मालवा-निमाड़ में बीजेपी का टिकट फॉर्मूला होगा फेल, कांग्रेस की चिंता तीसरा मोर्चा

author-image
Sanjay Gupta
एडिट
New Update
मालवा-निमाड़ में बीजेपी का टिकट फॉर्मूला होगा फेल, कांग्रेस की चिंता तीसरा मोर्चा

INDORE. मध्यप्रदेश की सत्ता के गलियारे यानी मालवा-निमाड़ की 66 सीटों की फिक्र में बीजेपी-कांग्रेस अकेले नहीं हैं, जयस और आप भी हैं। वहीं कांग्रेस जिस एआईएमईआईएम यानी ओवैसी की पार्टी को बीजेपी की बी पार्टी कहती है, वो भी कुछ सीटों पर बिगाड़ा करने के लिए तैयार बैठी है, कांग्रेस बुरहानपुर नगर निगम में इससे चोट खाकर बैठी हुई है। हालातों को देखते हुए इस बार कांटे के चुनाव तय हैं, जिस तरह साल 2018 में चुनावी सर्वे करने वाले चाणक्य भी असमंजस में थे, वही स्थिति साल 2023 में होना तय है। ऐसे में एक-एक वोट कीमती है और ऐसे में पार्टी, संगठन जो भूमिका पहले निभाता था वो अब भी निभाएगा, लेकिन इस बार उम्मीदवार ही चुनावी जीत की कुंजी साबित होने वाले हैं।



हारे हुए विधायक को टिकट नहीं तो क्या बीजेपी 37 टिकट काटेगी?



बार-बार गुजरात से लेकर कर्नाटक तक के फॉर्मूले से बीजेपी में टिकट देने की बात उठती है। मोटे तौर पर ये तो सभी जगह से बात आ रही है कि हारे हुए को टिकट नहीं देंगे, अब मालवा-निमाड़ की बात करें तो साल 2018 में बीजेपी यहां पर 66 में से 37 सीट हारी थी मूल रूप से 29 पर ही जीत मिली थी, तो क्या 37 उम्मीदवारों के यानी 56 फीसदी के टिकट कटेंगे। सामान्य शब्दों में कहें तो मालवा-निमाड़ की हर दूसरी सीट पर बीजेपी का नया उम्मीदवार होगा। कहने पर ये जितना सीधा दिखता है, वो मैदान पर अमल में लाना उतना ही मुश्किल है।



यानी बनेगी एक हाथ दे, दूसरे हाथ ले वाली रणनीति



पुराने उम्मीदवारों में कोई संघ का खास है तो कोई संगठन के किसी बड़े पदाधिकारी का तो कोई खुद सीएम का। किसे नाराज करेगी ये तिकड़ी। यानी तय है कि ऐसे में एक हाथ दे और एक हाथ ले वाली बात होना है, कोई किसी के नाम पर राजी होगा तो कोई दूसरे नाम पर और ऐसे में फॉर्मूले का क्या होगा? आखिर में फॉर्मूला होगा जीत का जो जिसके नाम को आगे बढ़ाएगा, उसे ही गारंटी देनी होगी कि वो अपने उम्मीदवार को जिताकर लाएगा। यानी इस रास्ते से बीजेपी के सभी गणित भी सधेंगे और मैदान में नाराजगी मोल लेने का खतरा भी कम होगा और यही बीजेपी के लिए मालवा-निमाड़ में जीत का सबसे अहम फॉर्मूला बनेगा। हालांकि ये भी उतना ही सच है कि मालवा मध्यप्रदेश में संघ का सबसे बड़ा गढ़ है, ऐसे में जहां भी पेंच फंसेगा, वहां संघ की राय ही सबसे अहम होगी। इसलिए दावेदारों को 100 फीसदी टिकट पक्का करने के लिए सीधे दिल्ली में सीधी पहुंच कर लेना चाहिए या फिर संघ की जय-जयकार।



