BHOPAL. दवाओं, उपकरणों, बुनियादी ढांचे की कमी जैसे सीमित संसाधनों ने मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के हालात तो पहले से ही दयनीय बना रखे हैं। ऊपर से राज्य के 13 मेडिकल कॉलेजों की स्थिति और भी खराब इसलिए हो गई है क्योंकि उनमें करीब 30 फीसदी मेडिकल टीचर्स के पद खाली पड़े हुए हैं। यानि मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाने के लिए टीचर्स ही नहीं मिल रहे। उसपर सरकार का तुर्रा ये कि उसने मध्य प्रदेश में नए मेडिकल कॉलेजेस खोलने की घोषणा कर दी हैं। जब पहले ही पर्याप्त टीचर्स के अभाव में अध्ययनरत मेडिकल स्टूडेंट्स को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है...तो ऐसे में सरकार का बिना तैयारी के, बिना टीचर्स की व्यवस्था किये नए-नए मेडिकल कॉलेज खोलना कितना सही है? और जब पहले ही मेडिकल कॉलेज में टीचर्स नहीं है...जरूरी सुविधाएं नहीं हैं तो नेशनल मेडिकल कमीशन भी उनको चलने कैसे दे रहा है? और ऐसे ही हाल रहे तो क्या अच्छे डॉक्टरों की खेप निकल पाएगी? इन तमाम सवालों को लेकर द सूत्र ने MP में पिछले पांच सालों में के छोटी जगहों पर खोले गए कॉलेज के हालात जाने और सामने आई चौंकाने वाली स्थिति...जानने के लिए देखिये ये ग्राउंड रिपोर्ट...
सरकार की कई जिलों में मेडिकल कॉलेज शुरू करने की तैयारी
मध्य प्रदेश सरकार की राज्य के सतना, राजगढ़, नीमच, मंदसौर, श्योपुर, सिंगरौली और मंडला में नए मेडिकल कॉलेजेस शुरू करने की तैयारी जोर-शोर से चालू हैं। दरअसल, देश में हेल्थ इंफ्रास्ट्र्क्चर को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देशभर में 112 नए मेडिकल कॉलेज शुरू करने का ऐलान किया है। अगले 4 साल के भीतर ये कॉलेज शुरू होंगे। इसके लिए वो ही जिले चुने जाएंगे जहां आबादी 10 लाख से ज्यादा होगी। इसमें भी शर्त ये है कि यहां पहले से कोई प्राइवेट या सरकारी मेडिकल कॉलेज नहीं होना चाहिए। सरकार ने उन 112 जिलों के नाम को भी फाइनल भी कर लिया है। और इनमें 21 जिले मप्र के है। 112 नए कॉलेज के निर्माण के लिए 36 हजार करोड़ का बजट रखा गया है। इसमें 22 हजार करोड़ केंद्र का होगा, 14 हजार करोड़ राज्य का। एक मेडिकल कॉलेज के निर्माण में 325 करोड़ रु. खर्च किए जाएंगे। पूर्वोत्तर राज्यों में केंद्र सरकार 90% खर्च करेगी, बाकी राज्यों में 60:40 का अनुपात होगा। 