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जादू चलाने की कवायद: MP में दो महीने से आदिवासी राजनीति के केंद्र में, समझें गणित

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जादू चलाने की कवायद: MP में दो महीने से आदिवासी राजनीति के केंद्र में, समझें गणित

भोपाल. मध्य प्रदेश में 2023 में विधानसभा चुनाव (2023 Assembly election) होने हैं। इसके लिए बीजेपी ने बाकायदा जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है। इसके लिए सबसे पहले जिसे साधा, वो आदिवासी हैं। 18 सितंबर से लगातार आदिवासी (MP Adivasi Politics) मध्य प्रदेश की राजनीति के केंद्र में हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह तक आदिवासियों पर डोरे डालने की कवायद कर चुके हैं। आइए, समझते हैं, आखिर माजरा क्या है...

18 सितंबर को शाह आए

18 सितंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जबलपुर (Amit shah mp visit) पहुंचे थे। वे गोंड राजा शंकर शाह  (Shankar Shah) और उनके बेटे रघुनाथ शाह की समाधि पर गए थे। शंकर शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा थे। उन्होंने अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह (Mutiny) का बिगुल फूंक दिया था। इसके बाद अंग्रेजों ने 18 सितंबर 1858 को शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह को तोप से बांधकर उड़ा दिया था। हाल ही में बीजेपी ने आदिवासी बाहुल्य (Majority) इलाके में अपनी स्थिति को समझा है। बीजेपी समझ चुकी है कि आदिवासियों को खुश किए बिना 2023 में सत्ता में वापसी नहीं होगी।

15 नवंबर को मोदी आए

प्रधानमंत्री मोदी 15 नवंबर को भोपाल आए। यहां उन्होंने दो कार्यक्रमों में शिरकत की। दोनों कार्यक्रमों के केंद्र में आदिवासी ही थे। पहला कार्यक्रम- 15 नवंबर को बिरसा मुंडा (Birsa munda) की जयंती पर जनजातीय गौरव सम्मेलन का आयोजन हुआ। दूसरा कार्यक्रम- रानी कमलापति स्टेशन का उद्घाटन। एक दिन पहले ही हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति किया गया था। रानी कमलापति (Rani Kamlapati) गोंड रानी थीं। दोनों कार्यक्रमों में मोदी ने यही संदेश दिया कि पहले की सरकारों ने आदिवासियों के लिए कुछ नहीं किया।

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जनजातीय गौरव सप्ताह, शिवराज ने किया समापन

मध्य प्रदेश सरकार 15 से 22 नवंबर तक जनजातीय गौरव सप्ताह (Tribal Pride Week) मनाया। 22 नवंबर को शिवराज ने मंडला (Shivraj Mandla Visit) में सप्ताह का समापन किया। आदिवासियों से जुड़ी कई घोषणाएं की। कुल मिलाकर कहें तो बीजेपी आदिवासियों को अपने पक्ष में करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है।

ऐसे बदले आदिवासी बहुल सीटों पर समीकरण

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  • 2003 विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से भाजपा ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी। 1998 में कांग्रेस का आदिवासी सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव था।

  • 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में भाजपा ने 29 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
  • 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने जीती 31 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आईं थीं।
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  • 2018 के इलेक्शन में पांसा पलट गया। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई।
  • जयस का बढ़ता जनाधार, BJP- कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती

    पिछले दिनों से जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (Jays) आदिवासियों के मुद्दे को तेजी से उठा रहा है। इससे नजर आता है कि जयस 2023 के इलेक्शन में भाजपा (Bjp tribal politics) और कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ सकती है। हालांकि, भाजपा जयस को कांग्रेस की बी टीम बताकर उसके प्रभाव को खत्म करने की मुहिम में जुटी है। इसका कारण है जयस के फाउंडर मेंबर्स में से एक डॉ. हीरालाल, जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। जयस के बाकी नेताओं का कहना है कि वह किसी की A या B टीम नहीं है।

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    2018 की गलती BJP नहीं दोहराएगी!

    बीजेपी 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से सिर्फ 7 सीटें दूर थी। इसका सबसे बड़ा कारण था, आदिवासी बहुल सीटों पर बीजेपी को नुकसान। मध्यप्रदेश में 84 विधानसभा सीटें आदिवासी बहुल है, जिसमें से बीजेपी सिर्फ 34 सीट जीतने में कामयाब रही। यहां 2013 विधानसभा चुनाव की तुलना में बीजेपी को 25 सीटों का नुकसान हुआ था। इसका नतीजा हुआ कि प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस (Congress) की सत्ता में वापसी हुई। लेकिन बीजेपी इस बार अपनी गलती दोहराना नहीं चाहती है। इसलिए विधानसभा चुनाव के दो साल पहले ही बीजेपी आदिवासी वोटर्स को साधने की कवायद में जुट गई है। 

    21% वोट पर है दोनों दलों की नजर

    मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों समुदाय (Tribal community) के लिए आरक्षित है। यहां करीब 21 परसेंट वोट आदिवासियों के हैं। पिछले कई चुनावों से 'जंगलों का वासी' राजनीति के केंद्र में रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक 2003, 2008, 2013 में आदिवासी वोटरों के दम पर ही बीजेपी सत्ता में आई थी। ऐसे में दोनों ही दल आदिवासी हितैषी होने का दावा कर रहे हैं। 

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