भोपाल में क्या आकृति बिल्डर्स ने दैनिक भास्कर की मदद से खेला बड़ा खेल! कैसे तोड़ा 2 हजार परिवारों का सपना? इनसाइड स्टोरी पार्ट-2

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Rahul Sharma
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भोपाल में क्या आकृति बिल्डर्स ने दैनिक भास्कर की मदद से खेला बड़ा खेल! कैसे तोड़ा 2 हजार परिवारों का सपना? इनसाइड स्टोरी पार्ट-2

BHOPAL. मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एजी-8 वेंचर्स लिमिटेड जिसे आकृति बिल्डर्स के नाम से भी जाना जाता है, उसने हजारों लोगों को धोखा दिया। इस खबर की पहली कड़ी में हमने आपको बताया था कि आज भी आकृति बिल्डर्स के प्रोजेक्ट में इन्वेस्ट करने वाले पीड़ितों को ना तो पैसा वापस मिला ना ही मकान का पजेशन। आकृति बिल्डर्स के हेमंत सोनी ने परायों को तो छोड़िए अपनों तक को नहीं बख्शा। साथ ही पहली कड़ी में हमने आपको ये भी बताया था कि कैसे मध्यप्रदेश के एक बड़े मीडिया समूह डीबी कॉर्प लिमिटेड यानी दैनिक भास्कर समूह की एंट्री हुई और क्यों हुई, किस वजह से हुई। अब इस कड़ी में हम आपको बताएंगे कि क्या एजी-8 वेंचर्स यानी आकृति बिल्डर्स के हेमंत सोनी ने बेहद सोची-समझी साजिश के तहत खुद को दिवालिया घोषित करवाया? एक्वासिटी कंज्यूमर सोसाइटी के मेंबर्स क्यों आरोप लगा रहे हैं कि एजी-8 ग्रुप और दैनिक भास्कर की मिलीभगत रही है? क्यों रेरा ने भी अपनी याचिका में दैनिक भास्कर को पार्टी बनाया है? और इन सभी आरोपों पर दैनिक भास्कर का क्या जवाब है? क्या एजी-8 ग्रुप यानी आकृति बिल्डर्स के हेमंत सोनी ने बेहद सोची-समझी साजिश के तहत खुद को दिवालिया घोषित करवाया? ये सवाल उठाया है एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी के मेंबर्स ने क्योंकि डीबी कॉर्प लिमिटेड यानी दैनिक भास्कर समूह की याचिका पर ही एजी-8 ग्रुप को इंदौर के NCLT ने दिवालिया घोषित किया था।





रेरा ने आकृति बिल्डर पर कसा हुआ था शिकंजा





एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी के मेंबर्स का ये भी कहना है कि रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी यानी रेरा ने आकृति बिल्डर्स पर जबरदस्त शिकंजा कस दिया था। शिकंजा कसने का सिलसिला अगस्त 2021 से शुरू हुआ था। अगस्त से शुरू हुई सुनवाई जनवरी 2022 तक चलती रही इस दौरान एजी-8 वेंचर्स को सुनवाई का पूरा मौका दिया गया। सभी दलीलों को सुनने के बाद रेरा ने 28 जनवरी 2022 को 49 बिंदुओं में आदेश पारित किया कि एजी-8 वेंचर्स 31 मार्च 2022 तक होम बॉयर्स की जमा राशि वापस करें। प्रोजेक्ट के विशेष खाते में जो 81 करोड़ रुपए कम जमा किए वो भी 31 मार्च 2022 तक जमा कराएं। साथ ही एजी-8 वेंचर पर करीब 4 करोड़ का जुर्माना भी ठोका और एजी-8 वेंचर्स का रजिस्ट्रेशन भी कैंसल कर दिया। आदेश में ये भी लिखा कि प्राधिकरण जिस निर्माण एजेंसी को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए तय करेगा, उसे वित्तीय सहायता भी एजी-8 वेंचर्स मुहैया कराएगा।





क्या सोची-समझी साजिश के तहत खुद को दिवालिया करवाया?





