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अंकुश मौर्य, BHOPAL . मराठी भाषा में एक लोकोक्ति है- सांग काम्या ओ नाम्या। इसका हिंदी में मतलब है कि जितना काम कहा उतना ही करना। अपना अतिरिक्त दिमाग न लगाना। ऐसा ही हाल सरकारी सिस्टम का है। सिस्टम में बैठे अधिकारी उतना ही काम करते हैं, जितना उनसे कहा जाता है। इसका ताजा उदाहरण राजधानी भोपाल की सड़कों का है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कुछ दिनों पहले अधिकारियों को जिन सड़कों का उदाहरण देते हुए क्लास लगाई थी। अधिकारियों ने केवल उन्हीं सड़कों की मरम्मत की। बाकी शहर की सड़कें मरम्मत की बाट जोह रही हैं और यदि पेच वर्क किया भी तो ऐसा कि 3 महीने बाद ही सड़क उखड़ जाएगी।
हमीदिया और शाहजहांनाबाद की सड़कों पर निकले थे सीएम
25 अक्टूबर की शाम को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी पत्नी साधना सिंह के साथ भोपाल की सड़कों पर घूमने के लिए निकले थे। इस दौरान वो हमीदिया रोड और शाहजहांनाबाद की सड़कों पर निकले। इन सड़कों की हालत देखकर सीएम हैरान परेशान हो गए और दूसरे ही दिन सीएम ने अफसरों की मीटिंग ली और जमकर क्लास ली। हिदायत दी कि 15 दिन में सड़क ठीक हो जाना चाहिए। सीएम के अल्टीमेटम को 15 दिन से ज्यादा दिन बीत चुके हैं। सीएम साहब तो बेहद व्यस्त हैं। इसलिए द सूत्र दिखा रहा है कि 15 दिन बाद क्या है राजधानी की सड़कों के हाल। हमने जब हाल देखा तो स्थानीय लोगों ने सड़कों की क्वालिटी पर गंभीर सवाल उठाए। द सूत्र संवाददाता ने इस पूरी सड़क का जायजा लिया तो सड़क में गड्ढे तो नजर नहीं आए। लेकिन यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि साल में दो बार ये सड़क बनती है और इस बार सीएम के निर्देश के बाद भी जो सड़क बनाई गई वो ज्यादा दिन टिकने वाली नहीं है।
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सीएम ने कहा था- शहर की सड़कें ठीक करो
बहरहाल ये तो बात हुई उस हमीदिया रोड की जिसे लेकर सीएम ने नाराजगी जताई थी लेकिन सीएम ने तो पूरे शहर की सड़कों की मरम्मत के लिए कहा था। केवल एक सड़क के लिए नहीं। अधिकारियों ने ऐसा क्यों किया कि मरम्मत का काम तो शुरू करवाया मगर ठेकेदार क्या काम कर रहा है, उस पर ध्यान ही नहीं दिया। यानी पेचवर्क किया गया अपने हिसाब से। ठेकेदार ने इस आधे अधूरे पेचवर्क का पूरा पैसा लिया होगा। अधिकारियों को देखने की फुर्सत ही नहीं है कि ठेकेदार ने क्या काम किया। सीएम ने 26 अक्टूबर की वर्चुअल मीटिंग में अफसरों को अकर्मण्य कहा था। इसका मतलब होता है कि काम न करने वाले आलसी लोग और वाकई में अधिकारी आलसी ही हैं। इसका उदाहरण राजधानी भोपाल की खस्ताहाल सड़कें हैं।
इधर, ओल्ड सुभाष नगर की सड़क की बात करें तो ये सड़क 2018 में 56 लाख की लागत से बनकर तैयार हुई थी। अच्छी सड़क पर चलने का सौभाग्य जनता को केवल चंद महीनों के लिए ही मिला। उसके बाद से ही सड़क खराब है। सड़क 2023 तक गारंटी पीरियड में है। बावजूद इसके अधिकारी न तो ठेकेदार जिसका नाम गणेश सिंह है, उसे ये कहने की हिम्मत जुटा रहे हैं कि भाई अभी जनवरी तक गारंटी है, उससे पहले ही सड़क खराब हो चुकी है, इसे सुधारो। ठेकेदार को कहने में न तो पैसा लग रहा है न ही समय। केवल मुंह चलाना है। अधिकारी वो भी कर पा रहे। अब इसी बात से अकर्मण्यता का अंदाजा लगाइए। अधिकारी बाकी सड़कों की मरम्मत के लिए शायद एक बार फिर सीएम साहब की क्लास का इंतजार कर रहे हैं। शायद अफसरों की मोटी चमड़ी को सीएम शब्दों के कोड़े खाने की आदत हो चुकी है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार अधिकारी?
इस पूरे मामले में द सूत्र ने पीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर संजय म्हस्के से बातचीत की। संजय म्हस्के ने भी वो ही बताया जो हम अपनी रिपोर्ट में दिखा चुके है कि केवल दो सड़कों की शिकायतें आई थीं। वो बना दी गई हैं और जब द सूत्र ने सड़कों की क्वालिटी को लेकर पूछा तो म्हस्के ने कहा वो कुछ नहीं कह सकते। इस बारे में ईई ही बता पाएंगे। गारंटी पीरियड की सड़कों को लेकर पूछा तो अब अधिकारी कह रहे हैं कि नोटिस जारी किया जा रहा है। अधिकारियों की अकर्मण्यता का इससे बड़ा सबूत और क्या चाहिए।
राजधानी भोपाल की 3500 किलोमीटर से ज्यादा की सड़कों का जिम्मा नगर निगम के पास है। लेकिन उनकी हालत भी ठीक नहीं है। लिहाजा सीएम के अल्टीमेटम के बाद नगर निगम को भी जागना था। मगर हकीकत में जमीन पर कोई काम शुरू होता नजर नहीं आ रहा है। इधर, कमिश्नर केवीएस चौधरी कोलसानी कह रहे हैं कि सड़कों की मरम्मत में अभी तीन महीने का समय और लगेगा।