60 फीसदी राशि केंद्र की और 40 फीसदी राशि राज्य की। साल 2022-23 के सत्र से इनमें से कुछ कॉलेजों में एमबीबीएस सीटों में दाखिला भी शुरू कर दिया जाएगा। सरकार का दावा है कि नए मेडिकल कालेज खोलने से प्रदेश में डाक्टरों और शिक्षकों की कमी दूर होगी क्योंकि हर कॉलेज में 150 सीटें होंगी और इस हिसाब से राज्य में 900 एमबीबीएस सीटें बढ़ जाएंगी। यहाँ से तैयार होने वाले डॉक्टर फैकल्टी के तौर पर नियुक्त हो सकेंगे। साथ ही कई जगहों पर ये मेडिकल कॉलेज जिला अस्पतालों का उन्नयन कर खोले जाएंगे, और इसीलिए लिहाजा मरीजों को सुविधा होगी। और मेडिकल शोध के अवसर भी बढ़ जाएंगे।
प्रोफेसरों के लगभग 40 फीसदी और एसोसिएट प्रोफेसर के 33 फीसदी पद खाली
लेकिन यहाँ बड़ा सवाल ये है कि मध्य प्रदेश में पहले से मौजूद 13 मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को पढ़ाने वाले मेडिकल टीचर्स की भारी कमी हैं। वर्ष 2018 तक मध्य प्रदेश के केवल 6 शहरों - इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा और सागर - में ही राज्य के मेडिकल कॉलेज का कुनबा था। 2018 के बाद सरकार ने इस कुनबे को बढ़ाया और विदिशा, शहडोल, छिंदवाड़ा, दतिया, खंडवा, रतलाम और शिवपुरी में नए कॉलेज खुले। अब राज्य में मेडिकल कॉलेजेस का कुनबा तो बढ़ गया, साथ ही मेडिकल स्टूडेंट्स भी बढ़ गए... मगर नहीं बढ़ी तो मेडिकल टीचर्स की संख्या। बता दें कि राज्य के 13 सरकारी मेडिकल कालेजों में चिकित्सा शिक्षकों के करीब 2890 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से एक-तिहाई पद यानि 850 (30%) पद खाली पड़े हुए हैं। प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में प्रोफेसरों के लगभग 40 फीसदी और एसोसिएट प्रोफेसर के 33 फीसदी पद खाली हैं। वहीं सहायक प्रोफेसरों के पदों के लिए लगभग 29 फीसदी रिक्तियां हैं। उसमें भी सबसे ज्यादा कमी तो पिछले पांच सालों में - विदिशा, शहडोल, छिंदवाड़ा, दतिया, खंडवा, रतलाम और शिवपुरी - में खोले गए नए मेडिकल कालेजों में ही है। जहाँ 300-400 करोड रु. की लागत से बिल्डिंगें तो बना दी गई...उपकरण भी लगा दिए गए... लेकिन इन उपकरणों को चलाने वाले नहीं है.. स्टूडेंट्स को पढ़ाने वाले नहीं है। यानी पुराने मेडिकल कॉलेज संभल नहीं रहे हैं और सरकार ने नए मेडिकल कॉलेज खोलने जा रही है।अब ऐसे में सतना, राजगढ़, नीमच, मंदसौर, श्योपुर, सिंगरौली और मंडला में नए मेडिकल कॉलेज खोलने के बाद उनमें मौजूद स्टूडेंट्स को पढ़ाने वाले मेडिकल टीचर कहां से आएंगे? पढ़िए राज्य के कुछ मेडिकल कॉलेजेस में टीचर्स की कितनी कमी है...
दतिया मेडिकल कॉलेज
- दतिया का गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज वर्ष 2018 में अगस्त में शुरू किया गया था। एमबीबीएस कोर्स के लिए 120 सीटें हैं। हाल ही में यहाँ पर MD के सीटें भी शुरू हो गई। नर्सिंग और पैरामेडिकल पाठ्यक्रम भी पेश किए जाते हैं। कॉलेज मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध है और NMC (नेशनल मेडिकल कमिशन/ पूर्व में MCI) द्वारा मान्यता प्राप्त है। कॉलेज को बनाने में 158 करोड़ रुपए की लागत आई थी।
- प्राध्यापक प्रोफेसर- 22, 12, 10
इस मुद्दे पर जब द सूत्र ने बात की कॉलेज केडीन डॉक्टर प्रोफेसर दिनेश उदानिया से
- "शिक्षकों के खाली 40 पदों को भरने के के लिए दो विज्ञप्ति जारी की गई हैं...नए कमिशनर साहब जल्दी ही उनकी नियुक्ति कर देंगे। तो वहीँ नर्सेज के खाली पोस्ट्स पर पिछली भर्ती अभी जांच के दायरे में हैं...इसलिए अभी उसपर भर्ती नहीं कर पा रहें हैं। वहीँ पैरामेडिक्स के 130 पदों को भरने के लिए भी कोशिशें जारी हैं...MP ऑनलाइन इन पोस्ट्स के लिए एग्जाम लेकर सक्सेसफुल कैंडिडेट्स की सूची हमें भेजेगा...तो अगले माह तक इन पोस्ट्स पर भी नियुक्तियां कर दी जायेगी। साल के अंत तक हम कॉलेज और हॉस्पिटल की सभी वैकेंसीस को भर लेंगे और हमारी मैनपावर की दिक्कतें ख़त्म हो जाएँगी।
रतलाम शासकीय मेडिकल कॉलेज
- गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, रतलाम की स्थापना वर्ष 2018 में हुई थी। कॉलेज में एमबीबीएस कोर्स के लिए 180 सीटें हैं। कॉलेज मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध है और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त है। यह कॉलेज 295 करोड़ की लागत से 47 एकड़ में बना हुआ है। मेडिकल कॉलेज में पड़ने वाले स्टूडेंट की संख्या 500 से अधिक है
- शिक्षकों के कुल स्वीकृत पद: 160
- रतलाम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ जितेंद्र गुप्ता ने बताया कि: "खाली पदों के लिए विज्ञप्ति निकाली गई है...और इसके लिए इंटरव्यू भी 15 से 20 दिन में पूरा कर लिया जाएगा।"
विदिशा शासकीय मेडिकल कॉलेज:
- विदिशा शासकीय मेडिकल कॉलेज की स्थापना 2018 में हुई थी। यहाँ MBBS की 180 सीटें है। नर्सिंग और पैरा-मेडिकल पाठ्यक्रम भी पढ़ाएं जाते हैं। कॉलेज मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध है और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त है। 2018 में भर्ती छात्रों की संख्या 150 थी जबकि 2019 में बैच की संख्या बढ़ाकर 180 छात्र कर दी गई थी। विदिशा मेडिकल कालेज और हास्पिटल का करीब 356-400 करोड़ का प्रोजेक्ट है।
- प्राध्यापक प्रोफेसर 22,17, 5
डीन डॉक्टर सुनील नंदेश्वर: "प्राध्यापक प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के सभी पदों के लिए विज्ञापन अगले हफ्ते तक जारी कर दिए जाएंगे...अगर किसी सब्जेक्ट के प्राध्यापक प्रोफेसर नहीं है तो उसके जगह एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर पढ़ाते हैं....वैसे भी ऐसा हो नहीं सकता कि सभी पद हर वक़्त 100% भरे रहे क्योंकि टीचर्स भी नौकरी छोड़ कर जाते रहते हैं...फिर भी कोशिश रहेगी कि अगले 1-2 विज्ञापन में ये भर्तियां पूरी हो जाएँ। भर्ती प्रक्रिया एक कन्टीन्यूस प्रोसेस है...पर रेडियोडायग्नोसिस, डर्मेटोलॉजी और मनोरोग जैसे कुछ वो विभाग हैं जिसमें विज्ञापन निकालने के बावजूद इन विभागों में मेडिकल फैकल्टी नहीं आ रही है...डॉक्टर्स इन्हे इन जगहों पर आकर पढ़ाने में इंट्रेस्ट नहीं लेते हैं।"
