हरदा में औसत फसल उत्पादन का डेटा क्रेश, अन्य जिलों में भी नहीं मिल रही जानकारी

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Rahul Sharma
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हरदा में औसत फसल उत्पादन का डेटा क्रेश, अन्य जिलों में भी नहीं मिल रही जानकारी

Bhopal. भू—अभिलेख शाखा जिलों के औसत फसल उत्पादन की जानकारी देने से बच रही है। कृषि मंत्री कमल पटेल के गृह जिले हरदा में फसल कटाई प्रयोग के औसत पैदावार का डेटा क्रेश हो चुका है, वहीं अन्य जिलों से भी इससे जुड़ी जानकारी नहीं मिल पा रही है। इससे किसानों को दी गई बीमा राशि में गड़बड़ी की आशंका पैदा हो गई है। किसान संगठन शुरू से आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें फसल बीमा की राशि आधे से भी कम मिली है। हरदा के एडवोकेट अनिल जाट ने सूचना का अधिकार अधिनियम यानी आरटीआई के तहत भू—अभिलेख शाखा से हरदा में पटवारी हल्का स्तर के फसल कटाई प्रयोग के आधार पर पूरे जिले के औसत पैदावार के आंकड़े मांगे थे। जवाब में जो एडवोकेट को पत्र आया उसमें 2020—21 का डेटा क्रेश होने से जानकारी नहीं देने की बात कही गई। पूरे मामले को अब किसानों को हाल ही में दी गई बीमा की राशि में हुए बड़े फर्जीवाड़े से जोड़कर देखा जा रहा है। यह स्थिति अकेले हरदा जिले की नहीं है, बल्कि कई जिलों के अधिकारी भी फसल के औसत पैदावार के आंकड़े देने से कतरा रहे हैं। जिससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पूरे मामले की सच्चाई जानने द सूत्र ने आयुक्त भू—अभिलेख कार्यालय ग्वालियर से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, पर संपर्क नहीं हो सका। वहीं इस पूरे मामले को लेकर आयुक्त को मेल भी किया, पर खबर लिखे जाने तक मेल का भी कोई रिप्लाई नहीं आया।



भिंड में जिस कर्मचारी से जानकारी लेने को कहा, उस नाम का शख्स पूरे कार्यालय में नहीं...




द सूत्र ने भिंड जिले की जानकारी लेने के लिए भू अभिलेख के जिला कोर्डिनेटर धर्मेन्द्र अली से बात की तो उन्होंने कार्यालय आकर पवन नामदेव से जानकारी लेने को कहा, लेकिन जब द सूत्र के प्रतिनिधि मनोज जैन वहां पहुंचे तो संबंधित कार्यालय में पवन नामदेव नाम का कोई कर्मचारी पदस्थ ही नहीं था। इसके बाद से लगातार धर्मेन्द्र अली को कॉल किए गए पर उन्होंने रिसीव ही नहीं किया। वहीं सीहोर के जिला कॉर्डिनेटर प्रशांत शर्मा ने भू—अभिलेख शाखा और अनूपपुर के अधिकारी सिद्धार्थदेव चतुर्वेदी रिपोर्ट तहसील स्तर से लेने को कहा। कुल मिलाकर एक ही जानकारी के लिए अलग—अलग जिलों में अधिकारी  अलग—अलग बहाना बनाकर जानकारी देने से बचते नजर आ रहे हैं।   



डेटा क्रेश होने का फसल बीमा से क्या है संबंध




मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर अलग—अलग जगहों पर फसल का उत्पादन भी अलग—अलग होता है और इसलिए ही फसल नुकसानी का आंकलन भी पूरे प्रदेश में एक सा नहीं कर उत्पादन के आधार पर किया जाता है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में क्लेम की राशि निकालने के लिए बकायदा इसका फार्मूला तक दिया गया है। जिसके अनुसार 5 साल के फसल का औसत उत्पादन यानी थ्रेसहोल्ड उपज को वास्तविक उपज से घटाकर उसमें थ्रेसहोल्ड उपज से भाग देते हैं। इसके बाद बीमित राशि जो कलेक्टर की अध्यक्षता में कमेटी निर्धारित करती है, उसका गुणा करते हैं। इसके बाद जो आंकड़े आते हैं वह क्लेम की राशि होती है। 2020—21 में बीमा राशि के मामले में फसल के औसत पैदावार के आंकड़े वास्तविक उपज थे और आने वाले सालों में यह आंकड़े थ्रेसहोल्ड उपज निकालने के लिए जरूरी होंगे। बिना इनके बीमा क्लेम मिलने में मुश्किलें आएंगी। ऐसे में डेटा क्रेश होने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।



