महेश्वर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की गुटबाजी की सबसे ज्यादा चर्चा, 2018 के चुनाव में हुई थी सिर्फ 49 फीसदी वोटिंग

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Rahul Garhwal
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महेश्वर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की गुटबाजी की सबसे ज्यादा चर्चा, 2018 के चुनाव में हुई थी सिर्फ 49 फीसदी वोटिंग

KHARGONE. महेश्वर, जो अपने घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर और महेश्वरी साड़ी के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस शहर का पुराना नाम माहिष्मति था। महेश्वर मां अहिल्या बाई होलकर की राजधानी था। यहां के राजराजेश्वरी मंदिर में सैकड़ों सालों से अखंड जोत जल रही है। जितना समृद्ध इस शहर का धार्मिक इतिहास है, उतना ही रोमांचक यहां का राजनीतिक खेल है। खरगोन जिले की इस विधानसभा सीट का प्रदेश की राजनीति में बेहद खास महत्व है।





महेश्वर विधानसभा सीट का सियासी मिजाज





खरगोन जिले की ये सीट साल 1952 में महेश्वर और बड़वाह क्षेत्र को मिलाकर बनाई गई थी। 1962 में परिसीमन के बाद महेश्वर विधानसभा बनी। ये इलाका खरगोन लोकसभा सीट का एक हिस्सा है, जो भौगोलिक रूप से निमाड़ में पड़ता है। महेश्वर सीट कांग्रेस के दबदबे वाली सीट है। फिलहाल यहां से कांग्रेस की विजयलक्ष्मी साधौ विधायक हैं। जो 15 महीने की सरकार में मंत्री भी थीं। अब तक हुए 15 चुनावों में से 9 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। एक बार जनसंघ, एक बार जनता पार्टी और 4 बार बीजेपी ने जीत दर्ज की।





महेश्वर विधानसभा सीट का राजनीतिक समीकरण





कांग्रेस के कब्जे वाली इस सीट पर कांग्रेस की गुटबाजी ही सबसे ज्यादा चर्चित है। इस सीट पर जहां विजयलक्ष्मी साधौ का कब्जा है तो वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव का भी प्रभाव है। साधौ और यादव के बीच पटरी बैठती नहीं है और ये खींचतान आमतौर पर देखने में आ जाती है। साल 2013 में ये गुटबाजी खुलकर सामने आ गई थी जब कांग्रेस ने अरुण यादव के समर्थक सुनील खांडे पर दांव लगाया था। हालांकि खांडे बीजेपी के राजकुमार मेव से हार गए लेकिन साधौ पर इस पूरे घटनाक्रम में बीजेपी से सांठगाठ के आरोप लगे। 2018 में कांग्रेस ने विजयलक्ष्मी साधौ को टिकट दिया। इस बार साधौ ने इस सीट को कांग्रेस के खाते में जोड़ दिया।





महेश्वर विधानसभा सीट पर जातिगत समीकरण





महेश्वर सीट के जातीय समीकरण अन्य सीटों के मुकाबले थोड़े पेचीदे हैं। इस सीट पर कुल वोटरों की संख्या 1 लाख 94 हजार 606 है। यहां पर ज्यादातर मतदाता अनुसूचित जाति के हैं। पाटीदार, ब्राह्मण, वैश्य समाज के वोटर्स भी यहां बड़ी संख्या में हैं। देवी अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल में राजधानी रहा महेश्वर वैसे तो आरक्षित सीट है। जातीय समीकरण के आधार पर यहां कई बाहरी उम्मीदवारों की भी नजर रहती है। इस सीट पर वोटिंग को लेकर जनता के बीच खास उत्साह नहीं रहता। साल 2018 में हुए चुनाव में मात्र यहां 49 फीसदी ही वोटिंग हुई थी।





महेश्वर विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे





महेश्वर वैसे तो प्रदेश की धार्मिक नगरी के रूप में जानी जाती है लेकिन यहां की समस्याएं बाकी शहरों की तरह ही हैं। यहां भी शहर में सड़कें, शिक्षा, रोजगार, अवैध खनन और निमाड़ उत्सव की जगह बदले जाना बड़ा मुद्दा है। महेश्वर साड़ी के बुनकरों को बाजार उपलब्ध नहीं होने और सरकार की तरफ से संरक्षण नहीं मिलने से भी हालात खराब हैं। इन तमाम सवालों के जवाब जब हमने कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं से जानना चाहे तो दोनों दलों के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे।





द सूत्र ने जब इलाके के प्रबुद्धजनों, वरिष्ठ पत्रकारों और इलाके की जनता से बात की तो कुछ सवाल निकल कर आए।





द सूत्र ने विधायक से पूछे सवाल







  • इलाके में आपके करवाए कोई 4 बड़े काम बताएं ?



  • नर्मदा से अवैध खनन लगातार जारी है, इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए ?


  • बुनकरों की समस्याएं दूर करने के लिए आपने क्या कोशिश की ?


  • शहर में सड़कों की हालत खराब है, इसके लिए विधायक निधि से कितना खर्च किया ?


  • मूलभूत सुविधाओं के लिए आपने कितनी राशि खर्च की ?






  • महेश्वर की जनता का मूड जानने के लिए क्लिक करें.. महेश्वर विधानसभा सीट पर क्या है जनता का मिजाज, आज चुनाव हुए तो कौन जीतेगा ?





    सवालों से भागीं महेश्वर विधायक विजयलक्ष्मी साधौ





    महेश्वर की विधायक विजयलक्ष्मी साधौ के पास जनता के इन सवालों के कोई जवाब नहीं थे। वे इन सवालों से भागती हुईं नजर आईं।





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