LAHAR. लहार भिंड जिले की एक ऐसी विधानसभा सीट जो कांग्रेस भेद किला कहा जाता है, क्योंकि यहां पिछले 35 साल से कांग्रेस हारी ही नहीं है। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह की इस सीट पर बीजेपी ने साम, दाम दंड भेद सबकुछ आजमा लिया लेकिन जीत नसीब नहीं हुई है।
सियासी मिजाज
लहार विधानसभा सीट का सियासी मिजाज 1990 से 2018 तक एक जैसा है। 1990 में आई राम लहर भी उनका बाल बांका नहीं कर सकी। 2003 में उमा की आंधी हो या 2013 में शिवराज मोदी की लहर गोविंद सिंह कांग्रेस का परचम लहाने में कामयाब रहे हैं। मथुरा प्रसाद महंत इस सीट पर बीजेपी के इकलौते विधायक रहे हैं और 1985 में उन्होंने चुनाव जीता था और उसके बाद गोविंद ने तीन बार महंत को मात दी 2003 में बीजेपी ने टिकट बदला कुछ नहीं हुआ। 2008 में तो बीजेपी तीसरे नंबर पर चली गई। 2013 और 2018 में रसाल सिंह ने टक्कर दी लेकिन जीत नहीं सके
जातीय समीकरण
ठाकुर (भदौरिया), ओबीसी, ब्राह्मण मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। जैन समाज और मुस्लिम समाज के मतदाताओं का प्रभाव रहता है। कांग्रेस में गोविंद सिंह के अलावा कोई विकल्प नहीं है। दूसरी तरफ बीजेपी की बात करें तो रसाल सिंह के भाई योगेंद्र सिंह सक्रिय हैं। पिछली बार बीजेपी के अबंरीश ने बसपा से चुनाव लड़ा जिससे बीजेपी की हार हुई। लहार सीट को जीतने के लिए बीजेपी हर बार मंथन करती है मगर नतीजा मुफीद नहीं होता। नेताओं का कहना है कि बीजेपी के बड़े नेता ही गोविंद सिंह को सपोर्ट करते हैं।
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मुद्दे
जहां तक मुद्दों की बात करें तो लहार अभी भी विकास की बाट जोह रहा है। बेरोजगारी दूर करने के कोई ठोस उपाय नहीं हुआ। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी हालात ठीक हैं। रेत का अवैध खनन भी यहां का बड़ा मुद्दा जहां लोगों की खेती बर्बाद हो गई। अब लहार में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुद्दों पर बात नहीं होती बल्कि इस पर होती है कि गोविंद सिंह को हराया कैसे जाए
इसके अलावा द सूत्र ने इलाके के प्रबुद्धजन और पत्रकारों से बातचीत की और इस आधार पर कुछ और मुद्दे निकल आए।
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