BHOPAL. अपने स्कूल के दिनों में आपने भी एक खेल जरूर खेला होगा। जिसमें सभी साथी गोला बनाकर खड़े हो जाते हैं। दो या तीन साथी गोले के अंदर होते हैं जिन्हें बाकी लोग बॉल से हिट करने की कोशिश करते हैं। बॉल का निशाना किस और है पर वो जाएगी किस और ये समझ नहीं आता। इस गेम को कहते हैं डोज बॉल। बस समझ लीजिए मध्यप्रदेश की सियासत वही गोला है। जहां सारे आला चेहरे जमकर खड़े हैं और अंदर मौजूद हैं कुछ ऐसे राजनीतिक प्लेयर जो बाजी उलट पलट कर सकते हैं। इसलिए बॉल के निशाने पर है। आला चेहरे ये तय करने में जुटे हैं कि बॉल से किस खिलाड़ी को हिट करना है। बॉल से बचना है या नहीं वो अंदर मौजूद खिलाड़ी के हाथ में है। प्रदेश कांग्रेस में ये बॉल जरूर कमलनाथ के हाथ में नजर आती है। पर अंदरूनी खबरों की माने तो उसकी दिशा तय कर रहे हैं दिग्विजय सिंह। जो मुख्य सर्कल से भी अदृश्य हैं, लेकिन किसी बॉल की तरह पूरे गोले में चुपचाप घूम रहे हैं। उन प्लेयर्स को परख रहे हैं जो कांग्रेस के पाले में आए तो फायदेमंद साबित होंगे। ऐसी ही एक प्लेयर को वो अपने पाले में शामिल कर चुके हैं। ग्वालियर चंबल क्षेत्र में उनका ये अदृश्य ऑपरेशन आगे भी जारी रहने वाला है।
इस बार गेम की शुरूआत कांग्रेस ने की है
शिवराज सरकार में राज्य मंत्री का दर्जा रखने वाले अजय सिंह यादव के भाई यादवेंद्र सिंह यादव ने बड़े दल बल के साथ कांग्रेस का हाथ पकड़ लिया। बीजेपी लाख छुपाने की कोशिश करे, लेकिन ये घटना उसके लिए किसी झटके से कम नहीं है। इस तरह के कारनामे अब तक बीजेपी ही करती आ रही थी। इस बार गेम की शुरूआत कांग्रेस ने की है। इस पूरी घटना के स्क्रिप्ट राइटर कांग्रेस नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह माने जा रहे हैं।
दिग्विजय सिंह के निशाने पर सबसे पहले ग्वालियर चंबल है
मध्यप्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वाले भी इस बात को लेकर कंफ्यूज हैं कि बीजेपी के जबरदस्त और भव्य चुनाव प्रचार के बीच कांग्रेस इतनी खामोश क्यों है। गिनती की कुछ बड़ी सभाएं या घोषणाओं के अलावा कांग्रेस में कोई चुनावी हरकत नजर नहीं आती। जबकि हकीकत ये है कि पानी सिर्फ सतह का शांत अंडर करंट तेजी से काम कर रहा है और करंट की तरह सियासी धाराओं में तेजी से बह रहे हैं दिग्विजय सिंह। जो मिस्टर बंटाधार के टैग के साथ नेपथ्य में रहकर ही कांग्रेस के जाल को मजबूत कर रहे हैं। उनके निशाने पर सबसे पहले ग्वालियर चंबल शामिल है। अपने धुर प्रतिद्वंद्वि ज्योतिरादित्य सिंधिया के क्षेत्र में दिग्विजय सिंह बैठकों का दौर शुरू कर चुके हैं।
दिग्विजय सिंह की स्टाइल में इंटरनल सर्जरी का दौर जारी है
सत्ता की चाबी भी ग्वालियर चंबल के हाथ ही है। जिसे दलबदल की एतिहासिक घटना से पहले कांग्रेस हथिया चुकी थी। और, अब अगले चुनाव में उसे गंवाना नहीं चाहती। इस चाबी की पहुंच हैं कार्यकर्ता। जिन्हें एक्टिव करने के लिए दिग्विजय सिंह गुपचुप बैठकें कर रहे हैं। ग्वालियर और दतिया में वो कार्यकर्ताओं के साथ विस्तार से बैठक कर चुके हैं। उनकी स्टाइल में इंटरनल सर्जरी का दौर भी जारी है। जिसका असर यादवेंद्र सिंह यादव के दलबदल के तौर पर देखा जा चुका है। बहुत जल्द कुछ ऐसे ही और दृश्य नजर आएं तो उसे दिग्विजय सिंह की चुनावी चतुराई कहा जा सकता है।
पर्दे के पीछे से ही मजबूत जाल बुन रहे हैं दिग्विजय सिंह
दिग्विजय सिंह ने खुद पर लगे मिस्टर बंटाधार के टैग को अब जज्ब कर लिया है। इसी टैग के साथ अब वो खुद को विपक्षी दलों का पंचिंग बैग भी बताने लगे हैं। वैसे तो मुस्कुराते हुए ही चुनावी चालें चलते हैं। कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया को दी इनडायरेक्टली चेतावनी के बाद इन दिनों उनका एग्रेशन भी सुर्खियों में है। दिग्विजय सिंह समेत पूरी कांग्रेस ये मान चुकी है कि उनका फेस सामने लाने पर बीजेपी को मौका मिल जाता है। इसलिए दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे रहकर ही मजबूत जाल बुन रहे हैं।
2018 में पोस्टर बॉय बनकर रह गए ज्योतिरादित्य सिंधिया