बीमा मिलने के 12 दिन के अंदर ही डेटा हो गया क्रेश




12 फरवरी 2022 को मुख्यमंत्री सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सिंगल क्लिक कर 7618 करोड़ बीमा की राशि किसानों के खातों में भेजी, पर किसान संगठन राशि आने के बाद से यह आरोप लगाते रहे कि बीमा कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए क्लेम की राशि कम दी गई, जो नुकसान हुआ उसके अनुसार प्रदेश में कम से कम 20 हजार करोड़ की बीमा राशि वितरित की जाना थी। वहीं हरदा के एडवोकेट अनिल जाट ने बीमा राशि वितरित होने के मात्र 12 दिन बाद यानी 24 फरवरी को ही औसत पैदावार के आंकड़े आरटीआई के अंतर्गत भू—अभिलेख शाखा से मांग लिए। जिन्हें यह कहकर देने से मना कर दिया कि डेटा क्रेश होने से यह देना संभव नहीं है।



औसत पैदावार के आंकड़ों से मिल जाते इन सवालों के जवाब




जानकार बताते हैं कि यदि आरटीआई के तहत जिले के औसत पैदावार के आंकड़े मिल जाते तो बीमा राशि देने में हुए बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हो सकता था। इन आंकड़ों की मदद से जिले के किस पटवारी हल्के में कितनी बीमा की राशि मिलना थी और मिली कितनी..इसका पता चल जाता। साथ ही जिन किसानों ने एक ही फसल पर दो—दो बीमा कंपनियों से क्लेम की राशि ली उनकी भी पोल खुल जाती और इसलिए ही यह डेटा इतनी आसानी से नहीं दिया जा रहा है।



दो साल पहले कट चुकी फसल के औसत उत्पादन का डेटा तैयार करने मांगा मार्गदर्शन




मध्यप्रदेश के लिए कहा जाता है कि एमपी गजब है...सबसे अजब है। इस मामले में भी ऐसा ही कुछ सामने आया है। एडवोकेट अनिल जाट के आरटीआई आवेदन के बाद अधीक्षक भू—अभिलेख शाखा हरदा की ओर से एक पत्र आयुक्त भू—अभिलेख ग्वालियर को लिखा गया। जिसमें डेटा क्रेश होने से दो साल पहले कट चुकी फसल यानी 2020—21 के औसत उत्पादन का डेटा तैयार करने मार्गदर्शन मांगा गया। जानकार बताते हैं कि जो फसल 2 साल पहले कट चुकी है उसके औसत उत्पादन का डेटा अब तैयार करना संभव नहीं। यह मार्गदर्शन किस उम्मीद या चमत्कार के तहत मांगा गया है यह समझ से परे है।



ऐसे होती है फसल के औसत उत्पादन की गणना




सारा ऐप पटवारी हल्के में बताता है कि किस खेत में जाकर औसत उत्पादन की गणना करना है। उसके बाद पटवारी को उसी खेत में जाकर आगे की प्रक्रिया करनी होती है। संबंधित खेत में जाकर पटवारी 5 बाई 5 मीटर का एक स्क्वेयर तैयार कर फोटो खेंचकर ऐप पर अपलोड की जाती है। उसके बाद उस एरिए की फसल काटकर उसे तौल करते हुए फोटो खेंचकर अपलोड की जाती है। 5 बाई 5 मीटर के स्क्वेयर से फसल काटकर जो उत्पादन का वजन आता है, वही उस पटवारी हल्के का संबंधित फसल का औसत उत्पादन माना जाता है।


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