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MP में संस्कृति विभाग में टेंडर का खेल: चहेती कंपनी के लिए शर्तों में मनमानी

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Aashish Vishwakarma
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MP में संस्कृति विभाग में टेंडर का खेल: चहेती कंपनी के लिए शर्तों में मनमानी





-रूचि वर्मा 





भोपाल। टेंडर्स में गड़बड़ी करना और चहेती कंपनियों को फायदा पंहुचाना सरकारी अधिकारियों का पुराना शगल रहा है। प्रदेश में जल संसाधन विभाग के चर्चित ई-टेंडर घोटाले (E Tender scam), जनसंपर्क विभाग में सरकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के टेंडर में हेरफेर के बाद अब अब संस्कृति विभाग (culture department) में एक खास कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए शर्तों और प्रक्रिया में मनमाफिक बदलाव करने का मामला सामने आया है। इस मामले में सबसे रोचक बात ये है कि संस्कृति विभाग के कारनामा पसंद अधिकारियों ने सारी हदें लांघते हुए उस शख्सियत को टेंडर्स जांचने वाली कमेटी का सदस्य बना दिया जो अपनी कला में तो माहिर हैं और नामी भी। लेकिन पढ़ी-लिखी न होने की वजह से उन्हें टेंडर में कैसे गड़बड़ियां हो सकती हैं, इसकी जरा भी जानकारी नहीं है। 





मनमानी टेंडर प्रक्रिया से बाहर हो गईं कई पात्र कंपनियां: हुआ यूं कि संस्कृति संचालनालय ने 2022-2023 में प्रदेश में विभिन्न सांस्कृतिक समारोह और गतिविधियों के आयोजन के लिए प्राइवेट एजेंसी के इम्पैनलमेंट के बारे में ई-टेंडरिंग (culture department e tender) के जरिए 11 टेंडर्स प्रोसेस किए गए। टेंडर में वर्ष 2017-18, 2018-19 और 2019-20 यानी तीन सालों का न्यू्नतम वार्षिक औसत टर्न ओवर मांगा गया था। बस यहीं पर पहला खेल हुआ। 





अपनी चहेती कंपनी को फायदा पंहुचाने की मंशा से अधिकारियों ने इन वर्षों की बजाए 2018-19, 2019-20 और 2020-21 का वार्षक टर्न ओवर मांग लिया। यह फेरबदल टेक्निकल कमेटी ने स्वविवेक से लिया। आरोप लगाया जा रहा है कि ये फैसला अधिकारियों ने अपनी चहेती कंपनी फोनिक्स नेटवर्क्स को फायदा पंहुचाने के लिए लिया। अधिकारियों के इस सुनियोजित भ्रष्टाचार (Corruption) से सबसे ज्यादा उन कंपनियों एवं फर्म्स को नुकसान हुआ जो विगत 3 वर्ष 2018-19, 2019-20, 2020-21 के हिसाब से पात्र तो थीं लेकिन टेंडर डॉक्यूमेंट की शर्तों (tender conditions) में 2017-18, 2018-19, 2019-20 वर्षो का उल्लेख होने के कारण उन्होंने टेंडर भरा ही नहीं। इसी तरह उन कंपनियों के साथ भी पक्षपात हुआ, जिन्होंने विगत वित्तीय वर्ष 2017-18, 2018-19, 2019-20 के हिसाब से टेंडर भरा, लेकिन टेंडर देने का फैसला विगत वित्तीय वर्षों 2018-19, 2019-20, 2020-21 से हुआ और वे विभाग में इम्पैलनमेंट की पात्रता से बाहर हो गईं।

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जिम्मेदार अफसरों ने झाड़ा पल्ला: द सूत्र ने जब मामले में जांच-पड़ताल शुरू की और संस्कृति संचालनालय के संचालक अदिति कुमार त्रिपाठी से गड़बड़ी के बारे में सवाल किए तो उन्होंने टेंडर प्रक्रिया (tender process) के चालू होने का बहाना देकर कुछ भी कहने से मना कर दिया। इसी तरह टेंडर इवैल्यूएशन के लिए गठित समिति के संचालक नित्यानंद श्रीवास्तव ने भी यह कहकर पल्ला झाड़ लिया की मुद्दे पर समिति ने अपनी रिपोर्ट आगे भेज दी हैं। हालांकि बार-बार पुराने टेंडर्स कैंसिल करने और नए टेंडर्स जारी करने के दिखावे के बाद फिलहाल वर्क ऑर्डर (work order) जारी करने की प्रक्रिया होल्ड कर दी गई है। शायद इस बात का इंतजार किया जा रहा है की मामला ठंडा हो और अपनी पसंदीदा कंपनियों को वर्क ऑर्डर जारी किए जा सकें। यहां आपको बता दें कि विभाग दो बार टेंडर निरस्त कर चुका है और अब 9 फरवरी, 2022 को तीसरी बार टेंडर बिड करने की आख़री डेट निर्धारित की गई है।





चहेती कंपनी की खातिर कैसी-कैसी मनमानी...? 





अब हम आपको बताते हैं कि चहेती कंपनी की खातिर संस्कृति संचालनालय के अधिकारियों ने कैसे मनमानी की...। ये हैं टेंडर के लिए दिखावे की शर्तें

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1- टेंडर भरने वाली कंपनी को विगत 3 वर्षों का कार्यानुभव दिखाना जरूरी है।



जबकि- अपनों को फायदा पंहुचाने के लिए अधिकारियों ने कार्यानुभव के वर्षों का स्पष्ट उल्लेख ही नहीं किया। 





2- टेंडर डालने के लिए A -ग्रेड का लाइसेंस एवं लोक निर्माण विभाग (PWD) में पंजीयन जरूरी है-



जबकि- अधिकारियों ने A-कैटेगरी इलेक्ट्रिकल लाइसेंस की अनिवार्यता को साउंड सिस्टम के टेंडर से हटा दिया। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि फोनिक्स नेटवर्क्स, जिसने इन टेंडर्स के लिए बिड किया था, उसके पास A-कैटेगरी का लाइसेंस नहीं है। इसी का फायदा उठाकर आखिरकार फोनिक्स नेटवर्क्स को टेंडर दे दिया गया।





3- टेंडर की शर्तों के मुताबिक टेंडर के हर पेज पर टेंडर भरने वाली कंपनी के डायरेक्टर के हस्ताक्षर एवं सील होना अनिवार्य है-



जबकि- फोनिक्स नेटवर्क्स के टेंडर में ये पूरी तरह मिसिंग है, लेकिन फिर भी उसकी निविदा को मान्य किया गया। 

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4- टेंडर कमेटी ने इम्पैनलमेंट टेंडर को सिंगल पार्टी में कन्वर्ट कर लिया: टेंडर्स कमेटी ने टेक्निकल इवोल्यूशन में कुछ सर्विसेस के लिए तीन में से 2 कंपनियों को 'स्व विवेक' के आधार पर निर्णय लेकर बाहर कर दिया। लाइट अरेंजमेंट, बिजली, भवन और स्टेज डेकोरेशन के लिए फोनिक्स नेटवर्क्स के सिंगल टेंडर को मंजूर किया गया। यह आरोप लगने के बाद कि सिंगल टेंडर देकर अब इन कंपनियों को उनके मनमाने रेट पर फाइनेंशियल बिड खोलकर इम्पैनल किया जाएगा, संचालनालय ने प्रशासनिक कारणों का हवाला देकर दूसरी बार भी टेंडर कैंसिल कर दिया। अब दिखावे के लिए तीसरी बार फिर से टेंडर निकाले गए हैं लेकिन उसमें भी मामला सिंगल टेंडरिंग का ही लग रहा है क्योंकि टेंडर के नियम दूसरी बार जैसे ही हैं। 





