देव श्रीमाली , GWALIOR. आगामी विधानसभा कि चुनाव को लेकर बीएसपी का प्लान सफल हुआ तो ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस की एकतरफा जीत की उम्मीद पूरी तरफ फैल हो सकती है। बीएसपी की योजना ग्वालियर-चंबल में एक तिहाई सीटों पर पूरी ताकत से चुनाव लड़ने की है। ये वे सीट हैं। जिनमें बीएसपी या तो कभी न कभी जीत चुकी है या फिर वह अच्छी टक्कर देती रही है। वह इनके लिए कांग्रेस के बागियों पर निगाह रखे है। माना जा रहा है कुछ सीट पर बीजेपी मायावती से मिलकर ऐसे लोगों को टिकट दिलाने की तैयारी में है जो कांग्रेस की जीत का गणित बिगाड़ सके।
विधानसभा चुनाव 2018
2018 के विधानसभा चुनाव में कुल 34 सीटों में से कांग्रेस को 26 और बीजेपी को सिर्फ 7 सीटों से संतोष करना पड़ा था। जबकि बसपा को एक सीट मिली थी |इस वजह से कांग्रेस ने राज्य में अपनी सरकार बनाई थी। हालांकि, 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ इसी अंचल के कई विधायक कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ गए। जिसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। जिसके बाद राज्य में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होते है। उसमें भाजपा को 19 सीटे मिलती हैं। वहीं कांग्रेस को 9 सीट मिल पाती है। उपचुनाव के बाद इस अंचल में बीजेपी और कांग्रेस के पास 17- 17 विधायक हैं।
2018 विधानसभा चुनाव
आंकडों को देखे तो 2018 के चुनाव परिणाम इस प्रकार रहे -
- श्योपुर (2)- 1 कांग्रेस, 1 भाजपा
विधानसभा चुनाव 2013
मध्य प्रदेश के 2013 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस विधानसभा चुनाव में यहां पर बीजेपी को 21 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस के 11 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इसके अलावा 2 सीटें बसपा के खाते में भी आईं थीं। गौरतलब है कि 2013 में बीजेपी की सरकार बनी थी और इन चुनावी आंकड़ों में भी बीजेपी इस इलाके में सबसे बड़ी पार्टी थी।
- श्योपुर (2) - 1 भाजपा ,1 कांग्रेस ( श्योपुर सीट पर दूसरी बड़ी पार्टी बीएसपी)
विधानसभा चुनाव 2008
2008 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो यहां बीजेपी ने 18 विधायक चुनाव जीते और बीजेपी इस क्षेत्र में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। जबकि कांग्रेस को 13 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इसके अलावा बसपा ने भी 3 सीटों पर अपनी उपस्थिती दर्ज कराई थी। उल्लेखनीय है कि 2008 में भी प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी थी।
- श्योपुर (2)-2 सीट कांग्रेस
विधानसभा चुनाव 2003
2003 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस क्षेत्र में बीजेपी को 23 सीटें मिली थीं, जबकि इस चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटों से संतोष करना पड़ा था। बसपा का भी एक विधायक विधानसभा पहुंचा था। इसके अलावा राष्ट्रीय समता दल को एक सीट मिली थी।आपको बता दें कि बीजेपी ने 2003 में इस क्षेत्र से 23 सीटें हासिल कर राज्य में अपनी सरकार बनाई थी और उस समय सीएम दिग्विजय सिंह भी इसी क्षेत्र से चुनाव लड़े थे, लेकिन उनकी सरकार चली गई थी।
विधानसभा चुनाव 2003
- श्योपुर -1 कांग्रेस, 1 भाजपा
क्या है बीएसपी का गणित
बीएसपी 2018 में परिणाम भले ही बेहतर नही दे पाई हो लेकिन बीएसपी अपने विधानसभा चुनाव में मिले मतों के आंकड़ों से उत्साहित है। 2018 के चुनाव में बीजेपी महज एक भिंड सीट जीत सकी थी। उंसके संजीव सिंह कुशवाह संजू जीत सके थे लेकिन आंकड़ों पर निगाह डालें तो 34 में से 15 सीटों पर उसके प्रत्याशी बेहतर वोट पा सके थे। एमपी में 2003,2008 और 2013 में बीएसपी को दस फीसदी वोट मिलता रहा है और इसका फायदा बीजेपी को मिलता रहा। लेकिन 2018 में अंचल में हुए दलित और सवर्ण दंगे ने दलितों का बीएसपी से मोहभंग कर दिया नतीजतन उसे मिलने वाला वोट बैंक घटकर आधा रह गया। उसे महज 5 फीसदी ही वोट मिले जिसके चलते बीजेपी का सूफड़ा साफ हो गया।
बीएसपी फिर गणित बिगाड़ने की तैयारी
अगर हम देखें तो बीएसपी ने हार के बावजूद श्योपुर जिले में श्योपुर सीट पर तुल्सीराम मीणा 8 फीसदी ले सके और कांग्रेस जीत गई लेकिन विजयपुर में बीएसपी प्रत्याशी बाबूलाल मेवरा 22 फीसदी वोट पा गए तो कांग्रेस के दिग्गज नेता राम निवास रावत 2100 वोट से हार गए। मुरैना जिले में बीएसपी के वोट घटते ही कांग्रेस सभी 6 सीट जीत गई। बीजेपी खाता तक नही खोल सकी। जौरा में उंसके प्रत्याशी सोनेराम कुशवाह 27.82 फीसदी, भिंड जिले में भिंड में तो बीएसपी जीती ही उसे अटेर में 12 फीसदी, लहार में 20 ,मेहगांव में 13.68,कोलारस में 10, भितवार में 12 ,सेंवढ़ा में 15 और कोलारस में 10 फीसदी वोट पाए। बीएसपी अब हर हाल में 2013 और उससे पहले का अपना वोट बैंक वापिस पाना चाहती है और उसके इस प्रयास से बीजेपी की बांछे खिली हुई है। अगर बीएसपी अपना खोया बोट बैंक हासिल कर लेती है तो कांग्रेस का एमपी में सत्ता में वापसी का सपना चकनाचूर हो सकता है। क्योंकि अगर बीएसपी पांच फीसदी और वोट हासिल कर ले जाती है तो कांग्रेस दस सीटें हार सकती है। यही वजह है कि उसकी निगाह कांग्रेस और बीजेपी के बागी नेताओ पर है वहीं बीएसपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके दलित नेता फूलसिंह बरैया दावा करते है कि अंचल में बीएसपी का अब कोई वजूद नही बचा है। दलित जान चुका है कि बीएसपी सिर्फ वोट काटने का काम करती है। अब दलित कांग्रेस के साथ ही है और पूरी एकजुटता के साथ है। इस बार अंचल में बीजेपी और बीएसपी एकदम साफ हो जाएगी।