दिलीप मिश्रा, DEWAS. देवास जिले के हाटपीपल्या में रहने वाले 28 साल के प्रांशुक कांठेड़ अमेरिका की एक कंपनी में सवा करोड़ रुपए सालाना पैकेज पर डाटा साइंटिस्ट के रूप में नौकरी कर रहे थे। आध्यात्म के प्रति रुझान बढ़ा तो करीब डेढ साल पहले नौकरी छोडक़र अपने गांव हाटपीपल्या आ गए। प्रांशुक के मन में दीक्षा ग्रहण करने का विचार आया, और सोमवार को हाटपीपल्या में जैन संत की दीक्षा लेकर संत बन गए। करीब तीन घंटे चले दीक्षा समारोह में प्रांशकु के साथ थांदला में रहने वाले उनके मामा के बेटे प्रियांश लोढ़ा और रतलाम के पवन कासावां दीक्षित ने भी उमेश मुनि के शिष्य जिनेंद्र मुनि से दीक् ग्रहण की।
डेढ़ साल पहले छोड़ दी थी नौकरी
प्रांशुक वैराग्य धारण करने का संकल्प कर अमेरिका से नौकरी छोड़कर भारत आ गए थे, इसके बाद गुरु के सानिध्य में रहने लगे। गुरुदेव द्वारा बताए मार्ग पर चलने के लिए प्रांशुक ने माता-पिता से वैराग्य धारण करने की बात कही। माता-पिता ने एक लिखित अनुमति गुरुदेव जिनेंद्र मुनि जी को दी। जिसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों से हाटपिपल्या में जैन संत आए। जिनके सानिध्य में प्रांशुक ने दीक्षा ग्रहण की। कृषि मंडी परिसर में आयोजित भव्य दीक्षा समारोह में जितेंद्रमुनि मसा., स्वयंमुनि मसा., धर्मेंद्रमुनि मसा., आदि की उपस्थिति में दीक्षा कार्यक्रम संपन्न हुआ। दीक्षा समारोह कार्यक्रम में तीनों दीक्षार्थियों के परिजन व बडी संख्या में समाजजन उपस्थित रहे।