छिन्दवाड़ा मेडिकल कॉलेज
छिन्दवाड़ा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस का लोकार्पण 2019 में हुआ था। सीएम कमलनाथ ने 10 फरवरी 2019 को मेडिकल कॉलेज का शुभारंभ किया था। कॉलेज की स्थापना के लिए कैबिनेट ने 1184.85 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। यहाँ MBBS की 100 सीटें है। कॉलेज मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध है और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त है। मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर सहित शैक्षणिक स्टॉफ के 169 पद हैं...जिनमें से 100 के आसपास पद भरे हुए हैं और 70 पद रिक्त है। अधिकारियों के अनुसार मेडिकल कॉलेज में रिक्त 70 पदों को भरने के लिए निविदाएं निकालने की प्रक्रिया वर्तमान में जारी है।
शहडोल का बिरसा मुंडा मेडिकल कॉलेज
शहडोल के बिरसा मुंडा मेडिकल कॉलेज की शुरुआत वर्ष 2018 में हो गई थी। यहाँ MBBS की 100 सीटें है। कॉलेज मध्य प्रदेश मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी से संबद्ध है और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (अब NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त है। करोड़ों का भवन बना और मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर के वेतन पर भी 300 करोड़ से भी ज्यादा रुपये खर्च हुए। मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर सहित शैक्षणिक स्टॉफ के 168 पद स्वीकृत हैं; इनमें से 82 पर भर्ती हो चुकी है और 86 पद रिक्त हैं।
2018 से पहले MBBS कोर्स के फर्स्ट प्रोफ यानि 1ST ईयर में 150 स्टूडेंट्स पर हर विभाग में निम्नलिखित टीचर की जरुरत होती थी
- 2 प्राध्यापक प्रोफ़ेसर
तो वहीँ अब फर्स्ट प्रोफ यानि 1ST ईयर में 250 स्टूडेंट्स पर हर विभाग में निम्नलिखित टीचर की जरुरत होती है
- 1 प्राध्यापक प्रोफ़ेसर
MP में 3 सालों में 150 से ज्यादा चिकित्सा शिक्षकों ने नौकरी छोड़ी
30 फीसदी मेडिकल शिक्षकों के ये रिक्त पदों को भरने के लिए कालेज स्तर पर बार-बार भर्ती प्रक्रिया की गई...लेकिन इसके बावजूद रिक्त पद नहीं भरे जा सकें हैं। पिछले दो साल में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 10 बार से ज्यादा साक्षात्कार हो चुके हैं। और तो और पहले से काम कर रहे डाक्टर/शिक्षक भी नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। और जो चिकित्सक छोड़कर जा रहे हैं उनमें ज्यादातर चिकित्सकीय विभागों के हैं। पढ़ाने के साथ ही प्रोफेसर डॉक्टर जिला अस्पताल में सेवाएं भी देते हैं। पिछले तीन साल में 150 से ज्यादा चिकित्सकों ने नौकरी छोड़ी है। विदिशा मेडिकल कालेज से 25, सागर से 15, रतलाम से 9, शहडोल से 4, दतिया से 15, खंडवा से 6, छिंदवाड़ा से 13, रीवा से 9, गांधी मेडिकल कालेज (GMC) भोपाल से 26, इंदौर मेडिकल कालेज से 20, और जबलपुर के 4 डाक्टरों ने नौकरी छोड़ी है। अन्य कालेजों का आंकड़ा भी 10 से ऊपर है।
शिक्षकों की कमी के कारण: MP के सरकारी मेडिकल कॉलेजेस में शिक्षकों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं
मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन के सेक्रेटरी डॉ राकेश मालवीय ने बताया कि मेडिकल टीचर्स के पदों का न भरने का एक बड़ा कारण मेडिकल कॉलेजों से मेडिकल शिक्षकों द्वारा नौकरी छोड़े जाना भी हैं।उनके मुताबिक शिक्षकों के नौकरी छोड़ने की बड़ी वजह पदोन्नति नीति की कमी, अन्य राज्यों के मुकाबले वेतन कम होना, पेंशन के मुद्दे, भर्ती नियम और सेवा शर्तें भी ठीक नहीं होना और सीमित संसाधनों का होना हैं। डॉ मालवीय ने कहा कि राज्य में चिकित्सा शिक्षकों की समयबद्ध पदोन्नति के लिए कोई नीति नहीं है जैसे पड़ोसी राज्यों में हैं। पड़ौसी राज्यों में हालत MP से कहीं अच्छे है...MP के सरकारी कॉलेजेस में चिकित्सा शिक्षकों को वो सुविधाएं, सहूलयतें और सिक्योरिटी नहीं दी जाती जिसके वो हकदार है। और यहीं कारण है कि मेडिकल टीचर्स MP के मेडिकल कॉलेजेस की नौकरी छोड़कर या तो दुसरे राज्यों में चले जाते हैं...और या फिर प्राइवेट कॉलेजेस को ज्वाइन कर लेते हैं...अन्य राज्यों के मुकाबले वेतन कम होने से, समय पर पदोन्नति नहीं मिलने से, प्रशासनिक और राजनीतिक दबाव ज्यादा होने से, भर्ती नियम और सेवा शर्तें ठीक नहीं होने से डॉक्टर नहीं आना चाहते। पर सरकार का या तो शायद इस तरफ कोई ध्यान ही नहीं है या फिर जानकर देखना ही नहीं चाहती है।
क्या है एक्सपर्ट्स की राय
सरकार के इस 'चुनावी स्टंट' पर स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दी है कि डॉक्टरों की भारी कमी को पूरा करने के लिए मेडिकल कॉलेज खोलने की मध्य प्रदेश सरकार की हड़बड़ी वास्तव में उल्टा दांव साबित हो सकती है। और इसके परिणामस्वरूप मेडिकल के शिक्षा मानकों में भारी गिरावट आ सकती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह तो मेडिकल शिक्षा का हाल तकनीकी शिक्षा जैसा बना देगी। जहाँ इंजीनियरिंग कॉलेजों की भरमार के कारण हर साल बड़ी संख्या में सीटें खाली रह जाती हैं और पास-आउट इंजीनियर को स्किल्स के अभाव में नौकरी तक नहीं मिलती। सरकार के साथ ही एक्सपर्ट्स नेशनल मेडिकल कमीशन के रिलैक्स एट्टीट्यूड को भी कटघरे में रख रहे हैं जिसमें उसने मेडिकल शिक्षक-स्टूडेंट्स के अनुपात में कुछ शिथिलता की थी।
ये सरकार का वाहवाही लूटने का तरीका; क्वालिटी एजुकेशन को क्वांटिटी के ऊपर ही रखना होगा: डॉ भरत छप्परवाल, पूर्व उपाध्यक्ष, मेडिकल काउन्सिल ऑफ़ इंडिया
- डॉ भरत छप्परवाल का साफ कहना है कि बिना मौजूदा 13 मेडिकल कॉलेजेस में चिकित्सा शिक्षकों की कमी को पूर्ण किये...नए कॉलेजेस की घोषणा करना सरकार की बेवकूफी है। और डॉक्टरों की कमी को पूरा करने का ये हड़बड़ी पूर्वक तरीका अपनाना ठीक नहीं। अगर सरकार नए कॉलेज खोलना चाहती भी है..तो पहले पुराने कॉलेजों में मेडिकल टीचर्स की कमी को, विभागों के संचालन की कमी को पूरा करे, ठीक करे। छप्परवाल में सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार चुनावी साल को देखते हुए इस तरह की घोषणाएँ कर रही है...उसको मेडिकल शिक्षा से ज्यादा मतलब है नहीं। साथ ही भरत छप्परवाल ने NMC के रोले पर भी प्रश्न उठाया कि अगर एनएमसी के रहते मेडिकल कॉलेजेस में टीचर्स के पद खाली पड़े हुए है तो ये NMC का फैल्यर ही है कि उसके द्वारा तय न्यूनतम मापदण्डों को कॉलेज पूरा नहीं कर रहे। डॉ भरत छप्परवाल के शब्दों में जानिये...
