगा।