BHOPAL. मध्यप्रदेश की राजनीति इन दिनों मधुशाला और गोशाला के इर्दगिर्द घूम रही है। कभी दिग्विजय सिंह सरकार को उखाड़ फेंकने वाली उमा भारती अब अपनी ही पार्टी के खिलाफ खड़ी नजर आ रही है। ताज्जुब ये है कि उमा भारती जिस तेजी से मुखर हो रही है बीजेपी और संघ उतना ही खामोश है। बीजेपी की ये खामोशी यकीनन उमा भारती को विचलित कर रही होगी, लेकिन इस चुप्पी का राज समझ लेना भी जरूरी है। उमा भारती के इस गुस्से से बीजेपी को नुकसान कम फायदा ज्यादा है।
सरकार के फैसले के खिलाफ उमा के लगातार ट्वीट आ रहे हैं
उमा भारती इन दिनों शिवराज सिंह चौहान के फैसले की खिलाफत पर इस कदर अमादा है कि कांग्रेस भी इस काम में उनसे पीछे नजर आ रही है। विपक्ष से ज्यादा उमा भारती ही अपनी पार्टी के लिए खतरा बनती नजर आ रही हैं। शराब दुकानों से जुड़े सरकार के फैसले के खिलाफ उमा भारती भर-भरकर ट्वीट कर रही हैं। कभी शराब दुकान पर गोबर फेंकने वाली उमा उन शराब दुकानों के बाहर गाय के साथ प्रदर्शन कर रही हैं और अब गऊ अदालतें लगाने वाली हैं। उमा भारती के हर कदम पर बीजेपी से लेकर संघ तक सन्नाटा पसरा हुआ है।
उमा जब-जब नाराज हुई इसका फायदा बीजेपी को हुआ है
अचानक इन खबरों को हवा मिलने लगी हैं कि उमा भारती की ये नाराजगी बीजेपी को पचास सीटों पर नुकसान पहुंचाएगी, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू असल में बीजेपी की तरफदारी कर रहा है। उमा जब-जब नाराज हुई हैं उनका गुस्सा उन्हीं पर बैकफायर हुआ है और बीजेपी को फायदा हुआ है। इस बार भी उमा के गुस्से का इतिहास खुद को दोहराता नजर आ रहा है और ये नाराजगी उमा पर भारी और बीजेपी के लिए काम की साबित होती नजर आ रही है।
उमा की नाराजी जगजाहिर, आडवाणी पर गुस्सा होकर बनाई थी नई पार्टी
बीजेपी के लिए उमा भारती की नाराजगी कोई नई बात नहीं है। किसी भी बात को लेकर जिद पर अड़ना और फिर अपनी ही पार्टी की खिलाफत पर उतर जाना उमा भारती की पुरानी आदत है। मध्यप्रदेश के मुखिया का पद छोड़ने के बाद उमा भारती के नाराजगी के किस्से कम नहीं है। अपने राजनीतिक मेंटर लालकृष्ण आडवाणी को भी उन्होंने सबके सामने अपने गुस्से का शिकार बनाया था। जिसके बाद पार्टी छोड़ी नई पार्टी बनाई भारतीय जनशक्ति। उसके बाद अचानक उस पार्टी को भी छोड़ दिया और वापस बीजेपी में आई। ऐसे एक नहीं कई किस्से हैं जब उमा भारती ने पार्टी को गुस्सा दिखाया, लेकिन उसका खामियाजा खुद ही भुगता। उमा भारती की मंशा कुछ भी रही हो, लेकिन उनके गुस्से से बीजेपी को नुकसान कम फायदा ज्यादा हुआ है। इस बार उमा भारती की नाराजगी शराब दुकानों पर शिवराज सरकार की नई आबकारी नीति को लेकर है। उमा की मांग है कि आहते बंद किए जाएं और मंदिर-मस्जिद के 50 मीटर के अंदर चल रही दुकानें हटाई जाएं।
31 जनवरी को शराब की नई नीति जारी नहीं हुई तो उमा नाराज हो गईं
अंदरखाने से आने वाली खबरों के अनुसार उमा की मांग का असर प्रस्तावित नीति में नहीं दिख रहा है। हालांकि, अभी नीति का फाइनल ड्राफ्ट तैयार नहीं हुआ है। शिवराज ने उमा से कहा था कि 31 जनवरी तक नई नीति जारी कर देंगे, लेकिन वो भी जारी नहीं हुई। इसके बाद उमा भारती को नाराज होना था वो हुईं भी। इस नाराजगी के बाद से उमा भारती के प्रदर्शन, बयानबाजी और ट्वीट का दौर जारी है।
क्या इस बार भी बीजेपी को उमा की नाराजगी से चमत्कार की उम्मीद है
इस बार उमा की किसी हरकत से सरकार में कोई खलबली नजर नहीं आ रही। बीजेपी का सत्ता संगठन खामोश है अब तक ऐसी कोई खबर भी नहीं की पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा या संघ ने उमा भारती को कहा हो कि बस बहुत हुआ। उमा भारती के तेवर दिन पर दिन तीखे हो रहे हैं। राजनीति के कुछ जानकार तो भविष्यवाणी भी कर चुके हैं कि उमा की नाराजगी बीजेपी पर बहुत भारी पड़ेगी, लेकिन पुराने आंकड़े ये जाहिर करते हैं कि उमा भारती की नाराजगी ने उनकी दखल वाली पचास सीटों पर ही पार्टी को फायदा करवाया था। क्या इस बार भी बीजेपी को ऐसे ही किसी चमत्कार की उम्मीद है।