कार्यकर्ताओं के बीच उनकी रीच और संगठन गढ़ने की क्षमता पर कोई शक नहीं किया जा सकता। 2018 में कांग्रेस की जीत का सेहरा कमलनाथ के सिर सजा, पोस्टर बॉय बने ज्योतिरादित्य सिंधिया। दिग्विजय सिंह मंच के नीचे ही बैठे। इसका ये मतलब नहीं था कि वो जीत के भागीदार नहीं थे। राजनीतिक विश्लेषकों ने भी यही दावा किया था कि उस वक्त भी दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा ने कांग्रेस को मजबूत किया था।
उमा भारती की मिस्टर बंटाधार की तस्वीर में कैद होकर रह गए
साल 2003 में दिग्विजय सिंह सरकार बुरी तरह गिरी। तूफानी वेग से आईं उमा भारती ने मिस्टर बंटाधार की तस्वीर गढ़ी और तब से लेकर आज तक दिग्विजय सिंह उस छवि में कैद होकर रह गए। या यूं कहें कि उन्होंने इस छवि से बाहर निकलने की कोशिश ही नहीं की। साल 2018 में जब कमलनाथ शपथ लेने के लिए मंच पर चढ़े तब तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया उनके साथ थे। जीत की इबारत लिखने वालों में दिग्विजय सिंह भी एक थे, लेकिन उन्होंने खुद नीचे बैठना चुना। जबकि मध्यप्रदेश की सत्ता में कांग्रेस में की वापसी में दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा का बड़ा योगदान माना गया।
नर्मदा परिक्रमा में करीब 140 विधानसभा क्षेत्रों को दिग्विजय ने कवर किया था
चुनाव से कई महीने पहले दिग्विजय 192 दिनों तक, यानी छह महीने से भी लंबे समय तक नर्मदा परिक्रमा पदयात्रा करके राज्य में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को नए उत्साह से भर दिया था। 3,300 किलोमीटर की यात्रा के दौरान करीब 140 विधानसभा क्षेत्रों में दिग्विजय सिंह ने कवर किया था। इस दौरान वो पंगत में संगत करते थे। जहां मौजूद होते उस क्षेत्र के नाराज और उदासीन नेताओं के साथ एक साथ खाने पर बैठते। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि पंगत में संगत की वजह से दस से पंद्रह सीटों पर कांग्रेस भीतराघात से बच सकी।
पार्टी के संकट मोचक दिग्विजय सिंह संगठन को जोड़ने में जुटे हैं
राहुल गांधी की यात्रा मध्यप्रदेश में प्रवेश करे उससे पहले दिग्विजय सिंह ने बयान दिया कि बीजेपी अब तोड़फोड़ करेगी। इस बयान से भी सियासी गलियारों में खूब हलचल मची। सियासी पंडितों के मुताबिक दिग्विजय सिंह के एक बयान ने बीजेपी के हौसलों को पस्त कर दिया। नरेंद्र सलूजा जरूर बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन उनके लिए भी कमलनाथ ने यही कहा कि इसका अंदेशा पहले से ही था। अपने बयानों से अक्सर पार्टी का संकट मोचक बनने वाले दिग्विजय सिंह नेपथ्य में रहते हुए संगठन को जोड़ने में जुटे हुए हैं। 20-20 घंटे जनसंपर्क करना उनकी बड़ी ताकत है। दिल्ली में रहें, भोपाल में रहें या राघौगढ़ में उनके बंगले पर कार्यकर्ताओं की सबसे ज्यादा भीड़ अब भी नजर आती है।
पर्दे के पीछे से दिग्विजय सिंह कांग्रेस को मजबूत कर रहे हैं
सिंधिया के गढ़ ग्वालियर, नरोत्तम मिश्रा के गढ़ दतिया और यशोधरा राजे की सीट शिवपुरी में उनका जनसंपर्क अभियान तेजी से जारी है। बैठकों का एक दौर हो चुका है दूसरा दौर 26 मार्च से दोबारा शुरू होने की खबरें हैं। सियासी पंडितों की मानें तो पर्दे के पीछे रह कर दिग्विजय सिंह कांग्रेस को मजबूत करने में जुटे हैं। एक बार फिर दिग्विजय सिंह परदे के पीछे से उसी तरह एक्टिव हैं। कांग्रेस में शामिल होने और सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद यादवेंद्र सिंह यादव का दिग्विजय सिंह से मुलाकात करने जाना भी यही इशारा करते हैं कि पूरी पटकथा उन्हीं की लिखी हुई है।
इस बार तिकड़ी की जगह दो मंझे हुए नेताओं की जोड़ी मैदान में है
कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों तजुर्बेकार नेता हैं। दोनों के बीच ये अदृश्य समझौता हो चुका लगता है कि कमलनाथ लोगों के सामने रहेंगे और दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे रह कर संगठन मजबूत करेंगे। इस उम्र में भी दोनों नेता न टायर्ड नजर आ रहे हैं न रिटायर्ड। पिछली बार इनके बीच एक युवा चेहरा था ज्योतिरादित्य सिंधिया। इनकी तिकड़ी ने कांग्रेस के लिए सत्ता का सूखा खत्म किया था। इस बार तिकड़ी की जगह दो मंझे हुए नेताओं की जोड़ी मैदान में है। जिन पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी की उम्मीद टिकी है। क्या ये दोनों ही मिलकर 2018 की जीत दोहरा पाएंगे। या, कांग्रेस में फिर कुछ पुराने चेहरे मुख्य धारा में नजर आएंगे।