जिन्होंने आदिवासियों की दशा और दिशा बदली, आदिवासी जिन्हें भगवान मानते हैं; आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती

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Rahul Garhwal
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जिन्होंने आदिवासियों की दशा और दिशा बदली, आदिवासी जिन्हें भगवान मानते हैं; आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती

BHOPAL. आज 15 नवंबर है। आज क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती है। पिछले साल 15 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी जनजातीय गौरव दिवस महासम्मेलन में शामिल होने भोपाल आए थे। पिछले साल 18 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जबलपुर आए थे। अमित शाह ने शहीद राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को पुष्पांजलि अर्पित की थी। मध्यप्रदेश की राजनीति के केंद्र में आदिवासी हैं। बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हैं। चुनाव के लिए पार्टियां बिरसा मुंडा के जरिए आदिवासियों को अपने पाले में करने की फिराक में हैं। आइए आपको बताते हैं क्रांतिकारी बिरसा मुंडा के बारे में..



बिरसा मुंडा का जन्म



बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के एक आदिवासी परिवार में सुगना और करमी के घर हुआ था। पढ़ाई करते वक्त मुंडा समाज की आलोचना होती थी जो बिरसा को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। वे नाराज हो जाया करते थे। उन्होंने आदिवासी तौर-तरीकों पर ध्यान दिया और समाज के हित के लिए काफी संघर्ष किया।



मुंडा ने बारीकी से किया हिंदू और ईसाई धर्म का अध्ययन



बिरसा मुंडा ने अपने साहस से शौर्य की कई गाथाएं लिखीं। उन्होंने हिन्दू और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया। उन्होंने महसूस किया कि आदिवासी समाज अंधविश्वास की वजह से भटका रहा है। तब उन्होंने एक नए धर्म की शुरुआत की, जिसे बरसाइत कहते थे।। इस तरह धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने 12 विषयों को चुना।



प्रकृति की पूजा करते हैं बरसाइत धर्म के लोग



कहा जाता है बरसाइत धर्म के नियम बहुत कठिन हैं। इसमें आप मांस, मछली, सिगरेट, गुटखा, मदिरा, बीड़ी आदि का सेवन नहीं कर सकते हैं। इसके साथ ही बाजार या किसी के घर का खाना नहीं खा सकते। गुरुवार के दिन फूल-पत्ती तोड़ने की मनाही है। लोगों का मामनन तथा बाजार का या किसी अन्य के यहां का खाना नहीं खा सकते। इतना ही नहीं गुरुवार के दिन फूल, पत्ती तोड़ना की सख्त मनाही है, क्योंकि बरसाइत धर्म के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं।



बिरसा मुंडा ने जलाई स्वतंत्रता की चिंगारी



बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को अंग्रेजों के चुंगल से मुक्ति दिलाने के लिए उन्हें 3 स्तरों पर संगठित करना जरूरी समझा। पहला सामाजिक स्तर, जो अंधविश्वास और ढकोसलों से मुक्ति, आर्थिक सुधार और राजनीतिक स्तर पर आदिवासियों को जोड़ना। इसमें बिरसा मुंडा ने आदिवासियों के नेतृत्व की कमान संभाली और उनमें चिंगारी जलाई।



बिरसा मुंडा ने लड़ी जंग



बिरसा मुंडा ही सही मायने में पराक्रम, सामाजिक जागरण को लेकर एकलव्य के जैसे थे। आदिवासियों के हितों के लिए उन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर कर दिया। उन्हें आदिवासियों की जमीन को अंग्रेजों के कब्जे से छुड़ाने के लिए एक अलग जंग लड़नी पड़ी। इसके लिए बिरसा मुंडा ने 'अबुआ दिशुम अबुआ राज' यानी 'हमारा देश, हमारा राज' का नारा दिया।



अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को दिया धीमा जहर



बिरसा मुंडा के पराक्रम से जब अंग्रेज घबरा गए तो उन्होंने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया। इसके सथ ही उन्हें धीमा जहर दिया। बिरसा मुंडा 9 जून 1900 में शहीद हो गए। बिरसा मुंडा आदिवासियों के हितों के लिए हमेशा लड़ते रहे। आदिवासी आज भी बिरसा मुंडा को भगवान मानते हैं।


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