यानी एजी-8 वेंचर्स यानी आकृति बिल्डर्स पर 2 तरीके से शिकंजा कसा। पहला NCDRC ने 23 अक्टूबर 2021 को आदेश दिया और उसके बाद 28 जनवरी 2022 को रेरा ने भी एजी-8 वेंचर्स के खिलाफ ही आदेश पारित किया। इसी बीच फरवरी 2022 में दैनिक भास्कर समूह ने NCLT इंदौर में केस दायर किया। एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी के मेंबर्स ने इसी टाइमिंग पर सवाल उठाए और आशंका जताई कि एजी-8 ग्रुप यानी आकृति बिल्डर्स के हेमंत सोनी ने बेहद सोची-समझी साजिश के तहत खुद को दिवालिया घोषित करवाया। अब यहां पर द सूत्र पूरी स्थिति साफ करना चाहता है कि ये सभी आरोप और आशंकाएं एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी के मेंबर्स की हैं और मेंबर्स ने ये भी आरोप लगा रहे हैं कि एजी-8 ग्रुप और दैनिक भास्कर की मिलीभगत रही है? एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी के मेंबर्स इसी शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें लगता है कि आकृति बिल्डर को मदद की गई और रेरा को भी ऐसा ही लगता है।





पहले की पैसा देने की बात, फिर भास्कर की याचिका पर खुद को डिफेंड भी नहीं किया





एक्वासिटी कंज्यूमर सोसाइटी के मेंबर्स क्यों आरोप लगा रहे हैं कि एजी-8 ग्रुप और दैनिक भास्कर की मिलीभगत रही है? दरअसल दैनिक भास्कर ने जब NLCT इंदौर में केस लगाया उसी के बाद से केस का रुख बदल गया। रेरा में चल रही सुनवाई के दौरान एजी-8 वेंचर्स ग्रुप की तरफ से कहा गया कि पैसा लौटा देंगे और अगस्त की सुनवाई के दौरान वकील ने अक्टूबर में पैसा देने का तर्क भी रखा था, लेकिन जैसे ही दैनिक भास्कर ने 30 दिसंबर 2021 को एजी-8 वेंचर्स को लीगल नोटिस भेजा उसके बाद से आकृति बिल्डर के हेमंत सोनी की रणनीति बदल गई। खुद को डिफेंड करने की बजाए वो सरेंडर की स्थिति में आ गए। फरवरी 2022 में जैसे ही NCLT इंदौर में भास्कर की तरफ से केस दायर हुआ एजी-8 वेंचर्स की तरफ से दिवालिया होने से बचने के लिए कंटेस्ट नहीं किया गया। सुनवाई के दौरान आकृति बिल्डर्स की तरफ से अपने बचाव में कोई तर्क नहीं दिया। NCLT ने मई 2022 में दोनों पक्षों की ओर से बहस को कम्पलीट मानकर फाइनल हियरिंग की तारीख 7 जुलाई 2022 को निर्धारित की।





दिवालिया होने की इतनी जल्दी कि जल्द सुनवाई की अपील तक कर डाली





आपको लगता है कि कहानी यहां खत्म हो गई तो आप गलत हैं। अभी कहानी में एक और ट्विस्ट है। फाइनल हियरिंग की तारीख तय हो चुकी थी, लेकिन दैनिक भास्कर के साथ आकृति बिल्डर की तरफ से म्यूचल प्रोपोनेंट यानी जल्द सुनवाई की अपील की गई और इस अपील के बाद फाइनल हियरिंग जुलाई में ना होकर 17 जून को हुई। यहां पर सवाल ये उठता है कि आकृति बिल्डर को सुनवाई की इतनी जल्दी क्या थी? क्या आकृति बिल्डर को पता था कि वो दिवालिया घोषित होने वाला है। बहरहाल, 17 जून को हुई सुनवाई में NCLT इंदौर ने फैसला सुरक्षित रखा और 5 अगस्त 2022 को आकृति बिल्डर्स को दिवालिया घोषित किया गया।





NCLAT में पहुंचे रेरा और कंज्यूमर





इस ऑर्डर के आने के बाद एक्वासिटी कंज्यूमर सोसाइटी के मेंबर्स और रेरा सक्रिय हुए। एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी के मेंबर भानु यादव ने बताया कि NCLT इंदौर के आदेश को रेरा और एक्वासिटी कंज्यूमर सोसाइटी NCLAT दिल्ली में चुनौती दी कि दिवालिया होने का जो आदेश आया है वो गलत तरीके से आया है। आकृति बिल्डर और दैनिक भास्कर दोनों को इसमें पार्टी बनाया और मिलीभगत के आरोप लगाए।