5- टेंडर खुलने के बाद करवाया बदलाव: टेंडर डॉक्यूमेंट के मुताबिक टेंडर में संशोधन केवल टेंडर खुलने की तारीख से तीन दिन पूर्व तक ही किया जा सकता है। लेकिन यहां भी अधिकारियों ने मनमानी की। दूसरी बार टेंडरिंग के बाद 12 अक्टूबर 2021 को टेंडर खुले। ऐसे में शर्त के अनुसार टेंडर डॉक्यूमेंट में 10 अक्टूबर तक ही बदलाव किया जा सकता था। लेकिन यहां टेंडर डॉक्यूमेंट में 13 दिन बाद यानी 25 अक्टूबर, 2021 को बदलाव कराए गए। 





पद्मश्री भूरी बाई (Bhoori Bai) को पढ़ना-लिखना नहीं आता फिर भी टेक्नीकल कमेटी में: यहां सबसे चौंकाने वाली और बेहद आपत्तिजनक बात ये है कि टेंडर पास करने वाली 5 सदस्यीय समिति में जानी-मानी चित्रकार भूरी बाई को भी शामिल किया गया है, लेकिन वे पढ़ी-लिखी नहीं हैं। यानी लिखना-पढ़ना नहीं जानती। प्रदेश के झाबुआ जिले की रहने वाली भूरी बाई को कला के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए पद्मश्री भी मिल चुका है। जाहिर है उन्हें पांच सदस्यीय टेक्नीकल कमेटी में सिर्फ नाम के लिए रखा गया है। यहां खास बात यह भी है की कुछ वक्त पहले तक तो उन्हें हिंदी भी ठीक से नहीं आती थी और वे केवल स्थानीय भीली बोली ही जानती थीं। जब द सूत्र ने टेंडर की प्रक्रिया के बारे में जब भूरी बाई से बातचीत की तो उन्होंने बताया की उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने तो दूसरी बार टेक्निकल कमेटी की मीटिंग में ही जाने से इंकार कर दिया था। हालांकि फिर भी उनसे कमेटी की मीटिंग के कागजों पर दस्तखत करा लिए गए। यहां पर एक बड़ा सवाल यह भी है कि एक पद्मश्री विजेता कलाकार को कोरम के नाम पर उनकी मर्जी के उलट टेक्नीकल कमेटी में रखना कहां तक सही है? 

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टेंडर कैसिल होने से भी फोनिक्स नेटवर्क्स को फायदा: पूरे मामले में दिलचस्प बात ये है कि विभागीय अधिकारी प्रक्रिया में पारदर्शिता जताने के लिए बार-बार टेंडर कैंसिल करते जा रहे हैं लेकिन इसका फायदा फोनिक्स नेटवर्क्स को ही हो रहा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब तक किसी नई कंपनी को टेंडर नहीं मिल जाता, विभाग में पुरानी कंपनी की सेवाएं जारी रहती हैं। यहां पर होना यह चाहिए था कि सवाल उठने के बाद विभाग को कंपनी की सेवाएं तुरंत रद्द करके किसी नई इम्पैनल्ड कंपनी से जरूरत के आधार पर अनुबंध करना चाहिए था। गौरतलब है कि फोनिक्स नेटवर्क्स (Phoenix Network) सिंहस्थ-2016, मध्य प्रदेश स्थापना समारोह-2017, खजुराहो नृत्य समारोह-2018, धरोहर उत्सव-2019, मढ़ई उत्सव-2019 और जनजातीय गौरव दिवस-2020 के आयोजन का काम कर चुकी है। 





उस्ताद अलाउद्दीन खाँ संगीत एवं कला अकादमी, आदिवासी लोक कला एवं बोली विकास अकादमी, साहित्य अकादमी, कालिदास संस्कृत अकादमी, सिंधी साहित्य अकादमी, मराठी साहित्य अकादमी, भोजपुरी साहित्य अकादमी और पंजाबी साहित्य अकादमी यानी कुल 8 अकादमी चलाने वाले संस्कृति संचालनालय (Directorate of Culture) को प्रदेश शासन से नियमित रूप से बड़ा अनुदान दिया जाता है। अब इस अनुदान के उपयोग में कितना भ्रष्टाचार (corruption) एवं गबन (embezzlement) हो रहा है, ये इस एक टेंडर घोटाले (tender scam) से समझा जा सकता है।



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