मेडिकल कॉलेजेस को एनएमसी द्वारा अनुमति देने के मुख्य चरण
- NMC के नियमों के अनुसार मेडिकल कॉलेज को LOP दिया जाता है
डॉक्टर झोलाछाप न बन जाए : डॉक्टर राकेश मालवीय, सेक्रेटरी, सेंट्रल मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन
- चिकित्सा शिक्षक संघ के महासचिव डॉक्टर राकेश मालवीय का कहना है कि सरकार को पहले से चल रहे 13 मेडिकल कॉलेजेस में मेडिकल टीचर्स की कमी को पूरा करना चाहिए और उसके बाद ही नए कॉलेज की बात करना चाहिए। क्योंकि मेडिकल शिक्षा के क्वालिटी मेन्टेन रखना बेहद ज़रूरी है। और ये मेडिकल शिक्षकों की ज़रूरत पूरी कए बिना मुमकिन नहीं है क्योंकि शिक्षकों की संख्या कम होगी तो बच्चों की पढाई के क्वालिटी पर निश्चित असर पड़ता है। मेडिकल कि पढ़ाई करके बने डॉक्टर किसी की ज़िन्दगी पर काम करता है। इसलिए मेडिकल कॉलेजेस की संख्या बढ़ाने से काम नहीं चलेगा...उससे तो झोलाछाप डॉक्टर्स ही बनेंगे और कुछ नहीं। वहीँ डॉक्टर मालवीय ने NMC पर भी निशाना साधा और कहा कि एनएमसी ने भी मेडिकल शिक्षक-स्टूडेंट्स के अनुपात में जो कमी की है...वो ठीक नहीं। जहाँ 3-4 साल पहले 150 बच्चों पर 12 मेडिकल टीचर्स जरुरी होती थी...तो वहीँ अब 250 बच्चों पर सिर्फ 8 टीचर्स ज़रूरी रह गए हैं...इससे तो निश्चित तौर पर मेडिकल एजुकेशन के गुड़वत्ता फार भारी फर्क पडेगा। डॉक्टर राकेश मालवीय के शब्दों में पढ़िए...
सब ठीक है!: जीतेन शुक्ला, डाइरेक्टर, डाइरेक्टोरेट मेडिकल एजुकेशन
सभी हालातों पर जब हमने डाइरेक्टोरेट मेडिकल एजुकेशन के हेड, जीतेन शुक्ला से बात की तो उनका रवैया बेहद निराशाजनक रहा....उनके हिसाब से शिक्षकों की ज्यादा कुछ कमी नहीं है..और जो नए कॉलेज खोले जाएंगे...वो भी अगले कुछ 3-4 सालों में खोले जाएंगे एकदम से नहीं...इसलिए टीचर्स कि नियुक्ति में कोई दिक्कत नहीं होगी...डॉक्टर्स/ टीचर्स के कमी का एक बड़ा अजीब सा कारण उन्होंने ये बताया कि क्योंकि कई बार पढ़ रहे डॉक्टर मब्ब्स के साथ ही पग भी पूरा करलेना चाहते है..इस वजग से एक डॉक्टर/शिक्षक के तैयार होने मैं सालों लग जाते है..और कई बार इसीलिए हॉस्पिटल्स/कॉलेजेस में डॉक्टर्स और टीचर्स की कमी हो जाती है...पर नई नियुक्तियां तो जारी है ही...साथ ही जो नए डॉक्टर्स निकलेंगे उनसे वो कमी पूरी की जा सकेगी....
मध्य प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों की स्थिति
- प्रदेश में पुराने मेडिकल कॉलेज- इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा और सागर।
मध्य प्रदेश में कुल मेडिकल कॉलेज
- प्रदेश में अभी सरकारी मेडिकल कॉलेज -13
अभी सरकारी मेडिकल कॉलेज में कहां कितनी सीटें (एमबीबीएस एवं पीजी)
- इंदौर- 250 ; 246
(इनपुट्स: रतलाम- आमीन हुसैन, विदिशा- अविनाश, छिंदवाड़ा- बीके पाठे, शहडोल- राहुल तिवारी)