Indore. ये बात साल 2000 की है। इंदौर जनपद का चुनाव इतना इकतरफा हुआ कि कुल 25 सीटों में कांग्रेस 19 जीत गई। भाजपा के हिस्से केवल छह सीटें आईं। खुशी से झूम रहे कांग्रेसियों को साफ लग रहा था कि जनपद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित सारे पद हमारे कब्जे में हो जाएंगे। ऐसा हो भी जाता लेकिन हुआ नहीं क्योंकि कांग्रेस और भाजपा ने मिलकर कांग्रेस को हरा दिया ।
दरअसल, कांग्रेस के अंदर एक और कांग्रेस ने जन्म ले लिया था। दो गुट हो गए। यहीं से कहानी बदलने लगी और जो चुनाव इकतरफा लग रहा था वो इधर-उधर होने लगा। कांग्रेसियों में काना-फूसी शुरू हो गई कि कोई अदृश्य ऑपरेशन चल रहा है जो नतीजों को प्रभावित कर सकता है। वैसे महज छह सीटें लेकर बैठी भाजपा में कोई हलचल नहीं थी, लेकिन अचानक उनके आंगन में सत्ता टहलने लगी। कांग्रेस की तरफ से प्रस्ताव मिलने लगे। भौंचक भाजपा समझी नहीं कि जिस कांग्रेस के पास इकतरफा या कहें कि दो-तिहाई बहुमत है उसे भाजपा क्यों याद आ रही है।
तुम्हारा नहीं मेरा अध्यक्ष..
दरअसल स्पष्ट बहुमत के बाद कांग्रेस में दो गुट हो गए थे। एक गुट चाहता था कि तुलसी सिलावट ((Tulsi Silawat) (तब वे कांग्रेस में थे) के समर्थक रामसिंह पारिया की पत्नी को अध्यक्ष बनाया जाए, जबकि तब के देपालपुर के विधायक जगदीश पटेल (Jagdish Patel) चाहते थे कि उनकी पत्नी सुलोचना पटेल ( Sulochna Patel) अध्यक्ष बनें। कांग्रेस के दो गुट आपस में ही एक-दूसरे को कड़ी टक्कर दे रहे थे। भाजपा दर्शकदीर्घा में बैठी थी। कुछ दिन कांग्रेस के दोनों गुटों में मुकाबला चलता रहा लेकिन जब सहमति नहीं बनी तो दोनों ने गुटों ने अध्यक्ष के लिए अपने-अपने प्रत्याशी खड़े कर दिए। तुलसी सिलावट की तरफ से रामसिंह पारिया की पत्नी और जगदीश पटेल की तरफ से सुलोचना पटेल। उन्नीस वोटों का बंटवारा होना तय हो गया था। जगदीश पटेल गुट के पास नौ वोट थे और पारिया गुट के पास दस। कांग्रेस के झगड़े देख अब तक आनंद की मुद्रा में बैठी भाजपा के छह वोट अचानक कीमती हो गए थे। कांग्रेस के जिस गुट को ये वोट मिलते उसका उद्धार होना तय था। भाजपा का कोई उम्मीदवार नहीं था।
मिले सुर मेरा तुम्हारा
चुनाव की तारीख आते-आते भाजपा और कांग्रेस के एक धड़े के नैन मिलने लगे। बेहद गोपनीय तरीके से ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। पारिया गुट से एक वोट से पिछड़ रहे जगदीश पटेल गुट को सहारा मिला भाजपा का। पार्टी की सहमति से तब के युवा नेता रवि रावलिया ने भाजपा की डोर संभाली । तय यह हुआ कि भाजपा के सभी छह वोट सुलोचना पटेल (जगदीश पटेल गुट) को दे दिए जाएंगे, बदले में उपाध्यक्ष पद पर भाजपा के रवि रावलिया को पटेल गुट के नौ वोट मिल जाना चाहिए। रिश्ता पक्ता हुआ। पटेल के नौ और भाजपा के छह वोट मिलाकर सुलोचना पटेल कुल 15 वोट लाकर अध्यक्ष बन गई। उसके तीस मिनट बाद उपाध्यक्ष का चुनाव होना था। पटेल गुट के वादे की परीक्षा थी। जगदीश पटेल अपनी स्वभाव के मुताबिक बात के खरे निकले। उपाध्यक्ष का चुनाव हुआ तो भाजपा के रवि रावलिया को 15 वोट मिले (जबकि भाजपा के पास वास्तव में छह वोट थे) और कांग्रेस के सोहराब पटेल को दस वोट मिले। इस तरह कांग्रेस (Congress) और भाजपा (BJP) ने मिलकर कांग्रेस को हरा दिया। उसके बाद पांच साल तक कांग्रेस और भाजपा ने प्रेम से गांव की सरकार चलाई। इस संयुक्त मोर्चे का कार्यकाल 2005 में खत्म हुआ। इंदौर जनपद के गलियारों में आज भी इस चुनाव के चर्चे होते हैं क्योंकि इसमें विधायक, पूर्व विधायक सहित कई बड़े नेता दिन-रात एक किए हुए थे।