पिछले दिनों दिए गए उमा भारती के बयानों से नाराजगी दिखाई भी दी
- • बीजेपी के लोग यूपी और एमपी के चुनाव में मेरा फोटो दिखाकर लोधियों से वोट मांगते हैं। आम दिनों में मेरी तस्वीर पोस्टर पर नहीं होती है, लेकिन चुनाव में जरूर लगती है। (22 दिसंबर 2022)
चुनावी साल में उमा भारती के ये बयान बीजेपी की धड़कने बढ़ाने वाले हैं। पहले प्रीतम लोधी के बहाने उमा भारती लोधी वोटर्स के बीच ये बयान देती नजर आईं। माना गया कि उमा भारती पार्टी को अपनी अहमियत समझाना चाहती हैं। अहमियत को दरकिनार किया भी नहीं जा सकता। उमा भारती लोधी समुदाय से आती हैं, जो बुंदेलखंड और निवाड़ के 17 जिलों में काफी प्रभावी हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा के करीब 50 सीटों पर लोधी वोटर्स असरदार हैं। माना जा रहा है कि इसी वजह से बीजेपी के नेता उमा के खिलाफ सीधे बयानबाजी से परहेज कर रहे हैं। उल्टे वो उमा भारती को सम्मान देते हुए ही नजर आ रहे हैं।
हिंदुत्व की फायरब्रांड नेत्री अब शराबबंदी के मुद्दे पर आग उगल रही हैं
बुंदेलखंड और निवाड़ इलाकों में उमा की पकड़ अभी भी मजबूत है और शराबबंदी अभियान से सीधे तौर पर महिलाएं जुड़ी हैं। जिस वजह से ये माना जा रहा है कि उमा भारती बड़े तबके को प्रभावित कर सकती हैं। हिंदुत्व की फायरब्रांड नेत्री अब शराबबंदी के मुद्दे पर आग उगल रही हैं। उनके तेवर देख ये भी माना जा रहा है कि वो छह महीने अगर इसी तरह एक्टिव रहती हैं तो बीजेपी को खासा नुकसान पहुंचा सकती है। लिहाजा बीजेपी जल्द ही डैमेज कंट्रोल में जुट जाएगी।
उमा को शांत कराने क्या बीजेपी या संघ सही वक्त के इंतजार में हैं
उमा भारती का पुराना चुनावी इतिहास ये जाहिर करता है कि उनकी नाराजगी और बगावत कर चुनाव मैदान में उतरना बीजेपी के लिए फायदे का ही सौदा साबित हुआ है। 2008 के चुनाव में अपने इसी दबदबे और लोधी वोटर्स पर भरोसा कर उमा भारती भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाकर मैदान में उतरी थीं। 2008 के चुनाव में 213 सीटों पर लड़ी भारतीय जनशक्ति पार्टी केवल 6 सीटों पर जीत सकी। उमा खुद टीकमगढ़ में कांग्रेस के यादवेंद्र सिंह से 9000 वोटों से हार गईं। उमा की पार्टी ने बीजेपी का नुकसान नहीं, बल्कि फायदा किया। एंटी इनकमबैंसी वोट बीजेएस और कांग्रेस के बीच बंट गया। क्या इसलिए बीजेपी उमा भारती को अघोषित छूट दे रही है। हो सकता है ऐन वक्त पर उमा को आश्वासन देकर चुप करा दिया जाए और शराबबंदी का क्रेडिट पार्टी खुद लेकर महिला वोटर्स का दिल जीत ले। या, उमा को शांत कराने के लिए बीजेपी या संघ फिलहाल किसी मुफीद वक्त के इंतजार में हैं।
चुनाव की आहट के साथ ही उमा भारती का फायरब्रांड कलेवर फिर नजर आने लगा है। फिलहाल उमा के ये तेवर अपना ही घर यानी कि अपनी ही पार्टी जलाने वाले हैं।
इसके बावजूद बीजेपी फिक्रमंद नजर नहीं आ रही। प्रीतम लोधी के निष्कासन के बाद बुंदेलखंड और चंबल में सुलग रही आग ठंडी नहीं हुई थी। उमा भारती वहां भी आग में घी का काम कर रही हैं। अब शराबबंदी के मुद्दे पर लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं। फिर भी बीजेपी की खामोशी के पीछे क्या प्रहलाद लोधी जैसे नेता हैं जो बुंदेलखंड के लोधी वोटर्स के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं। वो मोदी कैबिनेट में रहकर लोधी समुदाय का ही चेहरा बने हुए हैं। क्या ये उमा भारती की काट मानी जा सकती है या बीजेपी और संघ की सोच ये है कि विपक्ष इन मुद्दों को उठाकर दम भरे उससे बेहतर है पार्टी के ही सदस्य को इस विरोध का चेहरा बने रहने दिया जाए। बीजेपी की सोच क्या है फिलहाल इसका सही सही आंकलन नहीं किया जा सकता। पर, इतना जरूर है कि बीजेपी और संघ की खामोशी किसी तूफाने के आने की आहट है। जो शायद उमा भारती के लिए पहले से ज्यादा नुकसानदायी साबित होगा।