मध्यप्रदेश में गोविंद सिंह का ‘गढ़’ छीनेगा बीजेपी का दमदार ‘चेहरा’, सांसदों के सहारे बीजेपी चलेगी जीत का बड़ा दांव!

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश में गोविंद सिंह का ‘गढ़’ छीनेगा बीजेपी का दमदार ‘चेहरा’, सांसदों के सहारे बीजेपी चलेगी जीत का बड़ा दांव!

BHOPAL. मध्यप्रदेश के चुनावी समर में सत्ता और संगठन की खामियों का नतीजा बीजेपी के सांसद भुगतेंगे। बीजेपी फिलहाल उस दौर में है जब पार्टी के बहुत से दिग्गज ही पार्टी से नाराज हैं या बगावत पर अमादा हैं। ऐसे हालात में बीजेपी शायद ये मान बैठी है कि विधायक के लिए उन्हें मुफीद प्रत्याशी मिलना मुश्किल है। माजरा कुछ यूं है कि अपने इस प्रत्याशी में बीजेपी को बहुत-सी क्वालिटी चाहिए। मैट्रिमोनी के विज्ञापन की एक लाइन में समझें तो बीजेपी को चाहिए हर चुनावी मैनेजमेंट में दक्ष प्रत्याशी। जो सामाजिक समीकरण भी सुधार सके। रूठे भाजपाइयों का जवाब भी बन सके और कांग्रेस के जमे जमाए विधायकों की कुर्सी भी हिला सके। अब ये गुण पुराने विधायकों में नहीं मिल रहे। तो, बीजेपी ने सांसदों पर ही दांव खेलने का मन बना लिया है।



बीजेपी सांसदों की बढ़ेंगी मुश्किलें



बीजेपी विधायकों की नाकामी का डर अब सांसदों की मुश्किल बढ़ाने जा रहा है। पार्टी अब अपने ही सांसदों से कुर्बानी मांगने के मूड में है। लोकसभा चुनाव से चंद माह पहले सांसदों को विधानसभा चुनाव के रण में कूदना है। बतौर स्टार प्रचारक या प्रचारक नहीं बल्कि प्रत्याशी बनकर। जो सांसद अब तक ठाठ से क्षेत्र में सरकारी गाड़ियां लेकर घूमते रहे, अब उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट मांगना है। हारने वाले विधायक या कमजोर सीट पर दूसरे समीकरण साधने के लिए बीजेपी अब इसी जुगत पर काम करने की तैयारी में है। जिसके तहत कई सांसदों को अब विधानसभा चुनाव के रण में उतरना है और पार्टी की जीत पक्की करनी है। क्या ये काम इतना आसान है।



क्या होगा सांसदों का भविष्य



पार्टी की कुर्बानी मांगेगी तो शायद ही कोई सांसद इंकार करेगा। वैसे भी उन्हें ये कुर्बानी चंद महीनों की ही देनी है। लेकिन, ये एक कुर्बानी अपने साथ कई सवाल लेकर आएगी। ऐसे  सवाल जो सांसदों के भविष्य पर ही सवालिया निशान लगा देंगे। कहीं ऐसा न हो कि सांसद आलाकमान की गुड बुक्स में आने के लिए कुर्बानी तो दें, लेकिन ये कोशिश बेड लक में तब्दील हो जाए। सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारकर बीजेपी बहुत-सी मुश्किलों को खत्म करना चाहती है। लेकिन, उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिले तो सांसदों का भविष्य क्या होगा।



बीजेपी के पास ऑप्शन की बहुत कमी



19 साल से मध्यप्रदेश की सत्ता में रहने के बावजूद बीजेपी के पास इस बार ऑप्शन्स की बहुत कमी है। हालात ऐसे हैं जो बीजेपी के फेवर में कम विपरीत ज्यादा नजर आते हैं। अपने ही नेताओं की नाराजगी, कार्यकर्ताओं का गुस्सा जैसे ढेरों फैक्टर्स हैं जो बीजेपी की जीत को मुश्किल बना रहे हैं। ऐसी मुश्किल सीटों पर जीत हासिल करने के लिए बीजेपी अब सांसदों को विधानसभा का टिकट देने पर विचार कर रही है। ऐसे सांसदों की सूची भी तकरीबन तैयार है। जो सोशल इंजीनियरिंग में भी कारगर होंगे।



सूत्रों के हवाले से खबर है कि




  • पार्टी अपने गढ़ विंध्य को और मजबूत करने के लिए सीधी सांसद रीति पाठक को विधानसभा चुनाव लड़ाना चाहती है।


