GWALIOR. डबरा, ग्वालियर जिले की सबसे बड़ी तहसील। डबरा में एक शुगर मिल हुआ करती थी जो कई सालों से बंद पड़ी है। शुगर मिल के कर्मचारियों का करोड़ों रुपए अभी भी बकाया है। दूसरा, डबरा की मंडी जो इस अंचल की बड़ी मंडियों में शुमार है। ग्वालियर चंबल में जहां सबसे ज्यादा धान का उत्पादन होता है तो वो डबरा ही है। डबरा के टेकनपुर में बीएसएफ एकेडमी है। डबरा सियासी रूप से भी बेहद अहम सीट है।
डबरा विधानसभा सीट का सियासी मिजाज
डबरा विधानसभा सीट कांग्रेस की सीट मानी जाती है और परिसीमन के बाद जब ये अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हुई तब से कांग्रेस ही यहां से जीत दर्ज करती आई है। डबरा में पहला चुनाव 1962 में हुआ और कांग्रेस के वृंदा सहाय ने जीत दर्ज की। इसके बाद 1967 और 1972 का चुनाव भी कांग्रेस ने ही जीता। 1980 में बीजेपी ने यहां से खाता खोला लेकिन अगला ही चुनाव बीजेपी हार गई। 1990 में प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पहली बार यहां से जीत दर्ज की लेकिन 1993 का चुनाव नरोत्तम मिश्रा हार गए। मगर इसके बाद 1998, 2003 का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 2008 में परिसीमन के बाद ये सीट आरक्षित हो गई और इसके बाद इमरती देवी 15 साल तक विधायक रही।
डबरा विधानसभा सीट पर जातिगत समीकरण
डबरा आरक्षित विधानसभा सीट है इसलिए अनुसूचित जाति वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद ओबीसी और सवर्ण वर्ग के मतदाता आते हैं। डबरा में अनुसूचित जाति वर्ग के करीब 60 से ज्यादा वोटर्स हैं। इसके बाद ओबीसी मतदाताओं की संख्या करीब 75 हजार, ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य मतदाताओं की संख्या करीब 60 हजार है। आरक्षित सीट होने की वजह से बाकी जातियां पार्टियों को समर्थन देती है।
डबरा विधानसभा सीट के सियासी समीकरण
डबरा के मौजूदा सियासी समीकरण है। नरोत्तम बनाम इमरती। इसके अलावा इस सीट पर कोई समीकरण नजर नहीं आता। इमरती देवी किसी भी तरह से गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का प्रभाव यहां से खत्म करने में जुटी हैं। हाल ही में हुए जनपद चुनाव में इमरती ने अपने समर्थकों को जिताकर बीजेपी और नरोत्तम मिश्रा को चैलेंज कर दिया। इसके बाद नगर पालिका चुनाव में भी अपने समर्थक को अध्यक्ष पद देकर दबदबा कायम करने की कोशिश की है। हाल ही में इमरती का पंडोखर सरकार के साथ बातचीत का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें पंडोखर सरकार कह रहे हैं कि करीबियों ने ही उन्हें उपचुनाव हरवाया। इशारा सभी को समझ आ गया मगर लगता है कि इमरती को पार्टी की तरफ से कुछ संकेत मिले हैं इसलिए वो कह रही हैं कि उनकी नाकामी की वजह से उपचुनाव में हार मिली। इमरती का दावा भी है कि वो चुनाव की तैयारियों में जुटी हैं लेकिन यहां से टिकट किसे मिलेगा ये साफ नहीं है।
डबरा विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे
डबरा से 3 बार गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा विधायक रहे। 3 बार इमरती देवी ने प्रतिनिधित्व किया लेकिन डबरा विकास में पिछड़ा हुआ है। सिंध नदी से रेत का और बिलौआ में काला पत्थर (गिट्टी) का अवैध उत्खनन बड़ा मुद्दा है। इसके साथ ही अस्पताल में डॉक्टर और सुविधाओं की कमी से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। छोटे से इलाज के लिए भी डबरा के लोगों को ग्वालियर जाना पड़ता है। एक-एक ही गर्ल्स और बॉयज कॉलेज है। जिस वजह से उन्हें पढ़ाई के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता है। युवाओं के लिए रोजगार के साधन नहीं हैं। इन तमाम मुद्दों को लेकर जब बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं से बात की जाती है तो वो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं।
द सूत्र ने क्षेत्र के नागरिकों और पत्रकारों से बातचीत की और उसके आधार पर विधायक के लिए कुछ और सवाल निकलकर सामने आए।
द सूत्र ने डबरा विधायक से पूछे सवाल
- विधायक बनने के बाद क्या किया?
डबरा विधायक सुरेश राजे ने दिया जवाब
इन सवालों को लेकर जब डबरा विधायक सुरेश राजे से बातचीत की गई तो राजे ने कहा कि उन्हें ज्यादा मौका नहीं मिला और आने वाले चुनाव में कांग्रेस से टिकट मिलने का दावा किया। इसके अलावा उन्होंने कहा कि बीजेपी में सिंधिया का अलस से कोई कद नहीं है। नरोत्तम मिश्रा का असर अभी भी डबरा सीट पर है। डबरा कांग्रेस की सीट है। इमरती देवी ने कांग्रेस छोड़ी तो वो चुनाव हारीं।
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