डॉ. अंबेडकर 66 साल पहले आज ही के दिन बौद्ध हो गए थे, क्यों छोड़ा हिंदू धर्म? जानिए, बाबा साहब की पूरी जीवन यात्रा

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Shivasheesh Tiwari
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डॉ. अंबेडकर 66 साल पहले आज ही के दिन बौद्ध हो गए थे, क्यों छोड़ा हिंदू धर्म? जानिए, बाबा साहब की पूरी जीवन यात्रा

BHOPAL. बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्तूबर 1956 को हिंदू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया था। आज के ही दिन बाबा साहेब अंबेडकर ने अपने करीब 5 लाख अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। इसकी एक वजह तो यही बताई जाती है कि उन्होंने हिंदू धर्म के वर्णाश्रम धर्म और जाति व्यवस्था के अन्याय और असमानता से तंग आकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। इससे पहले उन्होंने हिंदू धर्म में सुधार के तमाम प्रयास किए और अंत में उन्हें लगा कि इस धर्म में कोई बुनियादी बदलाव नहीं हो सकता। कम से कम वह काम तो नहीं हो सकता जिसकी कल्पना उन्होंने की थी। उनकी नई कल्पना उनके 1936 के उस लेख में जाहिर है जिसे 'एनीहिलेशन ऑफ कास्ट' या 'जातिभेद का समूल नाश' कहा गया है। इस बात को उन्होंने 13 अक्तूबर 1935 को येओला में कहा था- 'मैं हिंदू के रूप में पैदा हुआ हूं लेकिन हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं, कम से कम यह तो मेरे वश में है।'



भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय



डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव महू में 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। हालांकि उनका परिवार मूल रूप से रत्नागिरी जिले से ताल्लुक रखता था। अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था, वहीं उनकी माता भीमाबाई थीं। डॉ. अंबेडकर महार जाति के थे। ऐसे में उन्हें बचपन से ही भेदभाव का सामना करना पड़ा। बाबा साहेब बचपन से ही बुद्धिमान और पढ़ाई में अच्छे थे। हालांकि उस दौर में छुआछूत जैसी समस्याएं व्याप्त होने के कारण उनकी शुरुआती शिक्षा में काफी परेशानी आई। लेकिन उन्होंने जात पात की जंजीरों को तोड़ अपनी पढ़ाई पूरी की। मुंबई के एल्फिंस्टन रोड पर स्थित सरकारी स्कूल में वह पहले अछूत छात्र थे। बाद में 1913 में अंबेडकर ने अमेरिका के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से आगे की शिक्षा ली। यह एक बड़ी उपलब्धि थी कि साल 1916 में बाबा साहेब को शोध के लिए सम्मानित किया गया था।



बाबा साहेब को मिली डॉक्टर की उपाधि



लंदन में पढ़ाई के दौरान उनकी स्कॉलरशिप खत्म होने के बाद वह स्वदेश वापस आ गए और यहीं मुंबई के सिडनेम कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर नौकरी करने लगे। 1923 में उन्होंने एक शोध पूरा किया था, जिसके लिए उन्हें लंदन यूनिवर्सिटी ने डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि दी थी। बाद में साल 1927 में अंबेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी से भी पीएचडी पूरी की। बाबा साहेब ने अपने जीवन में जात पात और असमानता का सामना किया। यही वजह है कि वह दलित समुदाय को समान अधिकार दिलाने के लिए कार्य करते रहे। अंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार से पृथक निर्वाचिका की मांग की थी, जिसे मंजूरी भी दे दी गई थी लेकिन गांधी जी ने इसके विरोध में आमरण अनशन किया तो अंबेडकर ने अपनी मांग को वापस ले लिया।



बाबा साहेब अंबेडकर की उपलब्धि



अंबेडकर के राजनीतिक जीवन की बात करें तो उन्होंने लेबर पार्टी का गठन किया था। संविधान समिति के अध्यक्ष रहे। आजादी के बाद कानून मंत्री नियुक्त किया गया। बाद में बाॅम्बे नॉर्थ सीट से देश का पहला आम चुनाव लड़ा लेकिन हार का सामना करना पड़ा। बाबा साहेब राज्यसभा से दो बार सांसद चुने गए। वहीं 6 दिसंबर 1956 को डॉ. भीमराव अंबेडकर का निधन हो गया। उनके निधन के बाद साल 1990 में बाबा साहेब को भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।



बाबा साहब ने बौद्ध धर्म ही क्यों चुना?



डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म और दर्शन को पुनर्जीवित करने और उसकी नई व्याख्या करने की कोशिश की थी। इससे पहले भारतीय उपमहाद्वीप में बुद्ध धर्म लगभग बुझ चुका था। 1750 से 1890 के बीच अंग्रेज विद्वानों ने तमाम स्थलों और साहित्य की खोज करके उनके बीच संबंध जोड़े और यह स्थापित किया कि भारत में इतना महान धर्म था। यह धर्म भारत से लुप्त होकर यूरोप के साहित्य में जिंदा था। जिन विद्वानों ने इसे पुनर्जीवित किया उनमें प्रिंसेप, अलेक्जेंडर कनिंघम और जान मार्शल का नाम प्रमुख है। एडविन अर्नाल्ड ने भी बोध गया जैसे स्थल की उपेक्षा के बारे में लिखा था। डॉ. आंबेडकर ने 12 मई 1956 को कहा था कि जब मैं बौद्ध धर्म को अपनाने की बात करता हूं तो मुझसे दो सवाल पूछे जाते हैं कि मैं बौद्ध धर्म को क्यों पसंद करता हूं? दूसरा सवाल यह है कि मौजूदा विश्व में यह धर्म किस तरह से प्रासंगिक है? इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि मैं बौद्ध धर्म को इसलिए चुन रहा हूं क्योंकि यह तीन सिद्धातों को एक साथ प्रस्तुत करता है जिसे कोई और धर्म नहीं प्रदान करता। बौद्ध धर्म प्रज्ञा प्रदान करता है, करुणा प्रदान करता है और समता का संदेश देता है। प्रज्ञा का अर्थ है अंधविश्वास और परालौकिक शक्तियों के विरुद्ध समझदारी। करुणा का अर्थ है प्रेम और पीड़ित के लिए संवेदना। समता जाति, धर्म, नस्ल और लिंग के आधार पर बने नकली विभाजन से अलग मानवीय बराबरी में विश्वास करने का सिद्धांत है। उनका कहना था कि दुनिया में अच्छे और सुखी जीवन के लिए यह तीनों चीजें जरूरी हैं।



अंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़कर 22 प्रतिज्ञाएं ली थीं



जब अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली तो कई हिंदू मान्यताओं को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकारते हुए कहा कि मैं मानव मात्र के विकास के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को ऊंचा-नीचा मानने वाले अपने पुराने हिंदू धर्म को पूर्णत: त्यागता हूं और बुद्ध को स्वीकार करता हूं। बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के लिए उन्होंने और उनके समर्थकों ने 22 प्रतिज्ञाएं ली। इनमें हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति की अवधारणा यानी की ब्रह्मा, विष्ण, महेश में अविश्वास, अवतारवाद का सिरे खंडन, श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान जैसे कर्मकांडों का बहिष्कार शामिल है। अपनी प्रतिज्ञा में उन्होंने प्रण लिया कि वे कोई भी क्रिया-कर्म ब्राह्मणों के हाथों से नहीं करवाएंगे। उन्होंने कहा कि वे इस सिद्धांत को मानेंगे कि सभी इंसान एक समान हैं और समानता की स्थापना का प्रयत्न करेंगे। बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा कि उन्हें यह पूर्ण विश्वास है कि गौतम बुद्ध का धम्म ही सही धम्म है और अब उनका नया जन्म हो गया है।


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