  • सतना के सांसद गणेश सिंह का सतना-रीवा और सीधी के कुछ हिस्सों में कुर्मी समाज का खासा दखल है। इसका बीजेपी को विधानसभा में लाभ मिल सकता है, क्योंकि उसके पास कोई बड़ा कुर्मी चेहरा नहीं है। जबकि कांग्रेस में पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल और राज्यसभा सांसद राजमणि पटेल जैसे कुर्मी चेहरे हैं।

  • गुना के बीजेपी सांसद केपी यादव को विधानसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। इससे ज्योतिरादित्य सिंधिया को लोकसभा टिकट देने का रास्ता साफ होगा। दूसरे बीजेपी नेता राव देशराज सिंह के बेटे यादवेंद्र ने हाल ही में कांग्रेस का दामन थाम लिया है। ऐसे में यादव वर्ग में संतुलन बनाना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती है।

  • नर्मदापुरम क्षेत्र में सरताज सिंह और सीतासरन शर्मा वरिष्ठ हो चुके हैं। अब राव उदयप्रताप को आगे बढ़ाने की तैयारी की जा रही है।

  • अनिल फिरोजिया सांसद बनने के पहले विधायक भी रह चुके हैं। विधानसभा में लौटते हैं, तो खटीक समाज को मजबूती मिलेगी। 

  • जीएस डामोर बीजेपी के कद्दावर नेता रहे दिलीप सिंह भूरिया की कमी को पूरा कर सकते हैं।



  • प्लानिंग में जुटी बीजेपी



    इस तरह सांसदों का सहारा लेकर बीजेपी सामाजिक और चुनावी सारे समीकरण साधने की प्लानिंग में जुट गई है। 2019 में दिग्विजय सिंह को हराने वाली प्रज्ञा भारती को नई  जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। हिंदुत्व का चेहरा बन चुकी प्रज्ञा भारती को लहार से टिकट देने पर विचार हो सकता है। ताकि वो अब तक बीजेपी के हाथ से दूर रही नेताप्रतिपक्ष गोविंद सिंह की सीट पर उन्हें टक्कर दे सकें। लहार में ये पैंतरा कितना काम आता है ये भी देखने वाली बात होगी।



    इंटरनल सर्वे में बीजेपी की हालत खराब



    खबर तो यहां तक है कि कुछ सांसद ही विधायक का चुनाव लड़ने में दिलचस्पी ले रहे हैं, लेकिन जमीनी हालात देखते हुए ये किसी बड़े रिस्क से कम नजर नहीं आता। बीजेपी के ही इंटरनल सर्वे और चंद नेताओं की रिपोर्ट में बीजेपी के जमीनी हालात खराब नजर आए हैं। ऐसे में सांसद अगर जीत की चुनौती लेकर मैदान में उतरते हैं, लेकिन हार जाते हैं तो क्या इसका असर लोकसभा चुनाव में उनकी दावेदारी पर नहीं पड़ेगा। विधानसभा चुनाव हारने के बाद लोकसभा का टिकट देने से पहले क्या कुर्बानी मांगने वाले दिग्गज नेता ही ये सवाल नहीं करेंगे कि आपको टिकट क्यों दिया जाए। ये बात सही है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में जमीन आसमान का अंतर है और लोकसभा में तो बीजेपी के पास पीएम मोदी का चेहरा भी है। उसके बावजूद इस हार का असर आगे नहीं पड़ेगा, इसकी क्या गारंटी है। अब देखना ये है कि ये पुराने चावल बीजेपी के लिए चुनावी बिरयानी का जायका बरकरार रख पाते हैं या नहीं।



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    चुनाव जीतने के लिए हर दांव-पेंच आजमाने को तैयार बीजेपी



    बीजेपी के लिए मध्यप्रदेश कितना अहम है, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा लीजिए कि यहां हर दांव-पेंच आजमाने की तैयारी है। अब चुनावी हांडी में नए की जगह पुराने चावल पकाए जा सकते हैं। वैसे भी देखा जाए तो पुराने चावलों का स्वाद नए चावल से बेहतर ही होता है, लेकिन तब जब हांडी के बाकी जायके सही मात्रा में हों। फिलहाल ये है कि हांडी तो बहुत पुरानी है, लेकिन उसकी मजबूती पर खुद बीजेपी को ही यकीन नहीं है। ऊपर से हर जमीनी मसाला बिगड़ा हुआ है। क्या उन हालातों का असर सांसद से विधायक बनने की तैयारी में उतरे नेताओं के परफॉर्मेंस पर नहीं पड़ेगा।


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