Narsinghpur, Brijesh sharma. मध्यप्रदेश में गन्ने का कुल उत्पादन का 55 फीसद से अधिक गन्ना पैदा करने वाला नरसिंहपुर जिले का किसान शुगर रिकवरी रेट के आधार पर दाम पाने के लिए पिछले कई सालों से जूझ रहा है। डीएपी और यूरिया की किल्लत एक बार फिर उसके लिए परेशानी का सबब है। बुधवार की देर शाम जिलेभर से आए किसानों ने एक बार फिर प्रशासन को नसीहत दी कि अगर 15 दिन में उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो अब वह किसानों का उग्र आंदोलन झेलने के लिए तैयार रहें। किसानों का आरोप है कि अधिकारी और शुगर मिल के मालिकों की सांठगांठ से गन्ना किसान हर साल सही रेट पाने के लिए हाय तौबा मचाते हैं लेकिन सही रेट दूर की कौड़ी सिद्ध हो रही है।
प्रदेश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक नरसिंहपुर जिले में गन्ने की मिठास दूसरे जिलों की अपेक्षा सबसे अधिक है। 11 से 14 प्रतिशत तक शुगर रिकवरी रेट है। इसके आधार पर किसानों को गन्ने के दाम मिलना चाहिए लेकिन शुगर माफिया और प्रशासन की मिलीभगत से गन्ने के दाम हर साल 300 और ₹305 प्रति क्विंटल तक ही मिल पाते हैं जबकि बुरहानपुर शुगर मिल में यही दाम 350 हो 355 रुपए प्रति क्विंटल तक है। पिछले 5-6 सालों से जिले के किसान बड़े आंदोलन करते हैं, धरना देते हैं, प्रदर्शन करते हैं और जिला प्रशासन से मांग करते हैं कि गन्ने की रेट शुगर रिकवरी के आधार पर दिलाए जाएं प्रशासन भी किसानों के प्रदर्शनों, धरना को देखते हुए मलहम लगाने के उद्देश्य से शुगर रिकवरी टेस्ट करवाता है उसकी रिपोर्ट भी आती है लेकिन रिपोर्ट आते-आते गन्ने की पेराई का सीजन समाप्त हो जाता है और किसानों को बमुश्किल 300 से ₹315 प्रति क्विंटल दाम ही मिल पाते हैं
किसानों ने कहा कि जिले में 7-8 शुगर मिलें हैं जो कभी ₹290 प्रति क्विंटल से खरीदी शुरू करती हैं तो कभी तीन सौ और ₹305 की दर पर। अधिकांश शुगर मिल नेताओं की हैं स जिनके आगे किसानों के आंदोलन बौने हो जाते हैं माफियाओं के आगे किसी भी अधिकारी की कोई भी कार्यवाही परवान नहीं चढ़ पाती।
शुगर रिकवरी रेट के आधार पर दिए जाएं दाम
एक बार फिर यह मांग किसानों के द्वारा की गई, प्रदर्शन करते हुए कलेक्टर के नाम बुधवार को दिए गए ज्ञापन में यह मांग की गई कि शुगर रिकवरी रेट के आधार पर गन्ने के दाम तय किए जाएं। किसान अकेले गन्ने के कम रेट मिलने से नहीं जूझ रहे हैं बल्कि माफिया की मोनोपोली की वजह से भी उन्हें हर साल मुश्किल झेलना पड़ती हैं। किसानों से शुगर मिल गन्ना तो ले लेती हैं लेकिन जब रेट की बारी आती है तो शुगर मिलें किसानों को 4-4, 6-6 महीने बल्कि साल भर भुगतान के लिए परेशान करती हैं। उन्हें पीडीसी अर्थात पोस्ट डेटेड चेक तो दे दिए जाते हैं लेकिन कई बार यह चेक भी बाउंस हो जाते हैं। किसानों को हर साल भुगतान प्राप्त करने के लिए कई बार मिलो के चक्कर लगाने पड़ते हैं।