BHOPAL. मध्य प्रदेश सिंचाई विभाग के बहुचर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले में सभी 6 आरोपियों को अदालत ने दोषमुक्त कर दिया गया है। अभियोजन पक्ष घोटाला साबित करने में विफल रहा। इस मामले को लेकर कोर्ट में 35 गवाहों के बयान दर्ज हुए थे। स्पेशल कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अर्थात EOW अपने आरोप साबित करने में नाकाम रहा। इस घोटाले में ई-टेंडर के पोर्टल को हैक कर और टेंडर में हेर-फेर कर पसंद की कंपनियों को टेंडर देने का आरोप था। करोड़ों के इस घोटाले में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री और वर्तमान गृहमंत्री के ओएसडी के खिलाफ EOW ने मामला दर्ज किया था। लगभग 3 हजार करोड़ के इस घोटाले में अनेक जगहों पर जांच एजेंसियों ने छापेमारी की थी। वहीं इस मामले में आरोपी पक्ष के वकील प्रशांत हरने ने बताया कि उन्होंने कोर्ट में दलील दी थी कि टेंडर होने के समय ही टेंपरिंग पकड़ ली गई थी। जिन टेंडर्स में टेंपरिंग की गई थी उन्हें निरस्त करके नए टेंडर जारी कर दिए गए थे। इसका मतलब घोटाला हुआ ही नहीं था। पहले ही पकड़ा जा चुका था। इलेक्ट्रॉ़निक विकास निगम के तत्कालीन ओएसडी नंदकुमार ब्रह्मे ही इस मामले के ब्हिसिल ब्लोअर थे। सबसे पहले जल निगम ने ब्रह्मे को ही जानकारी दी थी, जिसके बाद उन्होंने ही संबंधित कंपनियों को जांच के लिए लिखा था और उन्हीं पत्रों पर जांच हुई थी। बाद में उन्हीं को ही आरोपी बना दिया गया था। बुधवार को कोर्ट ने गुण दोषों के आधार पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले में अभियोजन हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं।
क्या है मामला
मप्र का ई-टेंडरिंग घोटाला अप्रैल 2018 में उस समय सामने आया था जब जल निगम के 3 टेंडर को खोलते समय कम्प्यूटर ने एक संदेश डिस्प्ले किया। इससे पता चला कि टेंडर में टेम्परिंग की जा रही है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के आदेश पर इसकी जांच मप्र EOW को सौंपी गई थी। प्रारंभिक जांच में पाया गया था कि जीवीपीआर इंजीनियर्स और अन्य कंपनियों ने जल निगम के तीन टेंडरों में बोली की कीमत में 1769 करोड़ का बदलाव कर दिया था। ई टेंडरिंग को लेकर ईओडब्ल्यू ने कई कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की हुई है।
कौन थे आरोपी
इस मामले में मध्य प्रदेश इलेक्ट्रानिक विकास निगम के ओएसडी नंद किशोर ब्रह्मे, ओस्मो आईटी सॉल्यूशन के डॉयरेक्टर वरुण चतुर्वेदी, विनय चौधरी, सुमित गोवलकर, एंटारेस कंपनी के डायरेक्टर मनोहर एमएन और भोपाल के व्यवासायी मनीष खरे आरोपी थे।
स्पेशल जज संदीप कुमार श्रीवास्तव की कोर्ट में चल रहा था मामला
मध्य प्रदेश के ई-टेंडर घोटाले के मामले की सुनवाई स्पेशल जज संदीप कुमार श्रीवास्तव की कोर्ट में चल रहा था। बुधवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ आरोप साबित नहीं कर सका। कोर्ट के इस फैसले से EOW को बड़ा झटका लगा है।
2014 में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू
मध्य प्रदेश सरकार ने अलग-अलग विभागों के ठेकों में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए 2014 में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू की थी। इसके लिए बेंगलुरू की निजी कंपनी से ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया तब से मध्य प्रदेश में हर विभाग इसके माध्यम से ई-टेंडर करता है। मध्य प्रदेश लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (MP Public Health Engineering Department or MP-PHE) ने जलप्रदाय योजना के 3 टेंडर 26 दिसंबर 2017 को जारी किए थे। इनमें सतना के 138 करोड़, राजगढ़ के 656 करोड़ और 282 करोड़ के टेंडर थे।
- टेंडर नंबर 91: सतना के बाण सागर नदी से 166 एमएलडी पानी 1019 गांवों में पहुंचाने के लिए 26 दिसंबर 2017 को ई.टेंडर जारी किया गया था. इस प्रोजेक्ट के लिए 5 बड़ी नामी कंपनियों ने टेंडर भरे थे।
इस तरह हुआ था ई-टेंडिरिंग में फर्जीवाड़ा?