कांग्रेस में 70 फीसदी स्थिति तय है कि कौन लड़ेगा चुनाव



कांग्रेस के टिकट की बात करें तो इस मामले में उनका एक सर्कुलर कि कोई भी कार्यकर्ता खुद को विधानसभा टिकट का दावेदार बताकर प्रचार नहीं करें। यही अंदरखाने की खबर बाहर कर देता है। दरअसल, कांग्रेस के वर्तमान विधायकों को तो टिकट लगभग तय है, वहीं बीते चुनाव में जो हारे खासकर 5 हजार वोट से कम की जिनकी हार थी, उन्हें भी मोटे तौर पर टिकट दिया जाना तय है। यानी करीब-करीब 60 से 70 फीसदी टिकट कांग्रेस के तय हैं, यानी ये कांग्रेस पार्टी में अंदरूनी तौर पर सभी को क्लीयर है, इसलिए यहां विवाद जैसी कोई बात नहीं होनी है। वहीं सिंधिया के नहीं होने से पूरे टिकट अब दिग्गी और कमलनाथ के कोटे के ही होने हैं। ऐसे में यहां के दावेदारों को इन दोनों के सिवा कहीं और भागने की जरूरत ही नहीं है, हां जो इन दोनों पाले में नहीं हैं, उसके लिए फिर गांधी परिवार के दरवाजे खुले हैं, वो वहां से अपना सीधा टिकट कराकर ला सकता है। इसके अलावा कांग्रेस में और कोई गणित नहीं होना है। इसलिए दावेदारों को पता है कि उन्हें क्या करना है और कैसे टिकट लाना है और किस जगह पर ही दावेदारी करने के लिए जुगत लगाना है। ये स्थिति बीजेपी में तो नहीं है, क्योंकि वहां दावेदार जिसके भरोसे रहेगा, वहां उससे भी बड़ा कोई निकल जाएगा।



जयस, आप और ओवैसी से वोट कैसे बचाएं?



कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सवाल होगा कि उसका वोट बैंक कैसे बचा रहे? आप के उम्मीदवार बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकते हैं, लेकिन यही काम वे ग्रामीण इलाके में कांग्रेस के लिए कर सकते हैं, यानी ये दोधारी तलवार है। गुजरात में तो 13 फीसदी वोट सीधे कांग्रेस से कटकर आप के पास गए थे, हालांकि वहां की स्थिति अलग भी थी। कांग्रेस का लगा ही नहीं कि गुजरात चुनाव लड़ने का मन भी है, लेकिन यहां कांग्रेस का ना सिर्फ लड़ने का बल्कि सत्ता में वापसी का भी मन है। इसलिए हर वोट बचाना होगा। वहीं जयस तो सीधे-सीधे बीजेपी के लिए फायदेमंद है। आदिवासी सीटों पर कांग्रेस के लिए जयस के उम्मीदवारों को अपने पाले में लाना और उन्हें टिकट देकर मैदान में उतारने ही रणनीति ही अधिक बेहतर दिखती है, लेकिन क्या जयस तैयारी होगी? बीते चुनाव और इस बार मामला अलग है, करीबी सीटों के चुनाव में जयस को उम्मीद होगी कि वो कुछ सीटों पर हल्ला बोल कर सकी तो किंगमेकर की भूमिका में आ सकती है। उधर कांग्रेस के लिए तीसरी चुनौती बीजेपी की बी टीम के आरोपों से उलझी ओवैसी की पार्टी भी है। जो मुस्लिम बाहुल्य वोट वाली सीटें हैं, वहां इनके उम्मीदवार खड़े होने पर (बीजेपी भी डमी प्रत्याशी उतार सकती है, राजनीति में सब जायज है) कांग्रेस के लिए कम अंतर वाली सीट तकलीफ दे सकती है। ऐसे में कांग्रेस को जयस को साधना है तो डमी प्रत्याशी और ओवैसी के प्रत्याशियों को भी संभालना है और आप का मोर्चा तो खुला ही हुआ है।


Whose government will be formed in MP गर्भ में सरकार-किसकी होगी जय-जयकार एमपी में किसकी बनेगी सरकार एमपी विधानसभा चुनाव 2023 Assembly Election MP-2023 एमपी में कांग्रेस की चुनौती एमपी में बीजेपी की चुनौती Scindia-Chambal and JYAS will decide the results in MP एमपी में सिंधिया-चंबल और जयस तय करेंगे नतीजे MP Assembly Election 2023
Advertisment