रेरा का आरोप- भास्कर ने जो रसीदें दी वो संदेह के दायरे में





NCLT इंदौर के फैसले को चुनौती देते हुए रेरा ने NCLAT दिल्ली में अपील दायर की और इसमें फर्स्ट रिस्पोंडेंट डीबी कॉर्प लिमिटेड यानी दैनिक भास्कर समूह को बनाया और सेकंड रिस्पोंडेंट आकृति बिल्डर को बनाया। रेरा की तरफ से वकील ने NCLAT के सामने पक्ष रखा कि इंदौर NCLT में सुनवाई के दौरान दैनिक भास्कर ने आकृति बिल्डर्स से बकाया राशि वसूलने की जो रसीदें दी थी वो संदेह के दायरे में है इसलिए इस मामले को सुना जाना चाहिए।





एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी का सवाल





NCLAT ने 30 सितंबर 2022 को इस मामले में सुनवाई करते हुए इंदौर बेंच के 5 अगस्त 2022 के उस आदेश पर जिसमें आकृति बिल्डर को दिवालिया घोषित किया था उस पर रोक लगा दी यानी स्टे दे दिया। एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसायटी के पास कुछ और तथ्य है और कुछ सवाल भी। भानु यादव ने कहा कि यदि भास्कर की याचिका पर आकृति बिल्डर दिवालिया हुआ था तो उसे ये खबर मोरल ग्राउंड पर प्रकाशित करनी चाहिए थी जो उसने नहीं की। यहां द सूत्र स्पष्ट कर देना चाहता है कि ये सवाल एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी की ओर से भानु यादव ने उठाए हैं, हर मीडिया संस्थान की अपनी एडोटोरियल पॉलिसी हो सकती है, जिसे हम चैलेंज नहीं कर रहे हैं।





द सूत्र ने जाना दैनिक भास्कर का भी पक्ष





एक्वासिटी कंज्यूमर एंड सोशल वेलफेयर सोसाइटी के मेंबर्स ने दैनिक भास्कर और आकृति ग्रुप की मिलीभगत के आरोप लगाए तो जिम्मेदार मीडिया हाउस के नाते द सूत्र की जिम्मेदारी थी कि जिस पर आरोप लगाए जा रहे हैं उसका पक्ष भी सामने आए, इसलिए द सूत्र ने दैनिक भास्कर को इन आरोपों से जुड़े सवाल भास्कर के सीओओ की ऑफिशियल ईमेल आईडी पर भेजे, भास्कर की ओर से इसका जवाब भी आया।





द सूत्र का सवाल





एक्वासिटी कंज्यूमर एंड वेलफेयर सोसाइटी सहित अन्य होम बायर्स का आरोप है कि एजी-8 वेंचर्स जान बूझकर दिवालिया हुआ, ताकि सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से बचा जा सके जिसमें कंस्टमर को फुल रिफंड की बात कही गई थी, चूंकि डीबी कॉर्प लिमिटेड की याचिका पर ही एजी-8 वेंचर्स को दिवालिया घोषित किया गया, इसलिए डीबी कॉर्प लिमिटेड पर भी एक्वासिटी कज्यूमर एंड वेलफेयर सोसायटी के मेंबर सवाल उठ रहे हैं। इस बारे में आपका क्या कहना है?





दैनिक भास्कर का जवाब





डी.बी. कॉर्प लिमिटेड द्वारा एजी 8 वेंचर्स लिमिटेड के विरुद्ध फरवरी 2022 में एन.सी.एल.टी. कोर्ट में प्रकरण प्रस्तुत करने की कार्यवाही प्रारंभ हुई थी, जिसमें डी.बी.कार्प द्वारा रुपए 10.77 करोड़ की मांग की गई थी, जिसमें एजी-8 वेंचर्स लिमिटेड द्वारा खाते बंद होने के कारण पेमेन्ट देने में असमर्थता व्यक्त की गई थी और जवाब में ये कहा गया था कि रेरा द्वारा दिनांक 10.12.2021 को आदेश पारित करते हुए कंपनी एजी-8 वेंचर्स लिमिटेड के बैंक खाते बंद कर दिए गए हैं। माननीय एन.सी.एल. टी. न्यायालय द्वारा प्रकरण में ये पाया कि चूंकि कंपनी एजी वेंचर्स लिमिटेड के बैंक खाते बंद हैं और उन्हें किसी प्रकार के ट्रान्जेक्शन की अनुमति नहीं है, अतः एन.सी. एल. टी. न्यायालय द्वारा दिनांक 05.08.2022 को आदेश पारित करते हुए आई.आर.पी. नियुक्त कर दिया।





द सूत्र का सवाल





NCLAT प्रिंसिपल बेंच दिल्ली ने मामले में जो स्टे दिया, उसमें रेरा की ओर से पक्ष रख रहे वकील ने मामले में डीबी कॉर्प की ओर से दी गई रसीद को फर्जी बताया है, 2010 से 2012 तक जो रसीद दी गई उसमें जीएसटी और क्यूआर कोड दिए गए, जबकि यह उस समय प्रचलित नहीं थे, इस बारे में आप क्या कहेंगे?