टेंडर टेस्ट के दौरान 2 मार्च 2018 को जल निगम के टेंडर खोलने के लिए डेमो टेंडर भरा गया, जब 25 मार्च को टेंडर लाइव हुआ तो पता चला कि डेमो टेंडर अधिकृत अधिकारी पीके गुरू के इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से नहीं बल्कि फेक इनक्रिप्शन सर्टिफिकेट से भरा गया था। बोली लगाने वाली एक निजी कंपनी 2 टेंडरों में दूसरे नंबर पर रही। कंपनी ने इस मामले में गड़बड़ी की शिकायत की। कंपनी की शिकायत पर तत्कालीन प्रमुख सचिव ने विभाग की लॉगिन से ई-टेंडर साइट को ओपन किया तो उसमें एक जगह लाल क्रॉस दिखाई दिया।
टेम्परिंग कर रेट बदले गए
उन्होंने इस संबंध में जब विभाग के अधिकारियों से पूछा गया तो जवाब मिला कि यह रेड क्रॉस टेंडर साइट पर हमेशा ही आता है। तत्कालीन प्रमुख सचिव ने पूरे मामले की जांच कराई तो सामने आया कि जब ई-प्रोक्योरमेंट में कोई छेड़छाड़ करता है तो रेड क्रॉस का निशान आ जाता है। जांच में ई-टेंडर में टेम्परिंग कर रेट बदलने का तथ्य उजागर हुआ। इसके लिए एक नहीं कई डेमो आईडी का इस्तेमाल हुआ। तत्कालीन प्रमुख सचिव मैप-आईटी मनीष रस्तोगी ने ई-टेंडर घोटाला पकड़ा था।
हैक कर बदलाव करते थे आरोपी
आरोपी ई-टेंडर की पोर्टल को हैक करके टेंडर में हेर-फेर कर पसंद की कंपनियों को काम देते थे। ईडी ने एक साल पहले मामला दर्ज कर जांच शुरू की और अब सुबूत जुटाने के लिए संदिग्धों के ठिकानों पर छापेमारी की। मामले का खुलासा वर्ष 2018 में हुआ था। जनवरी से मार्च 2018 के बीच पांच विभागों में गड़बड़ी का पता चला था। शुरूआत में यह मामला सात टेंडरों में गड़बड़ी और 900 करोड़ रुपये के घोटाले तक सीमित था, पर जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, टेंडर की संख्या भी बढ़ी और घोटाले की रकम भी। मार्च 2018 में तत्कालीन सरकार ने मामले में संबंधित विभागों के 5 अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में मामला दर्ज करा दिया था। दिसंबर 2018 में कमल नाथ सत्ता में आए, तो मामला ईडी को सौंप दिया गया।
ED ने 18 जगहों पर की थी छापेमारी, पूर्व मुख्य सचिव से भी हुई पूछताछ
मध्यप्रदेश के बहुचर्चित ई टेंडर घोटाले (E tender scam) को लेकर ईडी (ED) की टीम ने भोपाल, बेंगलुरू और हैदराबाद में 18 स्थानों पर सर्चिंग की थी। इस घोटाले ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। ईडी की टीम मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी के हैदराबाद स्थित बंजारा हिल्स वाले बंगले पर भी पहुंची थी और ईडी के अधिकारियों ने करीब 5 घंटे से भी ज्यादा वक्त तक रेड्डी से पूछताछ की। ई टेंडर घोटाले में हैदराबाद की दो कंपनियां मैक्स मेंटाना (Max Mentana) और माइक्रो जीवीपीआर इंजीनियर्स लिमिटेड (Micro GVPR Engineers Limited) के प्रमोटर गुंडलुरू वीरा शेखर रेड्डी का नाम भी ई टेंडर घोटाले में सामने आया है।
मेंटाना कंपनी से करोड़ों रुपए हवाला के तौर पर ट्रांसफर
बताया जा रहा है कि मेंटाना कंपनी से करोड़ों रुपए हवाला के तौर पर ट्रांसफर किए गए थे, जिसके तार पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी से जुड़ने के कारण ईडी ने उनसे पूछताछ की है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इन सभी कंपनियों के खिलाफ ईओडब्ल्यू में मामला दर्ज किया था, जिसमें ऑस्मो आईटी सोल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड के संचालक विनय चौधरी, अरुण चतुर्वेदी और सुमित गोलवलकर, एमपीएसईडीसी के महाप्रबंधक एनके ब्रम्हे को जेल भी भेजा गया था। इस पूरे मामले में तत्कालीन जल संसाधन एवं वर्तमान गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के ओएसडी पर भी ईओडब्ल्यू (EOW)ने मामला दर्ज किया था।
नरोत्तम मिश्रा के निजी सचिव और ओएसडी भी आरोपी
बहुचर्चित ई-टेंडरिंग घोटाले ईओडब्ल्यू ने तत्कालीन जल संसाधन मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा के निजी सचिव वीरेंद्र पांडे और ओएसडी रहे निर्मल अवस्थी को हिरासत में लेकर दोनों का गिरफ्तारी पंचनामा बनाया था। जांच एजेंसी ने इन दोनों को अपने राडार पर रखा था। इनसे लगातार पूछताछ का सिलसिला चला था। दोनों को ईओडब्ल्यू ने पूछताछ के लिए बुलाया था। सूत्र बताते हैं कि गिरफ्तारी उस समय भी की जा सकती थी, लेकिन जांच एजेंसी ने अपना केस और पुख्ता बनाने के लिए जानबूझकर दोनों को छोड़ कर निगरानी में रखा। बताया जाता है कि ईओडब्ल्यू को छानबीन के दौरान कई चौंकाने वाली जानकारियां मिली हैं। इनमें यह भी बताया जाता है कि पांडे और अवस्थी हैदराबाद की मेसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड कंपनी के सतत संपर्क में रहे। इन दोनों के घोटाले में शामिल अन्य कंपनियों से कनेक्शन बताए जाते थे।