दैनिक भास्कर का जवाब





डी. बी. कॉर्प लिमिटेड एवं एजी-8 वेंचर्स लिमिटेड के मध्य बार्टर डील हुई थी, जिसके अंतर्गत विज्ञापन के बदले में डी.बी. कॉर्प लिमिटेड को प्रापर्टी दिया जाना था। एजी-8 वेंचर्स लिमिटेड द्वारा बार्टर डील के तहत न तो डी.बी. कॉर्प लिमिटेड को प्रापर्टी दी गई और न ही उन्हें राशि का भुगतान किया गया। डी.बी कॉर्प लिमिटेड द्वारा कई बार नोटिस भेजकर भी राशि की मांग की गई, किन्तु एजी द्वारा राशि का भुगतान नहीं किया गया। इस कारण डी.बी. कार्प लिमिटेड द्वारा माननीय एन.सी.एल.टी. न्यायालय में उक्त राशि की वसूली हेतु प्रकरण प्रस्तुत किया गया। डीबी कॉर्प लिमिटेड में सैप सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है, जिसमें डी.बी. कार्य के सभी बिल एवं वाउचर की एन्ट्री की जाती है। सैप सॉफ्टवेयर द्वारा ही बिल का प्रिन्ट निकाला जाता है। सॉफ्टवेयर समय-समय पर शासन के नियमानुसार अपडेट होता रहता है। चूंकि पूर्व में जी.एस.टी. नहीं लगता था, इस कारण उक्त बिलों में जी. एस.टी. नहीं लगाया गया है। चूंकि सैप सॉफ्टवेयर से बिलों का प्रिन्ट वर्तमान डेट में निकाला गया है और वर्तमान में सॉफ्टवेयर में जी.एस.टी. फॉर्मेट होने की वजह से बिलों में जी.एस.टी. का कॉलम दिख रहा है। डी.बी. कॉर्प लिमिटेड द्वारा बिल के साथ में विज्ञापन की कॉपी भी माननीय एन.सी.एल.टी. अपीलेट ट्रिब्युनल नई दिल्ली के समक्ष प्रस्तुत किया गया है, जिसमें किसी भी प्रकार के फर्जी बिल होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है। माननीय एन.सी.एल.टी. अपीलेट ट्रिब्युनल के समक्ष प्रचलित अपील प्रकरण में रेरा द्वारा विगत 04 पेशियों पर अपना रिज्वाइंडर नहीं प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसके कारण प्रकरण की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ रही है।





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अगली कड़ी में होंगे और भी कई खुलासे





दैनिक भास्कर ने सवालों के तो जवाब दिए हैं मगर आरोपों के नहीं क्योंकि एक्वासिटी कंज्यूमर एंड वेलफेयर सोसायटी के मेंबर्स ने मिलीभगत का आरोप लगाया था। भास्कर ने केवल कोर्ट की वो प्रक्रिया बता दी जो हम आपको खबर में पहले ही बता चुके हैं। बहरहाल, ये दैनिक भास्कर का अपना तर्क है और अब आपको यदि ये लग रहा है कि ये मामला यहीं खत्म हो गया तो आप गलत हैं क्योंकि इसका एक अहम हिस्सा और बचा हुआ है। अगली कड़ी में हम आपको बताएंगे कि NCLT इंदौर ने दिवालिया की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए जिस आईआरपी यानी को नियुक्त किया था दिल्ली हाईकोर्ट ने उस पर 10 हजार का जुर्माना क्यों ठोका और NCLAT दिल्ली में आईआरपी के खिलाफ अवमानना याचिका क्यों दायर हुई और हम आपको बताएंगे कि इतना सब होने के बाद भी किस ठाठ से रह रहा है आकृति बिल्डर का कर्ताधर्ता हेमंत सोनी।



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